त्रिपक्षीय संघर्ष

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त्रिपक्षीय संघर्ष
पृष्ठभूमि:
हर्ष की मृत्यु के बाद उत्तरी भारत में पुन: राजनैतिक विकेन्द्रीकरण व विभाजन की प्रक्रिया पुन: प्रारम्भ हुआ था।
          हर्ष का कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था अत: छोटे-छोटे क्षत्रिय राज्यो ने अपने-अपने को पुन: स्वतंत्र कर लिया जैसे-
1.       असम कामरूप के शासक भास्कर वर्मा ने कर्णसुवर्ण व उसके आस-पास के क्षेत्र को जीतकर अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
2.       मगध- हर्ष के सांमत- माधवगुप्त ने स्वतंत्र घोषित कर दिया माधवगुप्त की मृत्यु के बाद 650 ई. में उसका पुत्र आदित्यसेन शासक बना।
आदित्यसेन
          आदित्यसेन ने आस-पास के क्षेत्रों को जीता- परमभट्‌टारक व महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
          इसकी समसत जानकारी मदारगिरी अभिलेख से प्राप्त होती है।
3.       उत्तर पश्चिमी भागों में भी अनेक स्वतंत्र राज्य स्थापित हुए। कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना हुई।
कन्नौज की स्थिति:
          चीनी लेखक मात्वानलिन के अनुसार चीन के नरेश (647 ई.) में अपना एक दूत मंडल “वंग हुवनसे” के नेतृत्व में भारत भेजा। जिस समय यह दूत मंडल कन्नौज पहुँचा था। उस समय हर्ष की मृत्यु हो चुकी थी। अर्जुन ने वंग के दूत मंडल को रोका व लूटपाट की। वंग ने तिब्बत के शासक- गम्पों के पास शरण ली। नेपाल के शास अशुवर्मा ने भी सैनिक सहायता दी।
तिब्बत व नेपाल की संयुक्त सेना की सहायता से वंग ने अर्जुन को पराजित कर बंदी बनाकर चीन ले गया वहीं जेल में अर्जुन की मृत्यु हो गई।
अगले 75 वर्ष तक कन्नौज का इतिहास अंधकार मय रहा परन्तु अतं में यशोवर्मन नामक शासक ने कन्नौज पर अधिकार कर राजनैतिक अराजकता को समाप्त किया।
यशोवर्मन: (725 ई. – 752 ई.)
          हर्ष की मृत्यु के बाद सबसे प्रतापी शासक यशोवर्मन था। इतिहासकारों के अनुसार यशोवर्मन कश्मीर के उत्पल वंश से संबंधित था।
Note: कई इतिहासकारों ने यशोवर्मन का समीकरण कश्मीर के उत्पलवंशीय शासक ‘शंकरवर्मन’ के साथ किया है।
          इसके दरबार में ‘वाकपति’ नामक कवि ने प्राकृत भाषा में ‘गौड़वहो’ नामक ग्रंथ की स्थापना की।
यशोवर्मन ने महान नाटककार ‘भवभूति’ को आश्रय प्रदान किया।
3 नाटक
मालतीमाधव             उत्तर रामचरित्             महावीर चरित
10 अंकों में है             7 अंकों में है               7 अंक
मालती व माधव                रामायण के               भगवान श्रीराम
के प्रणय की कथा   है       उत्तरकांड का वर्णन        के विवाह से लेकर  राज्याभीषेक तक
यशोवर्मन की मृत्यु के बाद
भारत की तीन महान शक्तियाँ
1.       गुर्जर प्रतिहार 2. पालवंश 3. राष्ट्रकूट ने कन्नौज पर अधिकार करने हेतु ‘महान संघर्ष’ किया जिसे- त्रि पक्षीय संघर्ष कहा जाता है।
त्रि पक्षीय संघर्ष:
          कारण:
1. प्राचीन भारत में राजनीति का सर्वोच्च केन्द्र बिन्दु कन्नौज था।
2. आर्थिक कारण: यह क्षेत्र आर्थिक रूप से समृद्ध था सर्वाधिक नदियाँ उत्तरी पूर्वी भारत में प्रवाह करती है।
 3. कन्नौज में कमजोर शासक यशोवर्मा की मृत्यु के बाद आयुध वंश का अधिकार हो गया था।
 आयुध वंश के शासको में: वज्रायुद्ध, चक्रायुद्ध व इन्द्रायुद्ध प्रमुख थे। वजायुद्ध की मृत्यु के बाद पाल वंश के शासक धर्मपाल ने इन्द्रायुद्ध व चक्रायुद्ध को शासक बनाया।
4. संस्कृति का केन्द्र बिन्दु- कन्नौज व मथुरा की सांस्कृतिक विरासत व भव्यता का वर्णन मध्यकालीन भारत में अरब, तुर्क आक्रांताओं ने भी किया है। जिनके आक्रमण 712 ई. के आसपास प्रारंभ हुआ।
त्रि पक्षयी संघर्ष
  1. गुर्जर प्रतिहार: विजेता बने
  2. पालवंश
  3. राष्ट्रकूट वंश
प्रांरभ: आठवी शताब्दी में प्रारंभ होकर लगभग 150 वर्ष तक यह संघर्ष चला जिसमें गुर्जर प्रतिहार विजेता रहे।
          गूर्जर प्रतिहार शासक- मिहीरभोज ने कन्नौज पर अधिकार कर इसे अपनी राजधानी बनाया।
          संघर्ष के चरण:- त्रिपक्षीय संघर्ष गुर्जर प्रतिहार के शासक  वत्सराज के द्वारा प्रारंभ किया गया।
वत्सराज:-
  • गुर्जर प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक था।
  • वत्सराज ने त्रिपक्षीय संघर्ष प्रारंभ किया।
  • वत्सराज ने इन्द्रायुद्ध को पराजित किया।
  • वत्सराज ने पाल वंश के धर्मपाल को पराजित किया।
  • वत्सराज स्वयं ध्रुव प्रथम से पराजित हुआ।
संघर्ष के चरण:-
त्रि-पक्षीय संघर्ष गुर्जर प्रतिहार के शासक- वत्सराज के द्वारा प्रारंभ किया गया था।
1. प्रथम चरण:-(775-795 ई. के मध्य)
          1. गुर्जर प्रतिहार (G.P)-वत्सराज (775 ई. – 800 ई.)
          2. पालवंश- धर्मपाल (770 ई. – 810 ई.)
          3. राष्ट्रकूट- ध्रुव प्रथम- इस चरण में विजयी रहा था।  (779 ई. – 793 ई.)
Note- राष्ट्रकूट दक्षिण भारत का प्रथम राजवंश जिसने उत्तर भारत की सक्रिय राजनीति में भाग लिया।
  • गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज ने कन्नौज के आयुधवंश के शासक इन्द्रायुद्ध व पालवंश के शासक धर्मपाल को पराजित कर-उत्तरी भारत में साम्राज्य विस्तार की नीवं रखी, परन्तु राष्ट्रकूट शासक “ध्रुव I” ने वत्सराज को पराजित कर दिया था।
  • ध्रुव I ने पाल वंश के शासक- धर्मपाल को गंगा- यमुना दोआब में पराजित किया।
  • इस प्रकार प्रथम चरण का विजेता- ध्रुव प्रथम रहा।
2. द्वितीय चरण:-(795-814 ई. के मध्य)
          1. गुर्जर प्रतिहार (G.P)-नागभट्ट II (800 ई. – 833 ई.)
          2. पालवंश- धर्मपाल (770 ई. – 810 ई.)- मृत्यु के बाद = देवपाल (810-850 ई.)
          3. राष्ट्रकूट- गोविन्द III-विजय
  • इस चरण के दौरान सर्वप्रथम- नागभट्ट II ने- धर्मपाल की सेना को मुंगेर (बिहार) के समीप पराजित किया।
  • धर्मपाल ने पराजित होकर- राष्ट्रकूट शासक गोविन्द III से सहायता मांगी।
  • संजन ताम्रपत्र के अनुसार- गोविन्द III ने गुर्जर प्रतिहार शासक- नागभट्ट II को पराजित कर पुन: दक्षिण भारत लौट आया।
  • 810 ई. में धर्मपाल की मृत्यु के बाद गुर्जर प्रतिहार शासक “नागभट्ट II” ने कन्नौज पर अधिकार कर इसे अपनी राजधानी बनाया।
  • प्रथम G.P. शासक
Note- पालवंश के शासक धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी जो कि वर्तमान में (बिहार- भागलपुर जिले के अचिन्तक गाँव में)
धर्मपाल ने सोमपुरी (बंगाल) व ओदन्तपुरी (बिहार) में मठों की स्थापना करवाई।
3. तृतीय चरण:-(814 ई. से अन्त तक)
  • इस चरण के दौरान नागभट्ट II की मृत्यु के बाद “रामभद्र” नाम क निर्बल शासक- राजा बना।
  • पालवंश के शासक- धर्मपाल के पुत्र देवपाल ने रामभद्र को पराजित कर- कन्नौज पर पुन: अधिकार कर लिया।
  • रामभद्र के बाद मिहिरभोज प्रथम शासक बने जो कि गुर्जर प्रतिहार वंश के महान राजा हुए।
  • मिहिरभोज ने पालवंश के शासक- देवपाल, विग्रहपाल को पराजित किया व साथ ही राष्ट्रकुट वंश के शासक कृष्ण II को पराजित कर कन्नौज को लम्बे समय हेतु राजधानी बनाया।
  • 880 ई. के आस-पास पालवंश के शासक नारायण पाल व राष्ट्रकूट शासक कृष्ण II ने मिहिरभोज को पराजित कर दिया।
  • भोज I ने नर्मदा के तट पर कृष्ण II को पराजित कर मालवा पर अधिकार कर अपनी पराजय का बदला लिया।
Note- भोज प्रथम वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
  • वह अपने आपको भगवान विष्णु का अवतार मानता था।
  • भोज ने “आदिवराह” की उपाधि धारण की जिसका उल्लेख ग्वालियर अभिलेख में (अन्य उपाधी- प्रभास)
गुर्जरप्रतिहारपालवंशराष्ट्रकूटवंश
वत्सराज (775 ई.–800 ई.)
धर्मपाल (770 ई.–810 ई.)
धर्मपाल की मृत्यु के 1
1. ध्रुव प्रथम- विजयी रहा (779 ई. 793 ई.)
2. नागभट्ट II  (800 ई.–833 ई.)
 
2. देवपाल (810 ई.–850 ई.)
 
2. गोविन्द III- विजयी (793 ई.–814 ई.)
3. नागभट्ट की मृत्यु के बाद- रामभद्र ने 3 वर्ष हेतु शासन
3 . विग्रहपाल  (850 ई.–854ई.)
 
3. अमोघवर्ष (814 ई.–878 ई.)
4.मिहिरभोज-I (विजयीरहे) (836 ई.–885 ई.)4. नारायणपाल (854 ई.–915 ई.)4. कृष्ण II (878 ई.–915 ई.)
5.महेन्द्रपाल- विजय (885 ई.–910 ई.) महेन्द्रपाल के बाद केवल 2 वर्ष हेतु भोज II शासक महिपाल प्रथम (विजय) (912 ई.- 945 ई.)5. राज्यपाल (915 ई.–940 ई.)5. इन्द्र III (915 ई.–927 ई.)
 
  • भोज के बाद महेन्द्रपाल व महिपाल इस संघर्ष में विजय रहे तथा गुर्जर प्रतिहारों की शक्तिशाली व्यवस्था स्थापित हुई।
  • महेन्दपाल के दरबार में महान विद्वान “राजशेखर” निवास करते थे, जिन्होंने काव्य मिमांसा, कर्पूरमंजरी व हरविलास आदि ग्रन्थों की रचना की।
  • 963 ई. में राष्ट्रकूट शासक- कृष्ण III ने उत्तरी भारत पर अभियान करके गुर्जर प्रतिहारों को पराजित किया- इसी से गुर्जर प्रतिहार वंश का पतन प्रारंभ हो गया।
  • 1018 ई. में महमूद गजनवी ने गुर्जर प्रतिहार शासक- राज्यपाल व 1019 ई. में त्रिलोचनपाल को पराजित किया इसी के साथ गुर्जर प्रतिहार सत्ता का अंत हो गया।

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