भक्ति आंदोलन

0

 भक्ति आन्दोलन

• क्यों?
1. भक्तिमार्ग की सरलता :- प्राचीन हिन्दू धर्म में कर्मकाण्ड बढ़ा। साधारण लोगों के लिए आसान नहीं था, इसलिए उन्होंने भक्ति मार्ग को चुना।
2. मुस्लिम आक्रमण :- मध्यकालीन भारत में मुस्लिम आक्रांताओं ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा लूटा।
3. जटिल वर्ण व्यवस्था :- समाज के सभी वर्णों में समानता नहीं थी, इसी कारण अस्पृश्यता थी।
4. समन्वय की भावना जागृत हुई :- हिन्दू + मुस्लिम आपसी समन्वय स्थापित करना चाहते थे।
• इसके डॉ. तारचंद युसुफ हुसैन समर्थक थे।
भक्ति आन्दोल का स्वरूप :-
(1) निर्गुण स्वरूप (निराकार) सबसे लोकप्रिय संत कबीर, नानकदेव थे 
(2) सगुण (साकार) लोकप्रिय संत तुलसीदास, सूरदास वल्लभाचार्य, मीरा, चैतन्य थे।
भक्ति करे क्यों? प्राचीन दर्शन के अनुसार :-
 मोक्ष प्राप्ति के लिए 3 मार्ग बताए गए है-
 (1) ज्ञान- उपनिषद् वेद
 (2) कर्म- कर्मकाण्ड
 (3) भक्ति- (i) निर्गुण   (ii) सगुण
भक्ति :-
• उल्लेख – “श्वेताश्वेत्तर उपनिषद्” में
• विस्तृत उल्लेख – “श्रीमदभगवतगीता” मोक्ष का साधन बताया गया है।
• आदिगुरु शंकराचार्य :-
• जन्म – 788 ई.
• कहाँ – केरल में पूर्णानदी के किनारे “कालडी़” नामक गाँव में।
• पिता – शिवगुरु
• माता – सुभद्रा/अयप्पा
• गुरु – गोविन्ददेवपाद ने उपाधि दी शंकर को – परमहंस
• उपाधि – प्रच्छन्न बौद्ध – यह महायान शाखा से प्रभावित थे।
• जन्म के कुछ समय बाद शंकर के पिता की मृत्यु हो गई।
• माता ने शंकर को 5 वर्ष की आयु में विद्या अध्ययन हेतु कालड़ी गुरु के पास भेजा।
• शंकर ने वेद उपनिषद् – 1,2 वर्ष में ही ज्ञान प्राप्त कर लिया।
• 8 वर्ष की आयु में माता से आज्ञा लेकर सन्यास ग्रहण कर लिया।
• केरल के राजा “राजशेखर” ने दरबार में आमंत्रित किया, किन्तु शंकर नहीं गए तो राजा स्वयं कालड़ी आए उनके दर्शन के लिए।
• मत: अद्वैतवाद - ब्रहम सत्य जगत मिथ्या
• यह गुरु के आदेश पर काशी चले गए, वहाँ शिव जी की उपासना की, यहाँ से बद्रिका आश्रम गए।
• यहाँ बादरायण के “ब्रह्मसूत्र” पर भाष्य लिखा।
• बद्रिका आश्रम (उत्तराखण्ड)
• महान उत्तर भारत के आचार्य कुमारिल से मिले। मिलने के बाद कुमारिल ने कहा “मेरे पास वैदिक कर्मकाण्ड के विद्वान पति-पत्नी है” (1. मण्डनमिश्र 2. भारती)
• दोनों को नर्मदा तट पर बुलाकर शास्त्रार्थ किया।
• इसमें शंकर ने दोनों को पराजित किया, पति-पत्नी दोनों शंकर के शिष्य बन गए, दोनों को दक्षिण भारत ले गए। वहाँ तुंगभद्रा नदी के किनारे शृंगेरी पीठ की स्थापना की, मण्डनमिश्र को इस पीठ का मुख्य आचार्य बनाया। यह पीठ भगवान शिव को समर्पित है।
• उत्तरी भारत के सबसे बड़े विद्वान कुमारिल्ल ने वैदिक धर्म को पुन: स्थापित किया।
• शृंगेरी में शंकराचार्य को अपनी माता सुभद्रा की मृत्यु का सामाचार मिला। यह सुनकर आँखों से अश्रु निकले, संन्यास त्याग दिया।
• कालड़ी आए माता का अंतिम संस्कार किया।
• इसके बाद यह पूर्वी घाट आए – पुरी, ओडिशा
• यहाँ पर “गोवर्धन मठ” की स्थापना की।
• इन्होने अपनी 32 वर्ष की आयु में सम्पूर्ण भारत का 2 बार भ्रमण कर लिया।
• अपने अंतिम समय में केदारनाथ पहुँचे और 32 वर्ष की आयु में मृत्यु (820 ई.) हो गई। 
सम्प्रदायस्मृति/स्मार्त सम्प्रदाय :- 
(1) 804 ई. में शृंगेरी पीठ की स्थापना मैसूर (कर्नाटक) में की गई थी। यह पीठ शिवजी को समर्पित है। इसके आचार्य मण्डल मिश्र थे।
(2) 808 ई. में गोवर्धन पीठ की स्थापना जगन्नाथ पुरी (ओडिशा) में की गई थी। यह पीठ विष्णु, भैरवी, सुभद्रा, बलराम को समर्पित है।
(3) 910 ई. में ज्योतिपीठ की स्थापना ब्रदीनाथ (उत्तराखण्ड) में की गई थी। यह पीठ विष्णु को समर्पित है। इसके आचार्य त्रोटकाचार्य थे।
(4)  शारदा पीठ की स्थापना द्वारिका गुजरात में की गई थी। यह पीठ भगवान कृष्ण को समर्पित है।
• प्रमुख ग्रंथ :- (संस्कृत भाषा में)
• ब्रह्मसूत्र पर भाष्य
• वेद, उपनिषद् (12), गीता पर भाष्य
• सौन्दर्यलहरी
• विवेक चुड़ामणि
• प्रपंच सारतंत्र
• उपदेश साहसी
• मनीषा पंचम्
• अपरोक्षानुभूति
• शारीरिक भाष्य
  “भामती”
Note :-
• वाचस्पति मिश्र ने शारीरिक भाष्य पर टीका लिखा। इसी से शंकराचार्य प्रसिद्ध हुए।
• शंकराचार्य को भगवान शिव का अवतार माना जाता है।
• शंकराचार्य रामानुज माध्वाचार्य प्रसिद्ध नहीं हो पाए क्योंकि वे संस्कृत बोलते थे जो जनसामान्य की भाषा नहीं थी।
• रामानंद – प्रसिद्ध हुए तथा हिन्दी को आधार बनाया।
  1.भक्ति आन्दोलन का सेतु
2. द्रविड़ उपजी लाए रामानंद
3. भक्ति को दक्षिण से उत्तर भारत में लाए।
रामानुजाचार्य :-
• वाद – विशिष्टाद्वैतवाद
• 'विशेष्टाद्वैत' का अर्थ है  'ब्रह्म' अर्थात् ईश्वर अद्वैत होते हुए भी जीव तथा जगत की शक्तियाँ द्वारा विशिष्ट  है।
• जन्म – 1017 ई. पराम्बदुर में हुआ। (तमिलनाडु)
• भक्ति को दर्शनिक आधार बनाया।
• सम्प्रदाय – “श्री सम्प्रदाय”
• प्रमुख केन्द्र – काँची, श्रीरंगम् (तमिलनाडु) को बनाया।
• मंदिर में कई समय तक शिक्षण का कार्य किया।
• गुरु – यमुनाचार्य (आलवार विष्णु के प्रति समपर्ण भाव दक्षिण संत थे)
• काँची में यादवप्रकाश को अपना गुरु बनाया। इनसे वेदों और उपनिषदों की शिक्षा प्राप्त की।
• रामानुज – “ज्ञान मोक्ष का साधन नहीं, मोक्षप्राप्ति के लिए भक्ति से बढ़कर कुछ नहीं”
• तमिल शासक चोल वंशीय कोतकुलुज-I, जो कि नयनार पक्ष का था, उसने रामानुज का विरोध किया। रामानुज को श्रीरंगम् छोड़कर जाना पड़ा।
• छोड़ने के बाद तिरुपति (आन्ध्रप्रदेश) को अपना केन्द्र बनाया।
• सगुणविचारधारा के थे।
प्रमुख ग्रन्थ :-
1. वेदान्तसंग्रहम्
2. श्रीभाष्यम्
3. गीताभाष्यम्
4. वेन्दान्त दीपम्
5. वेदान्तसारम्
6. शरणगतिगद्यम्
• माध्वाचार्य :- (12-13वीं शताब्दी के संत)
• वाद – द्वैतवाद (आत्मा = परमात्मा) – 2 तत्त्व
• सगुण धारा – विष्णु को ही परमात्मा माना।
• जन्म – 2 मत है।
प्रथम - 1199-1276 ई.
दूसरा - 1238-1317 ई.
• कहाँ – मूलत: दक्षिण भारत – उडूपी (पाजक गाँव में) केरल – शिवल्ली स्थान पर
• उपाधियाँ – “पूर्णप्रज्ञ”, ”आनंदतीर्थ”, ”वायु का तीसरा अवतार” (पहला हनुमानजी, दूसरा भीम)
• सामाजिक कार्य – यज्ञ के समय दी जाने वाली पशुबलि पर रोक लगा दी।
• सम्प्रदाय – “ब्रह्मसम्प्रदाय”
 प्रमुख ग्रंथ :-
1. अणुभाष्यम्
2. न्यायविवरणम्
3. गीताभाष्यम्
4. ऋग्भाष्यम् (ज्ञान ऋग्वेद के प्रथम 30 सूक्त पर भाष्य)
• रामानुज तथा शंकराचार्य – दोनों के दर्शनों का विरोध किया (वाद का खण्डन)
• माध्वाचार्य के अनुसार दो प्रकार के लोग मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते।
(1)  नित्य संसारी- जो सांसारिक चक्र में बंधे हुए है।
(2)  तमोयोग्य- जिन्हें नरक जाना है।
रामानंद :- (15वीं शताब्दी के)
• भक्ति आंदोलन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय
• कथन – द्रविड़ भक्ति उपजी, लायो रामानंद
• दक्षिण भारत से उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन लाने का श्रेय। अत: इन्हें उत्तर दक्षिण भक्ति आंदोलन का रामसेतु कहा जाता है।
• रामानंद कुछ समय तक श्री सम्प्रदाय के संत राघवानन्द के साथ रहे तथा उन्हें अपना गुरु बनाया था।
• गुरु – 1. रामानंद रामानुज के शिष्य थे।
• जन्म – इलाहाबाद में कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में
• किन्तु यह प्रमाणिक नहीं क्योंकि कुछ विद्वान इनका जन्म दक्षिण में मानते हैं।
• पिता – पुण्यसदन
• माता – सुशीलादेवी
• विष्णु के स्थान पर राम की पूजा की
• सगुण भक्ति धारा के उपदेश – हिन्दी भाषा में दिए – इसलिए सबसे लोकप्रिय संत
• शैव v/s वैष्णव दोनों में प्रयाग में समन्वय स्थापित करवाया।
• जाति प्रथा में विश्वास नहीं
• जाति प्रथा एवं बाह्य आडम्बरों का विरोध किया तथा सभी जातियों  के लोगों को अपना उपदेश दिया था।
• इसलिए सभी जातियों को समान माना और सभी जातियों के शिष्य बनाए।
• कुल 12 शिष्य (2 महिला शिष्य) :- कबीर (जुलाहा), सेन (नाई), रैदास (चमार), पीपा (राजपूत, क्षत्रिय), सुरसुरानंद, सुखानंद, धन्ना (जाट), नरहरीदास, अनंतानंद, भावानंद, पद्मावती, सुरसरी आदि।
• रामानंद के विचारों से प्रभावित होकर जिन्होंने हिंदू धर्म त्याग कर ईस्लाम स्वीकार कर लिया था, उन्होंने पुन: हिंदू धर्म ग्रहण कर लिया था।
प्रमुख ग्रंथ :-
1. वैष्णवमताब्ज भास्कर
2. रामरक्षास्रोत्रतम् टीका
3. सिद्धान्तपटल
4. ज्ञानलीला
5. योग चिंतामणि
6. सतनामपंथी
 निम्बार्काचार्य :- (12/14वीं शताब्दी)
• जन्म – चेन्नई, वेल्लारी (तेलुगु ब्राह्मण)
• वाद - द्वैताद्वैत/भेदाभेद
• सम्प्रदाय – सनक सम्प्रदाय
• रामानुज के समकालीन माना जाता है।
• राधाकृष्ण की युगल रूप में पूजा की जाती है।
• मथुरा-ब्रज में अपना प्रमुख आश्रम स्थापित किया।
• निम्बार्काचार्य अवतारवाद में विश्वास करते थे।
• राधा  = लक्ष्मी  
• कृष्ण =  विष्णु का अवतार               
• “सुदर्शन चक्र के अवतार” माने जाते हैं।
• राजस्थान में निम्बार्क पीठ अजमेर के सलेमाबाद में स्थित है।
• दाम्पत्य भक्ति को सर्वश्रेष्ठ माना।
मीरा बाई :-
• जन्म – 1498 ई.
• बचपन नाम – पेमल दे
• कहाँ – मेड़ता कुड़की पाली (वर्तमान नागौर)
• पिता – राजा रतनसिंह
• पति – राणा सांगा के पुत्र भोजराज (1516 ई. में विवाह)
• भक्तिकाल की महान महिला संत – इनकी तुला सूफी महिला संत “राबिया” से की जाती है।
• गुरु – जीवस्वामी – चैतन्य सम्प्रदाय
• रैदास/रविदास – आध्यात्मिक गुरु
• पति भोजराज की मृत्यु के बाद कृष्ण भक्ति में लीन हो गई।
• कृष्ण को अपना पति (प्रियतम) माना, माधुर्य तथा कांतभाव भक्ति की
• भाषा – राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा थी
• रस – वियोग शृंगार और शांत
• द्वारिका में रणछोड़राय के मंदिर में विलीन हो गई। (किवदन्ती)
 प्रमुख ग्रंथ :-
1. नरसी जी रो मायरो
2. गीत गोविन्द का टीका
3. राग गोविन्द
4. मीरा बाई का मल्हार
5. राग सोरठा
6. सत्यभामा रो रूसणो
7. रुकमणी मंगल
 कबीरदास :-
• जन्म – 1440 ई. (1398 ई. भी जन्म माना गया है।)
• कहाँ – काशी (वाराणसी) वरुणा और असी नदियों के संगम पर
• माता – अज्ञात (किन्तु लोक किवदन्तियों के अनुसार विधवा ब्राह्मण महिला के गर्भ से जन्में जिसने लोकलाज के भय से इन्हें एक टोकरी में “लहरतारा तालाब” के किनारे छोड़ दिया)
• पालन – नीरू नीमा (जुलाहा दम्पत्ती) ने इनका पालन पोषण किया।
• नामकरण – कबीर (अरबी भाषा का शब्द – अर्थ – “महान”)
• गुरु – रामानंद
• भक्तिमार्ग – निर्गुण भक्ति धारा
• कबीर संन्यास विचारधारा में विश्वास नहीं रखते थे।
• पहले निर्गुणधारा के संत जिन्होंने गृहस्थ जीवन यापन किया।
• पत्नी – लोई
• पुत्र-पुत्री – कमाल-कमाली
• प्रभाव – अद्वैतवाद/एकेश्वरवाद
• समकालिक सभी समाज सुधारकों में फक्कड़ संत/क्रांतिकारी विचारधारा के संत
• जाति प्रथा में विश्वास नहीं था।
• सामाजिक वर्ण व्यवस्था के कटु आलोचक थे।
• धनसंचय वैभव विलासिता का पक्ष नहीं लिया।
• कबीर के समकालीन शासक – सिकन्दर लोदी
• अबुल फजल ने कबीर को “मुवाहिद” कहा। (एकेश्ववादी)
• अपने अंतिम समय में काशी से मगहर (UP) चले गए।
• पद दोहों की रचना की ग्रंथ नहीं रचा।
• कबीर के पद गुरुग्रंथ साहिब (आदिग्रंथ) में संकलित हैं।
• कबीर की शिक्षाओं का संकलन बीजक में जो कि इनके शिष्य (धर्मदास/महेशदास) द्वारा संकलित हैं।
बीजक :-
• साखी – दौहा शैली, शिक्षा सिद्धान्तों का संकलन
• सबद – शब्द पद शैली, प्रेम अंतरंग साधना   
• रमैनी – रामायनी दोहा शैली, दार्शनिक विचार प्रकट
• पंथ – कबीरपंथ की स्थापना कबीरचौरा (काशी) में।
• कबीर की मृत्यु के बाद धर्मदास गद्दी पर बैठे।
• कबीर के प्रमुख अनुयायी – मलूकदास (1574) इलाहाबाद में जन्मे। इन्होने कबीर विचारधारा का सर्वाधिक प्रचार किया।
• डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को “युगपुरुष”, ”युगावतार”, ”युगप्रवर्तक”, ”वाणी का डिक्टेटर” कहा।
रविदास/रैदास :-
• जन्म – काशी 1398 में
• पिता – राहु (चमार जाति)
• माता – कर्मा
• पालक दम्पत्ती – संतोकदास तथा कलसादेवी
• पत्नी – लोना
• गुरु – रामानंद
• जानकारी का स्रोत – कबीर परचई
• मन की पवित्रता पर जोर दिया।
• रैदास तीर्थयात्रा, व्रत, नदियों में स्नानादि के विरोधी थे।
• मानवसेवा ही सच्चा धर्म है।
• आजीवन व्यवसाय में लगे रहे। समाज को कर्म के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति की शिक्षा दी।
• 1398 सिकंदर लोदी को प्रवचन दिए। बाबर, हुमायूँ, शेरशाह सूरी के समकालीन थे।
• कबीर ओर रैदास – दोनों गुरु भाई थे।
• कबीरदास ने रैदास को संतों का संत कहा।
• रैदास सम्प्रदाय की स्थापना काशी में की।
• चित्तौड़ की रानी “झाली” तथा भक्त शिरोमणि मीरा के आध्यात्मिक गुरु थे।
तुलसीदास :-
• जन्म – 1511/1532 राजापुर, वर्तमान नाम कासगंज
• कहाँ – राजापुर, बांदा जिला UP
• पिता – आत्माराम दुबे
• माता – हुलसी देवी
• पत्नी – रत्नावली
• गुरु – नरहरीदास (अयोध्या के)
• बचपन का नाम – रामबोला
• अकबर के समकालीन
• 1574 ई. (1631 वि.संवत्) में अवधी भाषा में “रामचरितमानस” की रचना।
• रचना में समय – 2 वर्ष 9 माह 26 दिन
• अन्य नाम – तुलसी रामायण
• संसार के सर्वश्रेष्ठ 100 ग्रन्थों में 46वाँ स्थान हैं।
• कुल श्लोक – 10902
• 7 काण्ड – बाल (सबसे बड़ा), अयोध्या, अरण्य, किष्किंधा (सबसे छोटा), सुन्दर काण्ड, लंका/युद्ध, उत्तर
• तुलसीदास को “अभिनव वाल्मीकि” कहा जाता है।
• तुलसी का दर्शन विशिष्टाद्वैत का अनुसरण
• तुलसी की मृत्यु – अस्सीघाट (काशी)
• तुलसी जी का मंदिर – काँच मंदिर (चित्रकूट मध्य प्रदेश) प्रतिमा स्थापित है।
 प्रमुख ग्रंथ :-
1. विनयपत्रिका (तुलसी का अंतिम ग्रंथ)
2. वैरागय संदीपनी
3. दोहावली
4. कवितावली & कृष्ण गीतावली
5. गीतावली
6. पार्वती मंगल
7. जानकी मंगल
8. रामलला नहछू
9. बरवै रामायण
10. हनुमान बाहुक
11. रामाज्ञा प्रश्न
सूरदास :-
• जन्म – 1478 रूनकता में
• कहाँ – आगरा-मथुरा मार्ग पर/दिल्ली के निकट “सीही” नामक गाँव में
• पिता – रामदास
• बचपन का नाम – मदनमोहन
• भगवान श्रीकृष्ण के भक्त – सगुण भक्त में कृष्ण भक्ति धारा के संत।
• सूरदास जी को हिन्दी साहित्य का सूर्य माना जाता है।
• सम्पूर्ण काव्य सर्जन ब्रजभाषा में।
प्रमुख ग्रंथ :-
1. सूरसागर – सबसे प्रसिद्ध रचना/अकबर के समय में रची गई थी।
2. सूरसारावली – अनुक्रमणिका
3. साहित्य लहरी
• अकबर और जहाँगीर के समकालीन कवि थे।
• मृत्यु – 1583 पारसौली गोवर्धन उत्तरप्रदेश
• सूर की मृत्यु पर गोस्वामी विट्‌ठलनाथ ने कहा “पुष्टि मार्ग को जहाज जात है सो जाको कछु लेनो होए सो लेऊ।।”
वल्लभाचार्य :-
• जन्म – 1479-1531 तेलंगाना के ब्राह्मण परिवार में
• पिता – लक्ष्मणभट्ट
• माता – इल्लमा देवी
• शिक्षा- वाराणासी
• वाद – शुद्धाद्वैतवाद
• समकालीन शासक – विजयनगर (प्रथम हिन्दू साम्राजय) के शासक कृष्णदेवराय के समय वैष्णव सम्प्रदाय की स्थापना की थी।
• कृष्णदेवराय के समय 2 ग्रंथ लिखे –
1. सुबोधिनी, 2. सिद्धान्त रहस्य
• इन्होंने श्रीकृष्ण के बालरूप की पूजा की इसे ही शुद्ध माना। “श्रीनाथजी” के रूप में पूजा की।
• वृंदावन में श्रीनाथजी का भव्य मंदिर बनाया उनकी मूर्ति स्थापित की।
• औरंगजेब के समय यह मूर्ति उदयपुर पहुँचा दी गई। जिसे बाद में नाथद्वारा, राजसमंद में स्थापित किया गया।
• 1668 में औरंगजेब ने मूर्तियाँ तोड़ने का आदेश जारी किया।
• राजसिंह जी के समय इनके पुत्र विट्ठल यह मूर्ति उदयपुर लाए थे।
• “रूद्र सम्प्रदाय” की स्थापना की वल्लभाचार्य ने की
• वल्लभाचार्य चैतन्य महाप्रभु के समकालीन थे।
• रूद्र सम्प्रदाय के अनुयायी पुष्टिमार्ग भक्तिमार्ग में विश्वास रखते है।
• विट्‌ठलनाथ को अकबर ने गोकुला जेतपुरा की शासन की जागीरे प्रदान की।
• विट्‌ठलनाथ ने अष्टछाप मण्डली की स्थापना – 1565 ई. में  की।
वल्लभाचार्य के शिष्य     विट्ठलनाथ के शिष्य
1. कुंमनदास                   1. गोविन्दस्वामी
2. सूरदास                       2. छीतस्वामी
3. परमानंद दास               3. चतुर्भुज दास
4. कृष्णदास                     4. नंददास
दादूदयाल :-
• जन्म/जन्म स्थल – 1544-1603 ई. अहमदाबाद, साबरमती नदी के तट पर
• मृत्यु – नरैना में (जयपुर)
• पिता – पालकपिता – लोदीराम ब्राह्मण
• गुरु – कबीर के सर्वश्रेष्ठ शिष्य (वृद्वानंद)
• दादूदयाल – “राजस्थान का कबीर” कहा जाता है।
• दादूदयाल ने “दादूपंथ” की स्थापना जयपुर के पास 1554 नरैना (नरायणा) में की यह उनकी प्रधान पीठ मानी जाती है।
• मूर्तिपूजा जातिप्रथा का विरोध किया।
• दादूपंथ की 5 शाखाएँ – खालसा, नागा, खाकी, उत्तरादे, विरक्त
• दादू के उपदेश – “दादू रा दूहा” ”दादूवाणी” में – 5000 श्लोक – ढूँढाडी सधुक्कडी भाषा में (पश्चिमी हिन्दी)
• दादूपंथ के सत्संग स्थल – अलख दरीबा
• दादू ने दादूपंथ सम्प्रदाय का उपदेश दिया।
• दादू के कुल 152 शिष्य थे।
 प्रमुख शिष्य :-
1. सुन्दरदास
2. गरीबदास
3. रज्जब जी
4. मस्किनदास
5. बालिन्द
6. बखना
• रज्जब जी ने “यह संसार वेद है, यह सृष्टि कुरान है।”
• दादू की मृत्यु के बाद गरीबदास गद्दी पर बैठे।
• दादूपंथी शव को जलाने के बजाए जानवरों के भक्षण हेतु जंगलों में छोड देते हैं। (किन्तु वर्तमान में दाह संस्कार प्रचलित)
• गरीबदास ने 1 ही कमण्डल 1 झोली से बहुतों को भोजन खिला दिया था।
• दादूदयाल को अकबर ने धार्मिक मंत्रणा हेतु फतेहपुर सीकरी बुलाया था। इन्ही से प्रभावित होकर अकबर ने गौहत्या पर रोक लगाई।
गुरुनानक :-
• जन्म – 1469 ई.
• कहाँ – तलवण्डी (पंजाब)/ननकानासाहिब कहा जाता है।
• पिता – लाल कल्याणराय – “मेहताकालु जी” उपाधि
• माता – तृप्ता देवी
• पत्नी – सुलखनादेवी
• निर्गुण भक्ति धारा के संत थे।
• जात-पात में विश्वास नहीं करते थे।
• निर्गुण ईश्वर की उपासना की ईश्वर को अकाल पुरुष कहा।
• गुरुनानक के शिष्य का नाम – मरदाना – सारंगी बजाता
• गुरुनानक स्वयं – रबाब के साथ भजन करते थे।
• गुरुनानक के गीतों उपदेशों को आदिग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में संकलित।
• उदासियाँ – भारत, अफगान, अरब, फारस इन देशों की 4 बार यात्रा की उसे उदासियाँ कहा जाता है।
• इन्होंने श्रीलंका, मक्का मदीना का भी भ्रमण किया।
• विभिन्न देशों की यात्रा करने के बाद वे अन्ततोगत्वा करतारपुर में रहकर उपदेश करने लगे।
• गुरु नानक का निधन करतारपुर में हुआ था।
• सिख धर्म में कुल 10 गुरु – प्रथम गुरु नानक – इन्हीं के शिष्य “सिख” कहलाए।
1. गुरुनानक
2. गुरुअंगद
3. गुरु अमरदास
4. गुरु रामदास
5. गुरु अर्जुनदेव (आदिग्रंथ का संकलन कर्ता)
6. गुरु हरगोविन्द
7. गुरु हरराय
8. गुरु हरकिशन
9. गुरु तेगबहादुर
10. गुरु गोविन्दसिंह (खालसा पंथ की स्थापना)
चैतन्य महाप्रभु :-
• जन्म – 1486 ई.
• कहाँ – बंगाल, नदिंया नामक गाँव में
• पिता – जन्नाथमिश्र
• माता – शचिदेवी
• बचपन का नाम – विश्वम्भर नाथ
• वास्तविक नाम – “निमाई”
• प्रथम गुरु – गंगादास
• वास्तविक गुरु – केशवभारती
• सम्प्रदाय – बंगाल में गौड़ीय सम्प्रदाय की स्थापना की।
• वाद – अचिंत्य भेदाभेद
• संसार का प्रत्येक प्राणी कृष्णभक्ति के योग्य है।
• चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी उन्हें विष्णु, कृष्ण का अवतार मानते थे।
• अन्य नाम – गौरांग महाप्रभु, चैतन्य, बलदेव विद्या भूषण
• इनके प्रमुख शिष्य – हरिदास – सखी सम्प्रदाय संस्थापक
• चैतन्य के विचार उपदेशों का संकलन – कविराज कृष्णदास ने “चैतन्य चिरतामृत” नाम से किया।
• इनके द्वारा रचित केवल 8 श्लोक प्राप्त होते हैं। जिन्हें शिक्षाष्टांग कहा जाता है।
नरसी मेहता :- (15वीं सदी के)
•  जन्म – जूनागढ़ तलजा नामक गाँव में (गुजरात)
•  पिता – कृष्ण दामोदर
•  पत्नी – मणिकबाई
•  कृष्ण भक्ति की 1 लाख दोहे लिख।
•  “गुजराती साहित्य का सूरदास” कहा जाता है।
•  भजन – वैष्णवजन तो तेने कहिए, पीर पराई जानि रे....
•  महात्मा गांधी का प्रिय – नरसी जी ने रचना की।
 प्रमुख ग्रंथ :-
1. श्यामलदास नो विवाह
2. शृंगारमाला
3. हारमाला
4. सूरतसंग्राम
5. गोविन्दगमन
शंकरदेव :-
•  कहाँ के – असम के - “असम का चैतन्यमहाप्रभु”
• भगवान श्री कृष्ण की भक्ति किन्तु मूर्ति पूजा के विरोधी संत थे।
•  सम्प्रदाय – एकशरण सम्प्रदाय की स्थापना की थी।
•  निर्गुण संत – संन्यास में विश्वास नहीं करते थे।
•  भगवान की महिला सहयोगिनी को नहीं मानते थे।
•  इनके मंदिरों में भगवद्पुराण की पूजा होती थी।
•  प्रमुख ग्रंथ शंकरदेव का – “भक्ति रत्नाकर”
•  महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन :-
•  प्रेरक :- विठ्ठो्तबा (पंढरपुर का देवता, विष्ण का अवतार)
•  महाराष्ट्र धर्म 2 भागों में विभाजित था।
1.  बारकरी/वरकरी    वार + करी   परिक्रमा करने वाले लोग सौम्य स्वभाव के लोग, भावुक लोगों का धर्म, ये कृष्ण की पूजा करते थे।
•  संस्थापक – संत तुकाराम
2.  धरकरी/ धरना एक जगह ही रहने वाले रामदास पंथ के थे, राम की पूजा करते हैं, ये सैद्धान्तिक लोग थे।
•  धरकरी सम्प्रदाय के संस्थापक - रामदास
• विठ्‌ठोबा के प्रमुख संत बारकरी सम्प्रदाय के प्रमुख संत – ज्ञानदेव, नामदेव, तुकाराम
संत ज्ञानेश्वर :- (1285-1353 ई.)
•  जन्म – 1285 औरंगाबाद, महाराष्ट्र में
•  गुरु – निवृत्तिनाथ
•  पिता – विट्‌ठापंत
•  माता – रुक्मणी बाई
•  ज्ञानदेव के ग्रंथ:-
1. मराठी भाषा में – श्रीमद्भगवतगीता का टीका इसे “ज्ञानेश्वरी” और “भावार्थ दीपिका” कहा जाता। 
2. अमृतानुभव
3. चंगदेवप्रशस्ति
संत नामदेव :- (1270-1350 ई.)
• जन्म – 26 अक्टूबर, 1270
• कहाँ – पंढरपुर, MH नदी नरसी बामणी गाँव में (कृष्णा नदी किनारे)
• पिता – दामासेठ
• माता – गौणदेवी
• पत्नी – राजाबाई
• गुरु – विसोबा खेचर (विठ्‌ठोबा)
• नामदेव छीपा जाति के थे।
• नामदेव बचपन में डाकू थे – हृदय परिवर्तन होने से संत बन जाते हैं।
• 61 पद्य (कविताएँ) आदिग्रंथ में शामिल हैं।
• दिल्ली में सूफी संतों के साथ वाद-विवाद किया।
• नामदेव ने संत ज्ञानेश्वर के साथ कई स्थानों का भ्रमण किया तथा उनकी मृत्यु के बाद नामदेव महाराष्ट्र छोड़कर पंजाब के गुरदासपुर जिले में स्थित धोमन गाँव में जाकर बस गए थे।
• हिन्दू तथा सिख दोनों ही नामदेव के भक्त थे।
• संत तुकाराम :- (1520-1598 ई.)
• जन्म – पुणे में महाराष्ट्र
• पिता – बोलहोबा/बहेला
• माता – कनकाई
• पत्नी – जीजाबाई
• जाति – शुद्र – होने के बावजूद स्वयं विठ्‌ठोबा की पूजा करते
• ग्रंथ – तुकाराम री वाणी
एकनाथ जी :- (1533-1599 ई.)
• जन्म – पेठन, औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
• गुरु – जनार्दनस्वामी
• संत ज्ञानेश्वर से प्रभावित थे। “ज्ञानेश्वरी” का विश्वसनीय अंक प्रकाशित करवाया।
• ग्रंथ – (i) भगवतगीता के चार श्लोक पर टीका
 (ii) चतुश्लोकी भागवत       
 (iii) भावार्थ रामायण
 (iv) रुक्मणी स्वयंवर
• समर्थ गुरु रामदास :- (1608-1681 ई.)
• शिवाजी के आध्यात्मिक गुरु थे।
• इन्होंने परमार्थ सम्प्रदाय चलाया।
• प्रमुख ग्रंथ – दासबोध

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)
To Top