गुप्तकालीन कला एवं संस्कृति

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 गुप्तकालीन कला एवं संस्कृति

गुप्तकालीन प्रशासन:-
- गुप्त कुषाणों के सामंत थे
- गुप्त काल को हिन्दू संस्कृति का स्वर्ण-युग क्लासिकल युग कहा गया है।
- गुप्त साम्राज्य उत्तर में हिमालय से दक्षिण में विंध्य पर्वत तक तथा पूर्व से बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक था।
- गुप्त साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी।
- गुप्त साम्राज्य की शासन व्यवस्था राजतन्त्रात्मक थी।
- गुप्त सम्राटों को ‘महाराजाधिराज’, परमभटारक,
 एकाधिराज, महाराजाधिराज पृथ्वीपाल, परमेश्वर,
 सम्राट, परमदेवता, चक्रवर्तिन आदि उपाधियाँ थी।
केन्द्रीय अधिकारी:-
1.प्रतिहार-सुरक्षा अधिकारी
2.महाप्रतिहार-सुरक्षा अधिकारियों का मुखिया
3.महाबलाधिकृत-सेनापति(महसेनापति)
4.महादण्डनायक-मुख्य न्यायाधीश
5.महासंधिविग्राहिक-सामान्य दिनों में विदेशी मंत्री तथा युद्धकाल में शांति/संधि करना
6.कुमारामात्य- सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी (वर्तमान IAS जैसा)
7.अमात्य-गुप्तकालीन नौकरशाह
8.पुस्तपाल-भूमि का लेखा-जोखा रखने वाला
9.दण्डपाशिक-गुप्तकालीन पुलिस अधिकारी (वर्तमान SP के समान)
10.गोल्मिक-वन अधिकारी
11.विनयस्थिति स्थापक-सर्वोच्च धार्मिक अधिकारी
12.महाअक्षपाटलिक-आय-व्यय का ब्यौरा रखने वाला (वित्त मंत्री), लेखाधिकारी
13.शोल्किक-सीमा शुल्क वसूलने वाला अधिकारी
14.ध्रुवाधिकारणिक-राजस्व संग्रह करने वाला अधिकारी
15.रणभडागारिक-सेना की सामग्री जुटाने वाला अधिकारी
16.महा भंडाराधिकृत-कोषाध्यक्ष (राजकोषीय अधिकारी)
17.अग्रहारिक-दान विभाग का प्रमुख
18.करणिक-लिपिक
- समुद्र गुप्त के समय महादण्डनायक, महा संधिविग्राहक कुमारामात्य-तीनों पद ‘हरिषेण’ नामक कवि के पास थे, जबकि चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय यह तीनों पद हरिषेण के पुत्र ‘वीरषेण’ के पास थे।
- गुप्तों का राज्य चिह्न - गरुड़ था।
- राजा को विष्णु के रूप में पूजा जाता था।
प्रान्तीय शासन  
- गुप्त काल में प्रान्त को भुक्ति, अवनी, देश कहा जाता था।
- गुप्त प्रशासन के प्रमुख प्रान्त थे-
 काल→प्रान्त→प्रांतीय प्रशासक
 1.चन्द्रगुप्त द्वितीय - तीरभुक्ति - गोविंद गुप्त
 2.कुमार गुप्त प्रथम - पूर्वी मालवा (एरण) - घटोत्कच गुप्त
 3 .कुमार गुप्त प्रथम - उत्तरी बंगाल (पुण्ड्रवर्द्धन) - चिरादत्त
 4. स्कन्द गुप्त - सौराष्ट्र - वर्णदत्त
- अन्य प्रान्त पश्चिमी मालवा (अवन्ति), मगध आदि।
- गुप्त साम्राज्य की इकाई विभाजन
 1.साम्राज्य→भुक्ति (प्रांत/राज्य)→विषय(जिला)→
    वीथी (तहसील)→ पेंठ (ग्राम/गाँव)
- जिला को ‘विषय’ कहा जाता था, जिसका प्रधान अधिकारी ‘विषयपति’ (कुमारामात्य) होता था।
- गुप्तकाल में प्रमुख नगर में नगरपालिकाएँ चलती थी और नगर का प्रधान अधिकारी ‘पुरपाल’ होता था।
- जूनागढ के लेख से जानकारी मिली कि गिरनार नगर का ‘पुरपाल चक्रपालित’ था, जो सौराष्ट्र के उपरिक (राज्यपाल) पर्णदत्त का पुत्र था।
- गुप्तकाल में राजा द्वारा सीधे संचालित प्रान्त प्रदेश जिनको ‘देश’ कहते थे, इसी देश का राज्यपाल, को ‘गोप्ता’ कहा जाता था। गुप्त काल में ग्राम सभा को मध्य भारत में ‘पंचमण्डली’ कहते थे।
गुप्त काल न्याय-प्रशासन-
• गुप्त काल में सम्राट सर्वोच्च न्यायाधीश होता था।
• सम्राट के अलावा एक मुख्य न्यायाधीश होता था-महादण्डनायक।
• स्मृति ग्रन्थों में ‘पूग’ तथा ‘कुल’ नामक न्याय करने वाली संस्थाओं का भी उल्लेख है।
गुप्तकालीन सैनिक संगठन-
• महाबलाधिकृत- सेना का सर्वोच्च अधिकारी
• महापीलुपति -हाथियों की सेना का प्रधान अधिकारी
• भटाश्वपति -घुड़सवारों की सेना का प्रधान अधिकारी।
• रणभाण्डागरिक - सेना में साजो-सामान की व्यवस्था करने वाला अधिकारी।
• प्रयाग प्रशस्ति में गुप्त काल के प्रमुख अस्त्र-शस्त्रों के नाम-शर, तोमर, मिन्दिपाल, नाराच, परशु, शंकु आदि मिले हैं।
भूमि राजस्व-
• मन्दिरों, ब्राह्मणों को जो भूमि दान में दी जाती थी उसे ‘अग्रहार’ कहा जाता था। यह भूमि सभी करों से मुक्त होती थी।
• गुप्तकाल में भूमि - कर  संग्रह करने के लिए भू-आलेखों को सुरक्षित रखने के लिए ‘महाक्षपटलिक’ और ‘करणिक’ नाम के अधिकारी होते थे।
• गुप्त अभिलेखों में भूमिकर को ‘उद्रंग तथा भागकर’ कहा जाता था। स्मृति ग्रन्थों में इसे राजा की वृत्ति कहा गया है।
• गुप्तकाल में राजस्व उपज का छठा भाग लिया जाता था।
• गुप्तकाल में नगर की वस्तुओं के आयात-निर्यात पर ‘भूतोपात्तप्रत्याय’ नामक कर उल्लेख है।
• स्कन्द गुप्त के बिहार लेख में ‘शौल्किक’ नामक अधिकारी का उल्लेख है वह सीमा शुल्क विभाग का प्रधान होता था।
• गुप्तकाल में कर की दर 1/4 से 1/6 के बीच होती थी। कृषक हिरण्य (नकद) या मेय (अन्न) दोनों रूप में कर जमा कर सकते थे।
सामाजिक जीवन
• गुप्तकाल में वर्णव्यवस्था जातियाँ थी।
• चार वर्णों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र थे।
• गुप्तकाल में मृच्छकटिक रचना में चारूदत्त नाम ब्राह्मण को ‘सार्थवाह’ (व्यापारी) कहा गया है।
• स्मृति ग्रन्थों फाह्यान के विवरण से जानकारी मिली है कि गुप्तकाल के समाज में अस्पृश्यता मौजूद थी।
• फाह्यान ने अछूतों को ‘चाण्डाल’ कहा है।
• गुप्तकालीन समाज में ब्राह्मण क्षत्रिय जाति की सर्वाधिक प्रतिष्ठा थी।
गुप्तकालीन आर्थिक जीवन
गुप्त काल शासनकाल आर्थिक दृष्टि से समृद्ध सम्पन्न था।
कालिदास ने कृषि पशुपालन को महत्त्व दिया है।
गुप्त काल में व्यवसाय उद्योग संचलन के श्रेणियाँ (Guilds) करती थी जो समिति थी।
मंदसौर अभिलेख में रेशमी सूत बुनने वालों की समितिपट्वाय श्रेणी का उल्लेख है।
इन्दौर अभिलेख मेंतैलिक श्रेणीका उल्लेख है।
गुप्त काल में श्रेणियाँ बैंकों का काम भी करती थी।
गुप्त काल में सोने चाँदी के सिक्कों का अनुपात क्रमश: 1:16 था।
गुप्त काल में उज्जयिनी, भड़ौच, प्रतिष्ठान, विदिशा, पाटलिपुत्र, प्रयाग, ताम्रलिप्ति, वैशाली, अहिच्छत्र, कौशाम्बी, मथुरा आदि प्रमुख व्यापारिक नगर थे।
चन्द्रगुप्त द्वितीय ने उज्जयिनी को अपनी दूसरी राजधानी के रूप में विकसित किया था।
इस काल में भारतीय मालवाहक जहाजों का निर्माण करने लगे। गंगा, नर्मदा, कृष्णा, गोदावरी ब्रह्मपुत्र नदियों से व्यापार होता था।
गुप्त काल में बंगाल में ताम्रलिप्ति पश्चिमी भारत में भृगुकच्छ (भड़ौच) प्रमुख बन्दरगाह थे।
- गुप्त काल में व्यापारी एक जगह से दूसरी जगह वस्तुओं को लेकर जाते थे तो वह ग्रुप में चलते थे। इसेसार्थऔर इनके मुखिया कोसार्थवाहकहते थे।
गुप्त काल में व्यापारियों की एक समिति होती थी जिसेनिगमकहते थे, निगम के मुखिया कोश्रेष्ठिकहते थे।
 गुप्तकालीन धार्मिक जीवन
गुप्त सम्राट वैष्णव धर्म के अनुयायी थे इनकी उपाधिपरमभागवतथी।
गुप्त काल ब्राह्मण (हिन्दू) धर्म की उन्नति के लिए प्रख्यात है।
समुद्र गुप्त ने बौद्ध विद्वान वसु-बन्धु को अपने पुत्र की शिक्षा-दीक्षा के लिए नियुक्त किया था।
गुप्त काल के उत्तर भारत में वैष्णव धर्म अत्यधिक प्रचलित था।
गुप्त काल में भगवान विष्णु के मन्दिरों के निर्माण का उल्लेख है।
• गुप्त काल में विष्णु के अलावा नाग, सूर्य, शिव, यक्ष, दुर्गा, गंगा-यमुना आदि की उपासना होती थी।
 
 
गुप्तकालीन साहित्य और विज्ञान


साहित्य, विज्ञान, कला संस्कृति के चहुँमुखी विकास के दृष्टिकोण से गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग कहा जाता है।
इसी काल को क्लासिकल युग या पेरीक्लीन युग के नामों से भी जाना जाता है।
गुप्त काल में संस्कृत भाषा की उन्नति हुई तथा गुप्त काल की राजभाषासंस्कृतबनी।
गुप्त शासक संस्कृत भाषा साहित्य के प्रेमी थे।
प्रयाग प्रशस्ति समुद्र गुप्त कोकविराजकहती है।
हरिषेण की प्रसिद्ध कृतिप्रयाग-प्रशस्तिहै, जिसे इसमेंकाव्यकहा गया है, इसका आधा भाग पद्य में तथा आधा भाग गद्य में है।
वीर सेनशाबकी रचनाउदयगिरि गुहालेख है।
कुमार गुप्त का प्रथम दरबारी कवि वत्सभट्टि था। वह संस्कृत का प्रकण्ड विद्वान था।
मालव प्रदेश के दशपुर में सूर्य मंदिर स्थित है, इसका उल्लेख मंदसौर प्रशस्ति में है।
कवि कालिदास चन्द्रगुप्त द्वितीय के समकालीन था।
कवि कालिदास ने सात ग्रन्थों की रचना कीकुमार संभव, रघुवंश, ऋतुसंहार, मेघदूत, विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्र तथा अभिज्ञान शाकुन्तलम।
कालिदास कोभारत का शेक्सपीयरकहा जाता है।
• ‘रघुवंश19 सर्गों का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है।
कुमार संभव में 17 सर्ग हैं।
सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य का सर्वोत्कृष्ट नाटकअभिज्ञान-शाकुन्तलम्है।  ‘किरातार्जुनीयमहाकाव्य 18 सर्गों का भारवि ने लिखा।
• ‘मृच्छकटिकनाटक शूद्रक ने लिखा जिसमें कुल 10 अंक हैं।
मुद्राराक्षस देवीचन्द्रगुप्तम् नाटक की रचना विशाखदत्त ने की।
• ‘वासवदत्ताकी रचना सुबन्धु ने की।
• ‘चान्द्रव्याकरणसंस्कृत व्याकरण ग्रन्थ की रचना बंगाली विद्वान चन्द्रगोमिन् ने की।
• ‘पंचतंत्रकथा संग्रह की रचना विष्णु वर्मा ने की। सर्वाधिक 50 भाषाओं में अनुवादित ग्रंथ है।
• ‘अमरकोषकी रचना अमरसिंह ने की।
कामन्दक का नीतिसार और वात्स्यायन का कामसूत्र गुप्त काल की रचना है।
• ‘रावणवधयाभटि्टकाव्यकी रचना भट्टि ने की थी।
वराहमिहिर कीवृहत्संहिता और अग्निपुराणरचना है।
 विज्ञान एवं तकनीकी विकास
गुप्त काल के आर्यभट्ट, वराहमिहिर एवं ब्राह्मगुप्त संसार के प्रसिद्ध नक्षत्र वैज्ञानिक और गणितज्ञ थे।
आर्य भट्ट ने अपने ग्रंथआर्यभट्टीयम्(आर्यभट्टीयान) में सर्वप्रथम प्रस्तुत किया कि पृथ्वी गोल है, वह अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य का चक्कर लगाती है जिससे सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण होते हैं।
आर्य भट्ट ने दशमलव प्रणाली का विकास किया।
वराह, मिहिर कीवृहत संहिताखगोल शास्त्र, वनस्पति विज्ञान तथा प्राकृतिक इतिहास का विश्वकोष है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार का प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि था।
आर्य भट्ट चन्द्रगुप्त द्वितीय के नवरत्नों में शामिल नहीं थे।
आर्य भट्ट ने गणित को ज्योतिष से अलग किया ऐसा करने वाले प्रथम व्यक्ति थे।
800 . में आर्य भट्ट के ग्रंथआर्य भट्टीयम्का अरबी भाषा में अनुवादजीज-अल-बहरके नाम से जॉर्ज बूलर के द्वारा किया गया।
वराहमिहिर प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि पृथ्वी में कोई ऐसी शक्ति है, जो चीजों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
ब्रह्मगुप्त प्रथम ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त प्रतिपादित किया।
चन्द्रगुप्त द्वितीय का मेहरौली लौह स्तम्भ लेख (दिल्ली) गुप्तकालीन धातु-विज्ञान का अद्भुत नमूना है।
बिहार के सुल्तान गंज से प्राप्त बुद्ध की खड़ी हुई तांबे की प्रतिमा, एक टन वजनी और 71/2 फीट ऊँची है, धातु विज्ञान का उत्कृष्ट नमूना है।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबारी नवरत्न- कालिदास धन्वन्तरी, बराहमीहिर, अमरसिंह, क्षपणक, शंकु, वेतालभट्, घटकर्पर तथा वररुचि।
बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन गुप्त काल में रसायन धातु विज्ञान का विद्वान था।
नागार्जुनसोना, चाँदी, ताँबा, लौहा आदि में रोग प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है। इनकी भस्म से रोग निवारण किया पारे की खोज की।
• ‘रस चिकित्सा सिद्धांतकी रचना नागार्जुन ने की।
प्रख्यात ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर की सर्वप्रमुख रचनाबृहज्जातकहै।
• ‘पंचसिद्धान्तिका’, बृहत्संहिता, लघु जातक आदि वराहमिहिर की रचना है।
 गुप्तकालीन वास्तुकला (मंदिर निर्माण कला)
गुप्तकाल में मंदिर निर्माण कला का जन्म हुआ।
पहली बार शिखर युक्त मंदिर बनाए गए सभा मंडपों का प्रयोग किया गया।
मंदिर निर्माण की प्रमुख शैलियाँ
1. नागर शैली
यह शैली उत्तरी भारत में प्रचलित थी।
इसे आर्य शैली भी कहा जाता है।
 इस शैली की विशेषता
इस शैली में विशाल शिखर सभा मंडलों का प्रयोग होता था।
भारत में प्रथम विशाल शिखर युक्त मंदिर उत्तर प्रदेश झाँसी स्थित देवगढ़ दशावतार मंदिर माना जाता है।
 द्रविड़ शैली :
यह शैली मूलत: दक्षिण भारत में प्रचलित थी।
 विशेषता :
इस शैली में मंदिरों के विशाल प्रवेशद्वार हुआ करते थे, जिन्हेंगोपुरमकहा जाता था।
इन मंदिरों का आकार पिरामिड के समान निर्माण बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर किया जाता था।
पल्लव चौल शासकों द्वारा इस शैली में मंदिरों का निर्माण करवाया गया था।
बेसर शैली :
यह शैली नागर द्रविड़ शैली दोनों का मिलाजुला रूप था तथा इसे खच्चर या चच्चर शैली भी कहा जाता है।
चालुक्य शासकों ने इस शैली का विशेष प्रयोग किया।
चालुक्य संरक्षण के कारण इस शैली का प्रयोग उत्तर पश्चिमी, दक्षिणी पूर्वी क्षेत्रों में किया गया।
एकायतन शैली :
ऐसा मंदिर जिसके गर्भगृह में एक ही प्रतिमा/मूर्ति हो, उसे एकायतन शैली कहा जाता है।
नागर शैलीगुप्त काल के मंदिर इसी शैली में निर्मित हैं।
द्रविड़दक्षिण भारत की प्रमुख शैली है।
एकायतनगर्भगृह में 1 प्रतिमा होती है।
पंचायतनगर्भगृह में 1-5 प्रतिमा तक होती हैं।
महामारू शैलीएक ही स्थान पर एक से अधिक (अनेक) मंदिरों का निर्माण किया जाता है।
तक्षण कलाछैनी हथौड़े के माध्यम से मूर्ति निर्माण का कार्य किया जाता था।
सिलावटमूर्ति निर्माण करने वाले कलाकारों को कहा जाता था।
गुप्तकालीन मंदिरों की विशेषताएँ :
गुप्तकाल की वास्तुकला में मंदिर सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।
ईंट पत्थर से निर्माण होता था।
मंदिर निर्माण ऊँचे सपाट चबूतरे पर होता था। चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ थीं।
गर्भगृह के द्वारपाल के रूप में मकरवाहिनी (गंगा) कूर्मवाहिनी (यमुना) आकृति अंकित होती थी।
प्रारम्भ में मंदिर की छत चपटी बाद में शिखर भी बनाये जाने लगे।
मंदिर के अन्दर वर्गाकार कक्ष होता था जिसमें प्रतिमा रखते थे, इसे ही गर्भगृह कहा जाता था।
कालिदास ने गुप्तकालीन मंदिरों पर शंख पद्म के अंकन का उल्लेख किया।
गुप्त काल में सिरपुर भीतर गाँव के मंदिर ही ईंटों से बने है, दूसरे मंदिर पत्थरों से निर्मित हैं।
गुप्त काल में चार सिहों की मूर्तियाँ एक-दूसरे से पीठ सटाये हुए वर्गाकार स्तम्भों के शीर्ष भाग पर होते थे।
गुप्तकालीन प्रमुख मंदिर :
1. साँची का मंदिर :
साँची के महास्तूप के दक्षिण-पूर्व की ओर बने इस मंदिर की संख्या 17 है।
इसमें छत सपाट गर्भगृह चौकोर है। सामने छोटा स्तम्भ युक्त मण्डप है। यह आकार में छोटा है।
गुप्त काल का प्रारम्भिक मंदिर है।
2. भूमरा का शिव मंदिर :
मध्य प्रदेश के सतना जिले में भूमरा नाम के स्थान पर है।
गर्भगृह पाषाण निर्मित है, प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की आकृति अंकित है।
गर्भगृह के अन्दर एकमुखी शिवलिंग स्थापित किया गया है।
के. डी. वाजपेयी ने 1968 . में सतना जिले के उचेहरा के पास पिपरिया नामक स्थान से विष्णु मंदिर मूर्ति की खोज की थी।
इसके अलावा गुप्तकालीन मंदिरों के अवशेष सतना में खोह, नागौद, जबलपुर में मढ़ी स्थानों से प्राप्त हुए हैं।
भूमरा का मंदिर पाँचवीं शताब्दी . में बनाया गया।
3. तिगवां का विष्णु मंदिर :
मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में स्थित है।
तिगावा के विष्णु मंदिर के बीच में गर्भगृह है।
स्तम्भों के ऊपर कलश कलशों पर सिंह की मूर्ति है।
प्रवेश द्वार के पार्श्वों पर गंगा, यमुना की आकृतियाँ उनके वाहन सहित उत्कीर्ण है।
4. एरण का विष्णु मंदिर :
यह मंदिर मध्य प्रदेश के सागर जिले में एरण नामक स्थान पर स्थित है।
यह विष्णु मंदिर अब ध्वस्त हो चुका है।
केवल गर्भगृह का द्वार सामने दो स्तम्भ खड़े हुए अवशेष बने हैं।
5. नचनाकुठार का पार्वती मंदिर
मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में अजयगढ़ के समीप प्राप्त हुआ है।
यह मंदिर पाँचवीं शताब्दी . में बनाए गए।
यहाँ चारों ओर परिक्रमापथ बनाया गया है।
6. देवगढ़ का दशावतार मंदिर :
यह मंदिर उत्तर प्रदेश के ललितपुर (प्राचीन झांसी) जिले में देवगढ़ नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।
यह मंदिर पंचायत शैली में निर्मित है।
इसमें गर्भगृह के ऊपर 12 मीटर ऊँचे शिखर का निर्माण किया गया है।
यह गुप्त काल का प्रथमशिखरवाला मंदिर है, जो वास्तु कला का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है।
देवगढ़ के दशावतार मंदिर में वास्तुकला का विकसित रूप पाया जाता है।
इसमें 4 सभा मंडपों का निर्माण किया गया है।
इसमें भगवान विष्णु को शेषशय्या पर विराजमान नाभि से कमल निकलता हुआ तथा माता लक्ष्मी को पैर दबाते हुए दिखाया गया है।
7. भीतर गाँव का विष्णु मंदिर :
यह उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित है। ईंटों से निर्मित प्रथम हिन्दू मंदिर है।
इस मंदिर का निर्माण ईंटों से किया गया है।
इस मंदिर की हजारों उत्खचित ईंटें लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
यह वर्गाकार चबूतरे पर बना गर्भगृह भी वर्गाकार है। गर्भगृह के सामने मण्डप है।
यह मंदिर भी शिखर युक्त है, भारत में पहली बार इसके शिखर मेंमहराबोंका प्रयोग।
बाहरी दीवारों में बने ताखों में गणेश, आदिवाराह, नदी, दुर्गा आदि की मृण्मूर्तियां रखी गई हैं।
छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के सिरपुर नामक स्थान से ईंटों का निर्मित एक अन्य मंदिर प्राप्त हुआ है। इसेलक्ष्मण मंदिरकहा जाता है।
राजस्थान के कोटा से मुकन्द दर्रा (कोटा का दर्रा) से मंदिर प्राप्त हुआ जो प्रारम्भिक गुप्त मंदिर है।
शिव मंदिरखोह (नागौद, मध्य प्रदेश)
मंदिरों की मुहर :
गया (बिहार) के विष्णु पाद मंदिर की मुहर मेंविष्णुपाद स्वामी नारायणशब्द खुदे थे।
वैशाली के सूर्य मंदिर की मुहर परभगवतो आदित्यस्ययह शब्द खुदे थे।
 स्तूप तथा गुहास्थापत्य कला :
गुप्तकालीन दो बौद्ध स्तूपराजगृह स्थितजरासंध की बैठकसारनाथ का धमेख स्तूप का निर्माण इसी काल में हुआ।
नरसिंह गुप्त बालादित्य ने नालन्दा में बुद्ध का भव्य मंदिर बनवाया था।
 अजंता की गुफाएँ :
यह महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के अनिष्ठा गाँव में स्थित है।
यहाँ कुल 29 गुफाएँ हैं।
गुप्तकालीन गुफा संख्या 16 17 हैं।
खोज1819 . में मद्रास रेजीमेन्ट के एक सैनिक           ए. कनिंघम के द्वारा की गई।
इन गुफाओं का निर्माण वाकाटक नरेश पृथ्वीसेन II के सामन्त वराहदेव, व्याघ्रदेव द्वारा करवाया गया था।
इन गुफाओं का आकार घोड़े के पैर के नाल के आकार की है।
चैत्य गुफाएँ (बिहार बौद्ध मठ) की संख्या चार है, जो गुफा संख्या 9, 10, 19 और 26 में स्थित हैं।
पहले सर्वाधिक चित्र गुफा संख्या16 में थे, परन्तु अब सर्वाधिक चित्र गुफा संख्या17 में हैं, इसे चित्रशाला कहा जाता है।
कई इतिहासकारों के अनुसार गुफा संख्या 16, 17 19 गुप्तकालीन मानी गई हैं, लेकिन प्रामाणिक पुस्तकों में केवल गुफा संख्या16 17 का उल्लेख है।
अजंता गुफाओं के चित्र पारलौकिक (धार्मिक) है।
गुफा संख्या – 8 13 हीनयान (बौद्ध) से संबंधित है।
इन समस्त गुफाओं में गुफा संख्या13 सबसे प्राचीन गुफा है।
अजन्ता की गुफा बौद्ध धर्म के महायान शाखा से संबंधित हैं।
गुफा संख्या - 16
भगवान बुद्ध के वैराग्य उत्पन्न होने के 4 दृश्य मिलते हैं।
उपदेश सुनते हुए भक्तगण।
मरणासन्न अवस्था में राजकुमारी का चित्र सबसे प्रसिद्ध चित्र। इस गुफा का सबसे प्रसिद्ध चित्र।
यह राजकुमारी भगवान बुद्ध के भाई नंदिवर्धन की पत्नीसौन्दरी।
यह गुफा अजन्ता के विहारों में सबसे उत्कृष्ट हैं।
 गुफा संख्या - 17
वर्तमान में सर्वाधिक चित्र इसी गुफा में है इसलिए इसे चित्रशाला भी कहा जाता है।
इसमें बुद्ध के गृहत्याग का (महाभिनिष्क्रमण) का चित्रण किया गया है।
भगवान बुद्ध की पत्नी यशोधरा द्वारा अपने पुत्रराहुलको दान में देते हुए (त्याग) का चित्रण किया गया है।
अजन्ता की गुफाओं के अन्य चित्र-
• झुला-झुलते राजकुमारी का चित्रण-गुफा संख्या-2
• बैठी हुई स्त्री का चित्र-गुफा संख्या-9
• पुजारियों का दल स्तूप की ओर जाते हुए-गुफा संख्या-9
• साण्डों की लड़ाई-गुफा संख्या-1।
• गुफा संख्या 1 में पुलकेशिन द्वितीय द्वारा ईरानी शासक परवेज शाह खुसरो का स्वागत करते हुए दिखाया गया है।
गुप्तकालीन मूर्तिकला (मूर्ति निर्माण) के प्रमुख केन्द्र-
• मथुरा:- इस मूर्तिकला में खड़े बुद्ध की प्रतिमा को दर्शाया गया है।
• सारनाथ:- इस मूर्तिकला में बैठे हुए बुद्ध की प्रतिमा को दर्शाया गया है।
• पाटलिपुत्र:- सुल्तानगंज (बिहार) से बुद्ध की 7-5 फीट ऊँची ताँबे की प्रतिमा प्राप्त हुई है, जो वर्तमान में बरमिंघम संग्रहालय में है।
• गुप्तकाल की मूर्तियों में कुषाणकालीन नग्नता एवं कामुकता का पूर्णत: लोप हो गया था।
• कुषाण कला से प्रभावित एक मात्र बुद्ध की मूर्ति मथुरा शैली में निर्मित है यह मनकुंवर (प्रयागराज) से मिलती है।
• गुप्तकालीन धातु मूर्तिकला में नालन्दा तथा सुल्तानगंज की बुद्ध की मूर्ति उल्लेखनीय है।
• गुप्तकाल में चित्रकला के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई। इस काल की चित्रकला के अवशेष अजन्ता (महाराष्ट्र के औरंगाबाद में) तथा बाघ (मध्य प्रदेश) गुफाओं से प्राप्त होते हैं।
• बाघ की गुफाएँ ग्वालियर के समीप विंध्यपर्वत को काट कर बनाई गयी थी। 1818 ई. में डैजरफील्ड ने इन गुफाओं को खोजा, जहां से 9 गुफाएँ मिली है। बाघ गुफा के चित्र आम जन-जीवन से संबंधित है।
• मेहरौली लौह स्तम्भ से जानकारी मिलती है कि चन्द्रगुप्त ने विष्णु पद नाम पर्वत पर विष्णु स्तम्भ स्थापित करवाया था।
शैव मूर्तियाँ-
• करमदण्डा - शिव की चतुर्मुखी मूर्ति
• खोह - एकमुखी शिवलिंग
• गुप्तकालीन शिव के अर्धनारीश्वर रूप की दो मूर्तियाँ मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित है।
• भुमरा - के शिव मन्दिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग स्थापित है।
• विदिशा से शिव के हरिहर स्वरूप कि प्रतिमा जो इस समय दिल्ली संग्रहालय में हैं।
• गुप्तकाल की बनी मयूरासनासीन का कार्तिकेय की एक सुन्दर मूर्ति पटना संग्रहालय में सुरक्षित है।
आर्यभट् नवरत्नों में शामिल नहीं थे।
• गुप्त संवत् का श्रेय चन्द्रगुप्त प्रथम को दिया जाता है, परन्तु इस संवत् का सर्वप्रथम प्रयोग ‘’चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय के’’ ‘’मथुरा अभिलेख’’ में किया गया है।
• चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ‘’कालिदास’’ को अपना दूत बनाकर ‘’कुतल’’ देश भेजा।
• फाह्यान-चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल के दौरान-भारत आया। वह 399 ई.-414 ई. तक भारत में रहा।
• ‘फाह्यान भारत में धर्माचार्य के रूप में आया।
• बैद्ध धर्म के विस्तृत ज्ञान प्राप्त हेतु भारत आया।
• उसका ग्रंथ ‘’फो-को-की’’ है अपने इस ग्रंथ में ‘’चन्द्रगुप्त द्वितीय’’ के बारे में उल्लेख नहीं किया है।
• उसने मध्य प्रदेश, पाटलिपुत्र (मगध) को ब्राह्मणों का देश बताया।
• लोग मांस, लहसुन नहीं खाते।
• लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते थे।
• मध्य प्रदेश के लोग व्यापार हेतु ‘’कौड़ियों’’ का प्रयोग करते थे।
• फाह्यान ने न्याय व्यवस्था का उल्लेख करते हुए लिखा है कि-‘’राज्य में अपराध नहीं के बराबर।’’
• प्रथम राजधानी-पाटलिपुत्र।
• ब्राह्मणों को दंड नहीं दिया जाता था।
• बार-बार अपराध करने पर ‘’अपराधी का दाहिना हाथ काट लिया जाता था।’’
• चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय साम्राज्य की दूसरी राजधानी ‘’उज्जैन’’।
• गुप्त शासकों ने सर्वाधिक स्वर्ण के सिक्के जारी किये। सोने के सिक्कों को ‘’दीनार’’ कहा गया।
• गुप्तकालीन समाज में स्त्रियों का स्थान गौण था।
स्त्रियाँ व्यक्तिगत सम्पत्ति समझी जाती थीं। बाल विवाह प्रचलन था तथा पर्दाप्रथा केवल उच्च वर्ग में प्रचलित थी। सती प्रथा का प्रचलन था।
• सती प्रथा का प्रथम उल्लेख 510 ई. के एरण अभिलेख से मिलता है।
• गुप्तकाल में नारद ने 15 प्रकार के दासों का उल्लेख किया है। दासों की स्थिति दयनीय थी। दासत्व से मुक्ति का पहला प्रयास नारद ने किया।
प्रयाग प्रशस्ति-
• यह प्रशस्ति अशोक के प्रयाग-कौशाम्बी स्तम्भ लेख पर उत्कीर्ण है।
• इसकी रचना हरिषेण द्वारा की गई तथा उत्कीर्ण कर्त्ता तिल भट्‌ट थे।
• इसकी भाषा विशुद्ध संस्कृत थी लिपि ब्राह्मी लिपि थी।
• इस प्रशस्ति में समुद्रगुप्त को सौ युद्धों का विजेता तथा उसके ऊपर सौ घावों का उल्लेख मिलता है।
• प्रयाग-प्रशस्ति में ‘’अश्वमेघ यज्ञ’’ का उल्लेख नहीं मिलता है।
• उदयगिरी का गुहाभिलेख (विदिशा, मध्य प्रदेश)
- निर्माण:- हरिषेण के पुत्र-वीरषेण द्वारा करवाया गया।
-  गुफा में शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया।
• मथुरा स्तम्भ लेख-
- यह अभिलेख चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय था।
- मथुरा स्तम्भ लेख में जैन तीर्थंकरों का उल्लेख मिलता है।
- चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा प्रचलित गुप्त संवत की पहली बार जानकारी मिलती है।
पुना ताम्र पत्र (महाराष्ट्र):-
- पूना ताम्र पत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त द्वारा उत्कीर्ण करवाया गया था।
• इसमें शकों पर विजय वाकाटकों के साथ गठबंधन का उल्लेख मिलता है।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक शासक रुद्रसैन द्वितीय के साथ किया इसी की सहायता से इसने शकों को पराजित किया तथा शकों को पराजित करने के उपलक्ष्य में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की।
• इसमें धरण गौत्र का उल्लेख मिलता है।
गुप्त साम्राज्य का पतन-
- गुप्त साम्राज्य का पतन विभिन्न कारणों का परिणाम था। इसके पतन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
-  आनुवांशिक शासकीय पद
-  अयोग्य तथा दुर्बल अधिकारी
-  शासन व्यवस्था का सामंतीकरण
-  ब्राह्य आक्रमण
-  आर्थिक संकट।
- समुद्रगुप्त प्रथम गुप्त शासक, जिसके अभिलेख प्राप्त हुए।

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