दक्षिण भारत के राजवंश

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 दक्षिण भारत के राजवंश



राष्ट्रकूट :
- राष्ट्रकूट बादामी के चालुक्यों के सामंत शासक थे।
- राष्ट्रकूट साम्राज्य का संस्थापक दंतिदुर्ग था जिसने चालुक्य राजा कीर्तिवर्मन को पराजित कर दक्कन का अधिकांश भाग उसने छीन लिया।
- राष्ट्रकूट अभिलेखों के अनुसार – राष्ट्रकूटों का प्रारंभिक स्थान लातूर/लाटूर में था।
- बाद में एलिचपुर (बरार, महाराष्ट्र) पर अधिकार कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
- दंतिदुर्ग ने चालुक्यों पर अरबों के आक्रमण के समय  चालुक्यों की सहायता की।
- चालुक्य नरेश ने इससे प्रसन्न होकर दंतिदुर्ग कोपृथ्वीवल्लभकी उपाधि प्रदान की।
- दंतिदुर्ग ने कीर्ति वर्मन II को पराजित करने के बादउज्जैन (MP) मे हिरण्यगर्भ (महादान) यज्ञ किया।
- इस यज्ञ के दौरान गुर्जर प्रतिहार शासक देवराज ने द्वारपाल की भूमिका निभाई।
कृष्ण प्रथम – (756-779 ई.)
- तत्पश्चात् उनका चाचा कृष्ण-I उत्तराधिकारी बना जिसने बादामी के चालुक्यों की शक्ति पर अंतिम प्रहार किया।
- उपाधियाँ : 1. सतप्रजाबोध 2. वृतप्रजापाल  जीवन के अंतिम क्षणों तक प्रजा को पालने वाला
- वातापी (बादामी) चालुक्यों का अस्तित्व पूर्णत: नष्ट कर दिया
- ऐलोरा (औरंगाबाद, महाराष्ट्र) के प्रसिद्व कैलाश मंदिर का निर्माण प्रारंभ कराया था। यह मन्दिर द्रविड़ शैली में निर्मित है।
ध्रुव प्रथम – (779-793 ई.)
- कृष्ण-I का पुत्र गोविन्द-II को उसके भाई ध्रुव ने गद्दी से हटाकर स्वयं शासन किया।
- ध्रुव प्रथम राष्ट्रकूट शासक था जिसने उत्तरी भारत के आधिपत्य के लिए चलाए जा रहे त्रिसत्तात्मक संघर्ष में हस्तक्षेप किया तथा प्रतिहार राजा वत्सराज तथा पाल राजा धर्मपाल को पराजित किया। ध्रुव को धारा वर्ष भी कहा जाता है।
- त्रि-पक्षीय संघर्ष की विजय के उपलक्ष्य में – ध्रुव ने अपने राजचिह्न पर गंगा यमुना का अंकन कराया।
गोविन्द III (793-814 ई.)
-  गोविन्द-III ध्रुव का उत्तराधिकारी बना तथा उसने प्रतिहार शासक नागभट्ट-II से मालवा छीन लिया पालवंश के “धर्मपाल” को पराजित किया।
-  गोविन्द III ने श्रीलंका के राजा उसके मंत्री को पराजित कर बंदी बनाकरहालापुर (कर्नाटक) ले आया।
- इसी दौरान श्रीलंका के इष्टदेव की दो प्रतिमाएँ साथ लाया तथा उन्हें मान्यखेत के शिव मन्दिर के सामने विजय स्तंभ के रूप में लगवाया।
अमोघवर्ष : (814 ई. - 873 ई.)
- गोविन्द III का पुत्र था, अल्प वयस्क शासक होने के कारण कर्कराज को इसका संरक्षक बनाया गया।
Note : अमोघवर्ष के दरबार में शकटायन भी निवास करते थे जिन्होंने अमोघवृति की रचना की।
- अमोघवर्ष ने अपनी जनता को महामारी से बचाने हेतु अपने बाएँ हाथ की अंगुली काटकर देवी को चढ़ा दी।
- Note : अमोघवर्ष को उसके जनहित कार्यों धार्मिक उदारता के कारण इतिहासकारों ने इसकी तुलना मौर्य सम्राट ‘अशोक’ से की है।
- दक्षिण भारत का अशोक कहा जाता है।
- गोविन्द-III का उत्तराधिकारी अमोघवर्ष-I जैन धर्म का संरक्षक था।
- अमोघवर्ष-I ने आदिपुराण के लेखक जिनसेन, गणित सार संग्रह के लेखक महावीराचार्य को प्रश्रय दिया।
- उसने स्वयं कन्नड़ काव्यशात्र 'कविराजमार्ग' की रचना की।
- अमोघवर्ष के बाद कृष्ण-II उसका उत्तराधिकारी हुआ जिसने जैन आचार्य गुणचन्द्र को अपना गुरु बनाया।
इन्द्र तृतीय : (915 . - 927 ई.)
- इन्द्र-III कृष्ण-II के बाद शासक बना। इसी काल में अरब यात्री अलमसूदी भारत आया था।
- अलमसूदी ने इसे राष्ट्रकूट वंश का सबसे प्रतापी शासक एवं श्रेष्ठ शासक बताया।
- इसने गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक ‘महिपाल’ को पराजित कर राजधानी कन्नौज को लूटा।
- पालवंश के देवपाल को भी पराजित किया।
- इन्द्र III के बाद गोविन्द चतुर्थ (927 - 936 ई.) व अमोघवर्ष II (936 - 939 ई.) तक शासक बने।
Note : अलमसूदी G.P. शासक महिपाल के दरबार में भी गया था।
कृष्ण तृतीय : (939 . - 965 ई.)
- कृष्ण III राष्ट्रकूट राजवंश का अंतिम महान शासक था। वह अकालवर्ष के नाम से भी जाना जाता है।
- इसने चोल नरेश परान्तक प्रथम को पराजित करके चोल साम्राज्य के उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया था।
- इसने चोल नरेश ‘परान्तक प्रथम’ को पराजित कर ‘अकाल वर्ष’ की उपाधि धारण की।
- इसने मालवा के परमारों, काँची के पल्लवों को पराजित कर, रामेश्वरम (तमिल) एक विजय स्तंभ की स्थापना की।
- कृष्ण III ने कन्नड़ भाषा के विद्वान शांतिपुराण के रचनाकार पोन्न को संरक्षण दिया।
- कर्क II राष्ट्रकूट वंश का अंतिम शासक था।
- राष्ट्रकूटों की राजभाषा कन्नड़ थी।
- एलोरा की पहाड़ियों में कैलाश मन्दिर का निर्माण कृष्ण I ने तथा दशावतार मंदिर का निर्माण दंतिदुर्ग ने करवाया था।
- राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष की पुत्री चन्द्रवल्लभी ने कुछ समय के लिए रायचूर दोआब पर शासन किया था।
वेंगी के चालुक्य
- वेंगी के चालुक्य वंश का संस्थापक विष्णुवर्धन था।
- विष्णुवर्धन ने विषम सिद्धि की उपाधि धारण की थी।
- जयसिंह प्रथम ने पृथ्वीवल्लभ, पृथ्वी जयसिंह तथा सर्वसिद्धि जैसी उपाधियाँ धारण की थी।
- विजयादित्य तृतीय ने पंडरंग महेश्वर नाम से शैव मन्दिर निर्मित करवाया था।
- विजयादित्य तृतीय का महान एवं सुयोग्य सेनापति पंडरंग था।
- भीम द्वितीय ने विजयवाड़ा में मल्लेश्वर स्वामी का मन्दिर बनवाया था।
- भीम द्वितीय ने विष्णुवर्धन, लोकाश्रय, राजमार्तण्ड, त्रिभुवनांकुश जैसी उपाधियाँ धारण की थी।
- वेंगी के चालुक्य वंश का अंतिम शासक विजयादित्य VII था।
- बादामी / वातापी चालुक्य - (543 - 757 ई. से 552 – 750 ई. तक)
-  इस शाखा का संस्थापक पुलकेशिन प्रथम था।
- इस शाखा की राजधानी वातापी / बादामी कर्नाटक राज्य के बीजापुर में स्थित है।
-  यह शाखा चालुक्यों की मूल / प्राचीनतम शाखा मानी जाती है।
- इसकी जानकारी के प्रमुख स्रोत – अभिलेख हैं।
ऐहोल अभिलेख
- ऐहोल अभिलेख प्रशस्ति के रूप में है।
- यह अभिलेख कर्नाटक के बीजापुर में स्थित है।
- मेगुती मंदिर (जैन मंदिर) के पश्चिमी भाग की दीवार पर उत्कीर्ण है।
- यह अभिलेख 643 ई. का माना जाता है।
- इस अभिलेख की भाषा संस्कृत है।
- इस अभिलेख की शैली पद्य (काव्य) शैली है।
लिपि: दक्षिणी ब्राह्मी
- इसकी रचना पुलकेशिन द्वितीय के जैन दरबारी  'रवि कीर्ति' द्वारा की गई है।
- इस अभिलेख में रवि कीर्ति ने स्वयं की तुलना  'तुलसीदास' व  'भास' के साथ की है।
- चालुक्य वंश उसके शासक पुलकेशिन द्वितीय के बारे में इस अभिलेख से जानकारी मिलती है।
- इसमें पुलकेशिन द्वितीय को ‘सत्याश्रय’ अर्थात् सत्य को आश्रय देने वाला कहा गया है।
- इसमें पुलकेशिन द्वितीय हर्ष के मध्य हुए युद्ध की जानकारी मिलती है।
- इस युद्ध में पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को नर्मदा के तट पर पराजित करके  'परमेश्वर' की उपाधि धारण की थी।
नोट:- ऐहोल के मंदिरों को ‘नगर’ कहा जाता है। जिनेन्द्र मंदिर मेंगुती मंदिर प्रसिद्ध है।
बादामी शिलालेख:-
- यह शिलालेख बादामी किले के एक शिलाखंड पर उत्कीर्ण है।
- इस शिलालेख पर पुलकेशिन प्रथम (543 ई.) द्वारा बादामी किले के निर्माण की बात लिखी गई है।
- चालुक्य वंश की प्रारंभिक जानकारी इसी शिलालेख से मिलती है।
- चालुक्यों को  'हारिति पुत्र' व  'मानव्य गौत्रिय' बताया गया है।
 महाकूट अभिलेख:
-  महाकूट स्तंभ लेख - कर्नाटक के प्राप्त
-  यह 602 ई. का माना जाता है।
-  इस स्तंभ लेख में पुलकेशिन प्रथम से पूर्व के दो शासकों का उल्लेख जय सिंह रणराग (पुलकेशिन प्रथम के पिता)
-  इनके अलावा महाकूट स्तंभ लेख से कीर्तिवर्मन प्रथम की जानकारी भी मिलती है।
हैदराबाद दानपात्र :
-  यह 612 ई. का है।
-  इसमें पुलकेशिन II द्वारा दिए गए दान के बारे में उल्लेख मिलता है।
-  चालुक्य कौन? इतिहासकारों ने अलग-अलग मत प्रस्तुत किए हैं-
1. विंसेटस्मिथ : चालुक्य ‘चप’ जाति के लोग थे।
-  यह मध्य एशिया के निवासी थे।
2. ह्वेनसांग :
-  641 ई. में पुलकेशिन II के दरबार में गया था।
-  इसने चालुक्यों को ‘क्षत्रिय’ बताया है।
3. डॉ. निलकण्ठ शास्त्री :
-  चालुक्यों को कदम्बों का सामंत बताया है।
-  इनके मूल वंश का नाम ‘चल्क्य’ जो बाद में चालुक्य कहलाए।
-  इन्हें क्षत्रिय बताया है।
- महाकूट अभिलेख के अनुसार चालुक्य शासकों का क्रम :
-  जय सिंह
-  रणराग
पुलकेशिन प्रथम  
- चालुक्य वंश के संस्थापक, इसके दो पुत्र थे।
1. कीर्तिवर्मन I      2. मंगलेश
कीर्तिवर्मन के दो पुत्र थे।
1. पुलकेशिन II         2. कुब्ज विष्णुवर्धन
-  पुलकेशिन II ने अपने चाचा की हत्या कर दी  एवं स्वयं शासक बना।
-  कुब्ज विष्णुवर्धन वेंगी चालुक्य वंश का संस्थापक था।      
-  पुलकेशिन II की मृत्यु के बाद क्रमश: निम्नलिखित  शासक बने :
विक्रमादित्य I, विनयादित्य, विजयादित्य I, विक्रमादित्य II, कीर्तिवर्मन II
- अंतिम चालुक्य शासक कीर्तिवर्मन II को राष्ट्रकूट दंतिदुर्ग ने मार डाला राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की।
-  पुलकेशिन प्रथम (543 - 566 ई.) वातापी चालुक्य वंश का संस्थापक था।
-  इसने दक्षिणापथ पर विजय प्राप्त की तथा अश्वमेध वाजपेय यज्ञों का आयोजन किया था।
कीर्तिवर्मन प्रथम : (566 - 597 ई.)
-  पुलकेशिन प्रथम का पुत्र था।
-  कीर्तिवर्मन प्रथम को वातापी चालुक्यों का प्रथम निर्माता कहा जाता है।
-  उपाधियाँ : सत्याश्रय, व पृथ्वीवल्लभ
-  ऐहोल अभिलेख में कीर्तिवर्मन प्रथम को, कदम्बों, नलों मौर्यों के लिए कालरात्रि के समान बताया गया है।
-  सामाज्य विस्तार हेतु किए गए अभियान:
1. वनवासी अभियान :
-  कहाँ - कर्नाटक
-  यहाँ कदम्ब वंश के शासक अजयवर्मन को पराजित कर उसकी राजधानी पर अधिकार कर लिया।
2. वेल्लूर अभियान :-
- नलवंशी शासकों को पराजित किया।
- वेल्लूर को नलवाड़ी कहा जाता था।
3. कोंकण अभियान:-
- यहाँ परवर्ती मौर्य शासन था, कीर्तिवर्मन ने इन्हें पराजित कर राजधानी “धारापुरी” पर अधिकार कर लिया।
- धारापुरी को “पश्चिमी समुद्र की देवी” कहा जाता है,
- कोंकण पर अधिकार होने के कारण कीर्तिवर्मन का अधिकार क्षेत्र गोवा तक हो गया था।
- गोवा का प्राचीन नाम “खेती द्वीप” था।
- कीर्तिवर्मन ने बादामी का राजधानी के रूप में पुन: निर्माण करवाया तथा यहाँ अनेक सुंदर मंदिर इमारतों का निर्माण करवाया, अत: इसे बादामी का प्रथम निर्माता कहा जाता है।
मंगलेश:-
- कीर्तिवर्मन प्रथम की मृत्यु के बाद शासक बना।
- कीर्तिवर्मन का भाई था।
अभियान:-
1. कलचूरी अभियान:-
- इस क्षेत्र में खानदेश, मालवा गुजरात का दक्षिणी भाग शामिल था।
- आक्रमण क्यों:- मंगलेश उत्तर भारत पर विजय प्राप्त करना चाहता था।
- मंगलेश ने कलचूरी राज्य के शासक बुद्धराज को पराजित किया।
2. कोंकण अभियान
 उल्लेख :- नरूरदान पत्रलेख
शासक – स्वामीराज
 स्वामीराज चालुक्यों का सामंत था, जिसकी नियुक्ति कीर्तिवर्मन प्रथम द्वारा दी गई।
 मंगलेश ने स्वामीराज पर आक्रमण कर मार डाला।
उपाधियाँ:-
- अभियानों को पूर्ण करने के बाद निम्न उपाधियाँ धारण की:-
1. परमभागवत – वैष्णव धर्म का अनुयायी होने के कारण
2. रणविक्रांत
3. श्री पृथ्वीवल्लभ
- मंगलेश ने कीर्तिवर्मन प्रथम द्वारा प्रारंभ करवाए गए बादामी गुहा मंदिर के निर्माण को पूर्ण करवाया तथा उसमें भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करवाई।
पुलकेशिन II अभियान
- पुलकेशिन ने कदम्बों को पराजित किया।
- लाट मालवा प्रदेशों पर विजय प्राप्त की।
- 630 ई. – 634 ई. के मध्य नर्मदा के तट पर हर्ष को पराजित किया।
चालुक्य पल्लव संघर्ष:-
- यह संघर्ष प्रारंभ करने का श्रेय- पुलकेशिन द्वितीय को जाता है।
- जो लगभग 200 वर्ष तक चला।
- पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन प्रथम को पराजित कर काँची के उत्तरी-पूर्वी हिस्से पर अधिकार कर लिया।
- इसी भाग पर पूर्वी चालुक्य (वेंगी) की नींव डाली – संस्थापक अपने भाई “कुब्ज विष्णुवर्धन” को बनाया।
- महेन्द्र वर्मन की मृत्यु के बाद पुन: काँची पर आक्रमण किया।
- महेन्द्रवर्मन के पुत्र – नरसिंह वर्मन ने पुलकेशिन द्वितीय को पराजित किया।
- नरसिंह वर्मन ने श्रीलंका के शासक “मानवर्मा” की सहायता से पुलकेशिन द्वितीय को बादामी मे पुन: पराजित कर उसके शरीर पर “विजित” लिखवा दिया।
- नरसिंह वर्मन ने वातापीकोंड (वातापी को तोड़ने वाला) की उपाधि धारण की।
- पुलकेशिन द्वितीय ने शर्मसार होकर आत्महत्या कर ली।
नोट:- अजंता की गुफा संख्या 16 में पुलकेशिन द्वितीय को ईरानी राजदूत शाह परवेज खुसरो द्वितीय का स्वागत करते हुए दिखाया गया है।
विक्रमादित्य प्रथम (655 . – 681 ई.)
- पुलकेशिन द्वितीय का पुत्र था।
- येवूर अभिलेख (कर्नाटक) के अनुसार “पुलकेशिन II” की मृत्यु के बाद लगभग – 13 वर्ष तक पल्लव सामंत “अमर आदित्यवर्मन” ने बादामी पर शासन किया था।
- विक्रमादित्य ने अपने नाना – गंग वंश के “दुर्रविनित” व अपने भाई जयसिंह वर्मन की सहायता से वातापी पर पुन: अधिकार किया।
- अपने पिता की हत्या का बदला लेने हेतु पल्लवों पर आक्रमण कर नरसिंह वर्मन के पुत्र “महेन्द्रवर्मन द्वितीय” को मार डाला।
विनादित्य - (681 ई. – 696 ई.)
- इसने पल्लव, केरल, चोल, पाण्डय पर विजय प्राप्त की।
- उपाधियाँ – राजाश्रय, युद्धधमल्ल
विजयादित्य :- (696 ई. – 733 ई.)
- सबसे लम्बे समय तक शासक रहा।
- श्रेष्ठ निर्माता माना जाता है।
- इसने पट्डक्कल (कर्नाटक) में विशाल शिव मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में करवाया।
विक्रमादित्य II (733 ई.- 747 ई.)
- विजयादित्य का पुत्र था।
- इसके समय द.भारत पर अरबों का आक्रमण हुआ।
- इस आक्रमण का सामना करने हेतु अपने भाई “जयसिंह वर्मन प्रथम” को भेजा।
- जयसिंह ने अरबों को पराजित कर भागने पर बाध्य कर दिया।
- विक्रमादित्य II ने जयसिंह को “अवनिजनाश्रे (पृथ्वी के लोगों को शरण देने वाला)” उपाधि दी।
- विक्रमादित्य II ने पल्लव शासक नंदिवर्मन को पराजित कर काँचीकोण्ड की उपाधि धारण की।
- विक्रमादित्य II की दो पत्नियाँ थी –
1. लोकमहादेवी –
- लोकेश्वर शिव मंदिर का निर्माण वर्तमान (विरूपाक्ष) मंदिर कर्नाटक हम्पी पट्टकल में स्थित है। यहाँ पर रामायण से संबंधित दृश्य और गरुड़ की विशाल प्रतिमा है।
2. त्रलोक्यमहादेवी
- त्रिलोकेश्वर शिव मंदिर मल्लिकार्जुन शिव मंदिर हम्पी (कर्नाटक) में स्थित है।
कीर्तिवर्मन II (747 ई. - 757 ई.)
- कीर्तिवर्मन ने अपने पिता के शासनकाल के दौरान ही पल्लवों को पराजित किया था।
- अत: विक्रमादित्य II ने इसे अपना उत्तराधिकारी बनाया।
- वातापी/बादामी के चालुक्यों का अंतिम शासक था।
- इसी के शासनकाल के दौरान राष्ट्रकूटों का उदय हुआ।
- राष्ट्रकूट दंतिदुर्ग ने अपनी पुत्री का विवाह पल्लव नरेश नंदिवर्मन के साथ किया था।
- दंतिदुर्ग ने आक्रमण कर चालुक्यों से महाराष्ट्र गुजरात के क्षेत्र छीन लिए।
- कीर्तिवर्मन II ने इन क्षेत्रों पर पुन: अधिकार करने हेतु आक्रमण किया, परन्तु दन्तिदुर्ग ने कीर्तिवर्मन II को मार डाला इस प्रकार वातापी बादामी चालुक्यों के अंत के साथ राष्ट्रकूटों का उदय हुआ।
 चालुक्य (कल्याणी) :
- राष्ट्रकूट नरेश कर्क II को तैलप II ने पराजित कर कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया। इनका राज्य चिह्न – वराह था।
- कौन - नीलकंठ शास्त्री के अनुसार तैलप II से पूर्व इस वंश के लोग बीजापुर के आस पास के क्षेत्रों में राष्ट्रकूटों के सामंत थे।
- मूलत: यह कन्नड़ देश (केरल) के निवासी थे।
- तैलप II से पूर्व कीर्तिवर्मन III तैलप प्रथम, विक्रमादित्य III भीमराज, अय्यण विक्रमादित्य चतुर्थ का उल्लेख मिलता है।
- अय्यण ने राष्ट्रकूट वंश के शासक कृष्ण II की पुत्री के साथ विवाह किया - पुत्र विक्रमादित्य IV
- विक्रमादित्य IV का पुत्र तैलप II कल्याणी चालुक्यों का संस्थापक था।
तैलप - II (973 - 997 ई.)
-  पिता का नाम विक्रमादित्य चतुर्थ था।
-  माता का नाम कलचुरी के शासक लक्ष्मण सेन की पुत्री बोन्था देवी थी।
-  कल्याणी चालुक्य की स्वतंत्रता का संस्थापक माना जाता है।
-  राष्ट्रकूट वंश के शासक कर्क III को पराजित कर उसकी राजधानी मान्यखेत पर अधिकार कर लिया था।
-  अपनी राजधानी कल्याणी को बनाया।
- तैलप द्वितीय ने राष्ट्रकूट सामंतों को पराजित करने हेतु निम्न अभियान किए -
- 1. शिमोगा कर्नाटक के राष्ट्रकूट सामंत शांति वर्मा को पराजित किया।
- 2. गंगवंश के शासक पांचालदेव को पराजित कर मार डाला।
- 3. वनवासी के शासक कन्नप शोभन को अधीनता स्वीकार करवाई।
- 4. दक्षिणी कोंकण के शालिहार वंश को पराजित कर दक्षिणी कोंकण पर अधिकार कर लिया।
- 980 ई. में चोल साम्राज्य पर आक्रमण कर वहाँ के शासक उत्तम चोल को पराजित किया था।
- इस प्रकार कल्याणी चालुक्य चोल संघर्ष प्रारंभ हुआ था।
मालवा आक्रमण-
- शासक - मुंज परमार
- उल्लेख - प्रबंध चिंतामणि
- प्रबंध चिंतामणि का लेखक मेरूतुंग था।
- प्रबंध चिंतामणि में गुजरात का इतिहास लिखा गया है।
- तैलप II ने मालवा के मुंज परमार पर छह बार आक्रमण किया था परन्तु हर बार तैलप II पराजित हुआ।
- अंतत: मुंज ने तैलप पर निर्णायक विजय प्राप्त करने हेतु सातवीं बार गोदावरी नदी को पार करते हुए तैलप II पर आक्रमण किया।
- तैलप II ने मुंज परमार को युद्ध में पराजित कर बंदी बनाकर मार डाला।
- तैलप II ने महाराजाधिराज, चक्रवर्ती परमेश्वर की उपाधि धारण की थी।
सत्याश्रय (997 ई. - 1008 ई.)
- तैलप-II के उत्तराधिकारी सत्याश्रय को राजेन्द्र चोल के नेतृत्व में दो आक्रमणों का सामना करना पड़ा।
- तैलप II का पुत्र था, साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण किया था।
- अपने साम्राज्य विस्तार हेतु निम्न अभियान किए -
- 1. उत्तरी कोंकण सत्याश्रय ने शालिहार वंश को पराजित कर उत्तरी कोंकण पर अधिकार कर लिया था।
- 2. गुर्जर राज्य पर विजय यहाँ के शासक चामुण्डराय को पराजित करके की।
- 3. मालवा संघर्ष - मुंज परमार की मृत्यु के बाद सिन्धुराज शासक बना था।
- सत्याश्रय ने मालवा पर अनेक आक्रमण किए प्रत्येक बार सिन्धुराज ने उसे पराजित किया मालवा के खोए प्रदेश पुन: प्राप्त कर लिए थे।
- सत्याश्रय का यह अभियान असफल हो गया था।
- विक्रमादित्य पंचम (1008 – 1014 ई.)
- सत्याश्रय के बाद विक्रमादित्य V शासक बना।
- सत्याश्रय दर्शवर्मन का पुत्र था।
- इसने दक्षिणी कोशल (छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम) के शासक “भीमरथ महाभव गुप्त II” को पराजित कर चालुक्य साम्राज्य में दक्षिणी कोशल का विलय कर लिया था।
- त्रिभुवनमल्ल वल्लभ नरेन्द्र की उपाधि धारण की थी।
 जयसिंह II, (1015 ई. – 1043 ई.)
- विक्रमादित्य पंचम का भाई था।
उपाधियाँ :
- जगदेकमल्ल, त्रैलोक्यमल्ल विक्रमसिंह
मालवा के संघर्ष :-
- मालवा के शासक भोज परमार ने लाट पर आक्रमण कर इसके कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया तथा उत्तरी कोंकण भाग पर भी अधिकार कर लिया था।
- जयसिंह II ने कुछ समय पुन: इन क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था।
चोलों के साथ संघर्ष
- कारण – 1019 ई. वेंगी चालुक्य शासक ”विमलादित्य” की मृत्यु हो गई।
- विमलादित्य के दो पुत्रों में उत्तराधिकार संघर्ष हुआ।
1. राजराज      
2. विष्णु वर्धन विजयादित्य सप्तम
- जयसिंह II ने विजयादित्य VII के पक्ष में एक सेना वेंगी भेजी।
- राजेन्द्र प्रथम (चोल) अपनी दो सेनाएँ क्रमश: प्रथम सेना ने जयसिंह II को पराजित किया, द्वितीय सेना ने विजयादित्य II को पराजित किया।
- इस प्रकार राजेन्द्र प्रथम “राजराज” को वेंगी का शासक बना दिया। अगले 20 वर्षों तक कोई संघर्ष नहीं हुआ।
सोमेश्वर प्रथम : (1043 - 1068  ई.)
- सोमेश्वर प्रथम ने कल्याणी का राजधानी के अनुरूप विकास कराकर इसे पूर्ण रुपेण अपनी राजधानी बनाया।
- प्रमुख घटनाएँ
- चोल संघर्ष:-
1. सोमेश्वर प्रथम ने वेंगी पर आक्रमण किया और राजराज को पराजित कर दिया और विक्रमादित्य VII को शासक बना दिया था।
2. राजराज भागकर चोलो की शरण में चला गया। राजेन्द्र चोल ने पुन: राजराज को शासक बना दिया। परन्तु कुछ समय बाद राजेन्द्र चोल की मृत्यु हो गई।
3. राजराज ने सोमेश्वर की अधीनता स्वीकार कर ली।
4. राजाधिराज चोल ने वेंगी पर आक्रमण कर जीत लिया और विजैन्द्र की उपाधि धारण की थी।
5. 1052 ई. में तुंगभद्रा नदी के पास कोप्पम का युद्ध लड़ा गया जिसमें सोमेश्वर प्रथम ने राजाधिराज को पराजित करके मार डाला था।
विक्रमादित्य VI (1076- 1126 ई.)
- विक्रमादित्य VI योग्य शासक था।
- अपने राज्याभिषेक के समय 1076 ई. में चालुक्य विक्रम संवत् चलाया था।
- इसने एक नए नगर विक्रमपुर की स्थापना की थी।
- अंतिम महान चालुक्य शासक विक्रमादित्य VI था।
- उसके दरबार में विक्रमांकदेवचरित के लेखक विल्हण तथा स्मृतियों पर मिताक्षरा नामक टीका के प्रसिद्ध टीकाकार विज्ञानेश्वर थे।
महत्वपूर्ण कार्य :-
- वेंगी पर आक्रमण कर विक्रमादित्य VI ने चोलों को पराजित कर वहाँ अपने सेनापति अनंतपाल को शासक बनाया था।
- कोंकण पर अधिकार कर अपना सामंत – कामदेव को नियुक्त किया था।
- यादवों के विद्रोह का दमन
- श्रीलंका के शासक – विजयबाहु की सभा में एक दूतमंडल भेजा।
- सोमेश्वर III (1126-1138 ई.)
- अंतिम प्रतापी शासक माना जाता है।
- उपाधि – सर्वज्ञभूप:
- ग्रंथ : मानसोल्लास (शिल्पशास्त्र पर आधारित)
- इसकी मृत्य के बाद इसके दो पुत्र जगदेकमल्ल II (1139-1151 ई.) व तैलप III ने शासन किया।
- तैलप III के समय होयसले, कलचूरि, यादव आदि सामंतों ने अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर लिया à साम्राज्य निर्बल हो गया।
- तैलप III के बाद उसका पुत्र सोमेश्वर चतुर्थ (1181-1189 ई.) शासक बना, इसने कल्याणी की प्रतिष्ठा पुन: स्थापित करने का प्रयास किया à असफल रहा।
- 1190 ई. में देवगिरी के यादवों ने कल्याणी पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया।
- दक्षिणी भागों पर होयसेलों ने अधिकार कर लिया।
- सोमेश्वर चतुर्थ ने भागकर वनवासी में शरण ली।
- कल्याणी चालुक्यों का अंत हो गया।
पल्लव :-
- कौन-दक्षिण भारत मे सात वाहन वंश के सामंत थे।
- अपने आपको स्वतंत्र कर काँची के नागवंश को पराजित कर अपने वंश की नींव डाली।
- सिंहविष्णु पल्लव वंश के वास्तविक संस्थापक माने जाते हैं जिन्होंने अवनसिंह की उपाधि धारण की थी।
- जानकारी के स्रोत-
1.  संगम साहित्य में पल्लवों को “तोडीयार “  कहा गया हैं।
2.  बाहुर अभिलेख (काँची) में पल्लवों को”तोण्डई”  कहा गया है।
3.   रुद्रदामन का जुनागढ़ अभिलेख: इसमें “ सुविशाख” नामक पल्लव को सौराष्ट्र का गर्वनर (प्रांतपाल) बताया गया है जिसने सुदर्शन  झील का पुन: निर्माण करवाया था।
4.  दण्डी के ग्रंथ- अवंति सुंदरी में- पल्लव शासक सिंह विष्णु का उल्लेख मिलता है।
5.  मतविलास प्रहसन:- पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन प्रथम द्वारा रचित है।
- जानकारी:- पल्लवकालीन सामाजिक, धार्मिक राजनैतिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।
6.  महावंश:- पल्लवों के प्रारम्भिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।
7.  सी.यू.की.- ह्वेनसांग नरसिंह वर्मन प्रथम के समय काँची आया था।
- ह्वेनसांग ने नरसिंहवर्मन को सबसे महान शासक बताया था।
- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार उसने दक्षिणापथ विजय के दौरान पल्लव शासक ” विष्णुगोप “ पराजित किया था।
- तमिलनाडु से प्राप्त प्राकृत भाषा के अभिलेखों में ‘पल्लव वंश’ के प्रथम शासक का नाम ‘सिंहवर्मन’ मिलता है।
सिंह विष्णु:- (575 . 600ई.)
- पल्लव वंश के संस्थापक थे।
- काँची को राजधानी बनाया  था।
- उपाधि:- अवनी सिंह
- विजय अभियान- वैल्लूर पालैयम तमिलनाडु से प्राप्त ताम्रपत्र के अनुसार
- सिंहविष्णु ने चोल शासक को पराजित करचौलमंडलपर अधिकार कर लिया था।
- सिंहविष्णु ने अपना साम्राज्य कावेरी नदी तक विस्तृत करअवनी सिंहकी उपाधि धारण की थी।
- कशाकुड़ी (तमिल) से प्राप्त दानपत्र के अनुसार:- सिंह विष्णु ने मलय, मालव, चोल, सिंहल द्वीप केरल पर विजय प्राप्त     की थी।
- -सिंह विष्णु के दरबार में महान विद्वानभारविनिवास करते थे जिन्होंनेंकिरातार्जुनयम्नामक ग्रन्थ लिखा था।
- ‘किरातार्जुनयम्में भगवान शिव किरात वेष में अर्जुन के साथ युद्ध का उल्लेख मिलता है।
- सिंह विष्णु वैष्णव धर्म के अनुयायी थे
- इन्होंने मामल्लपुरम(वर्तमान महाबलीपुरम)में एक वराह मंदिर का निर्माण करवाया था।
- इस मंदिर में अपनी स्वयं की प्रतिमा भी स्थापित करवाई थी।
महेन्द्रवर्मन प्रथम  - (600-630ई.)
- सिंह विष्णु का पुत्र था।
- उपाधियाँ - मतविलास, विचित्रचित, गुणभर
- इसी के समय चालुक्य (बादामी) पल्लव संघर्ष प्रारंभ हुआ।
- चालुक्य शासक-पुलकेशिन II ने आक्रमण किया।
- महेन्द्रवर्मन प्रारंभिक समय में जैन अनुयायी था परन्तु शैव संत "अप्पर" के प्रभाव में आकर शैव अनुयायी बना था।
- महेन्द्रवर्मन ने त्रिचनापल्ली, महेन्द्रवाड़ी, दलवणूर में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था।
- पल्लव वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।
- इसका काल पल्लवों का स्वर्णिम युग था।
- महेन्द्रवर्मन का पुत्र था।
- नरसिंहवर्मन ने साम्राज्य विस्तार हेतु अनेक युद्ध लड़े थे-
- ग्रंथ - महेन्द्रवर्मन ने "मतविलास प्रहसन" नामक ग्रन्थ लिखा था।
- यह हास्य नाटिका है।
- इसमें बौद्ध भिक्षुओं कापालिकों (शैव) पर व्यंग्य किया गया है।
- महेन्द्र ने दो तालाब 1. महेन्द्रवाड़ी  2. चित्रमेघ का निर्माण करवाया।
- यह संगीतज्ञ भी था - इसके संगीत गुरु का नाम - रुद्राचार्य था।
नरसिंह वर्मन प्रथम - (630-668 ई.)
1. पल्लव - चालुक्य संघर्ष
उल्लेख:-
- कुरम अभिलेख - इसके अनुसार नरसिंह वर्मन प्रथम ने पुलकेशिन II को क्रमश: पारियाल, शूरमार मणिमंगलम के युद्ध में पराजित किया तथा पराजित करने के बाद उसकी पीठ पर "विजयाक्षर" अंकित करवा दिया था।
-  642 ई. में चालुक्यों की राजधानी बादामी पर अधिकार कर लिया था।
-  मल्लिकार्जुन मंदिर (बादामी) के पीछे लगे शिलालेख में भी नरसिंह वर्मन प्रथम की विजय का उल्लेख है।
- उपाधि - वातापीकोंड (वातापी को तोड़ने वाला / वातापी का अपहर्ता)
2.  सिंहल द्वीप (श्रीलंका) अभियान:-
-  पुलकेशिन II के विरुद्ध श्रीलंका के राजकुमार मानवर्मा की सहायता की थी।
-  अत: नरसिंह वर्मन I ने मानवर्मा की सहायता हेतु अपनी एक विशाल नौ सेना भेजकर - मानवर्मा की सहायता की थी।
-  मानवर्मा ने अपने विरोधी "हत्थदत्थ" को मारकर श्रीलंका का शासक बना था।
-  कुरम अभिलेख के अनुसार नरसिंह वर्मन ने - चोल, केरल पाण्ड्यों को पराजित किया था।
-  निर्माण कार्य:- नरसिंह वर्मन प्रथम ने "महाबलीपुरम" में एकाश्मक रथ मंदिरों का निर्माण करवाया था।
-  नरसिंह वर्मन शैली प्रचलित थी।
-  चीनी यात्री ह्वेनसांग ने काँची के वैभव का वर्णन किया है, उसके अनुसार - काँची 6 मील में फैला हुआ था - 100 से अधिक 48 व 1000 बौद्ध भिक्षुक निवास करते थे।
नोट:-नरसिंह वर्मन प्रथम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र महेन्द्र वर्मन II शासक बना (668-670) जिसे चालुक्य शासक - विक्रमादित्य ने मार डाला।
परमेश्वरवर्मन - (670-700 ई.)
- महेन्द्रवर्मन का पुत्र था।
- उपाधियाँ - लोकादित्य, एकमल्ल, रणजय, अत्यंतकाम, उग्रदण्ड, गुणभाजन
- प्रमुख घटना -
- बादामी चालुक्य शासक विक्रमादित्य ने काँची पर आक्रमण कर राजधानी पर अधिकार कर लिया था।
- कुछ समय बाद परमेश्वरवर्मन ने काँची पर पुन: अधिकार कर लिया था।
- शैव अनुयायी था - माम्मलपुरम में एक गणेश मंदिर का निर्माण कराया है।
नरसिंह वर्मन II (700-728 ई.)
- परमेश्वरवर्मन का पुत्र था।
- उपाधि - राजसिंह, शंकरभक्त, आगमप्रिय (विद्या का प्रेमी)
- प्रमुख घटनाएँ
- चालुक्य - पल्लव संघर्ष विराम
- राजधानी काँची में "कैलाशनाथ मंदिर" का निर्माण करवाया था।
- महाबलीपुरम में "शौर" मंदिर का निर्माण करवाया था।
- इसने राजसिंह शैली प्रचलित की थी।
- इसके दरबार में संस्कृत के महान विद्वान "दण्डिन (दण्डी)" निवास करते थे। जिनकी रचनाएँ - अवन्ति सुंदरी, दशकुमार चरित, काव्यादर्श
- अपना दूत मंडल - चीन भेजा
- नाग पटि्टनम (तमिल) में बौद्ध भिक्षुओं हेतु "बौद्ध विहार" का निर्माण करवाया था।
परमेश्वरवर्मन II (728-730 ई.)
- नरसिंह वर्मन II का पुत्र था।
- तिरूवाड़ी में एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।
- चालुक्य शासक - विक्रमादित्य II ने गंगवंश (ओडिशा) के राजकुमार "एरेयप्प" की सहायता से काँची पर आक्रमण कर इसे मार डाला
नंदिवर्मन II (730-800 ई.)
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार - परमेश्वरवर्मन संतानहीन था।
- अत: काँची के विद्वानों ने पल्लव वंश की एक समान्तर शाखा के राजकुमार "नंदिवर्मन II" जो कि "हिरण्यवर्मन" का पुत्र था, को काँची का शासक बनाया था।
- अनेक राज्यों ने पल्लवों पर आक्रमण कर दिया जैसे:-
पांड्य आक्रमण
कारण:-
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार "परमेश्वरवर्मन II" का एक पुत्र "चित्रमाय" था जिसे परमेश्वरवर्मन II ने उत्तराधिकार से वंचित कर दिया, वह पाण्डेय शासकों से जा मिला।
- पिता की मृत्यु के बाद पाण्ड्यों से मिलकर  काँची पर आक्रमण किया था।
- नंदिवर्मन II के सेनापति "उदयचन्द्र" ने चित्रमाय को युद्ध में मार दिया था।
चालुक्य शासक
- विक्रमादित्य II व पुत्र कीर्तिवर्मन ने काँची पर आक्रमण कर अपार धन लूटा।
- नंदिवर्मन II (730-800 ई.)
राष्ट्रकूट संघर्ष :-
- राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग ने “नंदिवर्मन II को पराजित किया था।
- दोनों में संधि हुई।
- दंतिदुर्ग ने अपनी पुत्री “रेखा” का विवाह नंदिवर्मन के साथ कर दिया था।
- सत्य तथ्य :- नंदिवर्मन II वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
निर्माण कार्य:-
- नंदिवर्मन II ने काँची में “मुक्तेश्वर” शिव मंदिर व “बैंकुण्ठ पेरूमाल” मंदिरों का निर्माण करवाया था।
Note:- नंदिवर्मन II के बाद दंतिवर्मन (800-846) तक शासक रहा, जिसे अभिलेखों में “विष्णु का अवतार” कहा गया है।
- नंदिवर्मन III दंतिवर्मन का पुत्र था। इसने गंगो को पराजित किया।
- चोल, राष्ट्रकूट गंगवंश के साथ मिलकर “पाण्डेयों” को पराजित किया तथा कावेरी के क्षेत्र पर पुन: अधिकार कर लिया था।
- राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष ने अपनी पुत्री “शंखा” का विवाह नंदिवर्मन III के साथ कर दिया था।
- इसके दरबार में तमिल के महान विद्वान “पेरून्देवनार” निवास करते थे जिन्होंने “भारत वैणवा ” नामक ग्रन्थ की रचना की थी।
Note:- नंदिवर्मन III की मृत्यु के बाद उसका पुत्र “नृपतुंगवर्मन (869-880) शासक बना।
- इस वंश का अंतिम शासक अपराजित (880-903 ई.) इसे चोल शासक “आदित्य प्रथम” ने मार डाला था।
- काँची के पल्लवों का पतन हो गया था।
- पल्लव कालीन कला-संस्कृति द्रविड़ कला का आधार थी।
- दक्षिण भारत की मंदिर स्थापत्य के 3 अंग माने गए हैं।
1. मण्डप
2. रथ
3. विशाल मंदिर- विशाल प्रवेश-गोपुरम
- पर्सी ब्राउन ने पल्लव स्थापत्य कला को 4 भागों में विभाजित किया है।
1. महेन्द्रवर्मन शैली (610-640 ई.)
- इस शैली में कठोर पाषाण (चट्‌टानों) को काटकर गुहा मंदिरो का निर्माण जिन्हें “मण्डप” कहा गया है।
- मण्डप साधारणत: स्तंभयुक्त बरामदे हैं जिनकी पिछली दीवार पर एक दो कक्ष निर्मित होते हैं: जैसे- पल्लवरम का पंचपांडव मंडप
2. माम्मल शैली :-
- इस शैली का विकास- नरसिंह वर्मन प्रथम द्वारा किया गया था।
- इसके अन्तर्गत दो प्रकार के स्मारक-(1) मण्डप (2) रथ या एकाश्मक मंदिर
- इन एकाश्मक मंदिरों में “द्रौपदी रथ” मंदिर सबसे छोटा है, जबकि “धर्मराज रथ” सबसे बड़ा सुंदर है।
- इन रथ मंदिरों को “सात पैगोड़ा” कहा जाता है।
1. द्रौपदी रथ- सबसे छोटा
2. नकुल-सहदेव रथ
3. अर्जुन रथ
4. भीम-रथ
5. धर्मराज रथ-सबसे बड़ा/सुंदर था, इस पर नरसिंहवर्मन की मूर्ति भी है।
6. गणेश रथ
7. पिण्डारी रथ
8. वलयकंट्‌टैथ रथ
- कुल रथ मंदिरों की संख्या-8 हैं।
- इन रथ मंदिरों पर-शिव, गंगा, पार्वती, गणेश, द्वन्द्व, हरिहर, ब्रह्मा का अंकन मिलता है।
- सप्तपेगोडा (महाबलीपुरम)- मूर्तिकला के लिए विख्यात है।
3. राजसिंह शेली:-
- गुहामंदिरों के स्थान पर ईंट पाषाण की सहायता से “इमारती मंदिरों का निर्माण किया गया था।
शैली:- नरसिंह वर्मन II द्वारा
- काँची का कैलाशनाथ मंदिर इसी शैली में निर्मित है जिसका निर्माण नरसिंह वर्मन II के समय प्रारंभ होकर- परमेश्वर वर्मन II के समय पूर्ण हुआ था।
4. नंदिवर्म/अपराजित शैली (800-900 ई.)
- इस शैली में छोटे-छोटे मंदिरों का निर्माण हुआ।
जैसे- काँची का “मुक्तेश्वर मंदिर”
चोल :
- अशोक के दूसरे एवं तीसरे शिलालेखों में चोल साम्राज्य का उल्लेख मिलता है।
- संगम साहित्य में चोल शासक करिकाल तथा उसकी राजधानी उरेयुर का वर्णन है।
- महावंश – बौद्ध ग्रन्थ
- रचना – सिंहली द्वीप (श्रीलंका) में
- चोल शासक – परान्तक प्रथम द्वारा पाण्डय शासकों पर विजय का उल्लेख मिलता है।
- राजेन्द्र प्रथम द्वारा श्रीलंका विजय का उल्लेख मिलता है।
- दीपवंश महावंश को सिंहली अनुश्रुतियों के रूप में जाना जाता है (दोनों ही बौद्ध ग्रन्थ है)
- वीरशोलियम् :– रचना – बुद्धमित्र
- व्याकरण ग्रन्थ
- उल्लेख वीर राजेन्द्र के बारे में जानकारी मिलती है।
अभिलेख :-
1. लीडन दानपत्र लेख – राजराज प्रथम के बारे में            जानकारी मिलती है।
2. तंजौर अभिलेख – राजराज प्रथम के बारे में जानकारी मिलती है।
3. करन्दे अभिलेख – राजेन्द्र प्रथम के बारे में जानकारी मिलती है।
चोल वंश :-
- दक्षिण भारत का सबसे प्राचीनतम वंश माना जाता है।
- उदय : संगमकाल (3 शताब्दी) में परन्तु राजनीतिक उत्थान नवीं शताब्दी में हुआ था।
- चोल का शाब्दिक अर्थ – घूमना
विजयालय (850 ई. – 871 ई.)
- 9वीं शताब्दी में चोल वंश का संस्थापक विजयालय था जिसने पल्लवों से सत्ता प्राप्त की।
- विजयालय ने तंजौर को अपनी राजधानी बनाया तथा नरकेसरी की उपाधि धारण की।
आदित्य प्रथम (871 . – 907 ई.)
- प्रथम शक्तिशाली शासक जिसने पल्लवों को पराजित किया था।
- विजयालय का पुत्र आदित्य I ने 'कोदंडराम' की उपाधि धारण की।
परान्तक प्रथम (907 . – 953 ई.)
- पांड्य नरेश राजसिंह II को पराजित कर 'मदुराकोंड' की उपाधि धारण की।
- परांतक II सुंदर चोल के नाम से प्रसिद्ध था।
Note : 953 ई. से लेकर 985 ई. तक चोल साम्राज्य में राजनीतिक उठापटक रही इस दौरान उत्तम चोल (973-985 ई.) शासक जिसने पहली बार सोने के सिक्के चलाए ऐसा करने वाला प्रथम शासक था।
राजराज प्रथम (985-1014 ई.)
-  प्रथम सबसे प्रतापी शासक था।
- राजराज I (985-1014) मुम्माडि चोलदेव, जयगोंड, चोल मार्तंड आदि नामों से भी जाना जाता था।
- राजराज I ने श्रीलंका की राजधानी अनुराधपुर को नष्ट कर दिया तथा पोलभरूवा नयी राजधानी बनी।
- श्रीलंका के शासक महेन्द्र-v को पराजित कर श्रीलंका के उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया था।
- इस उत्तरी भाग को चोल साम्राज्य का एक प्रांत बनाया तथा इसका नाम “मुम्डीचोलमंडलम” रखा था।
- 1000 ई. में इसने भू-सर्वेक्षण किया ताकि भू-राजस्व का निर्धारण किया जा सके।
- स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहन दिया।
- एक दूत मण्डल चीन भेजा।
- उसने मालद्वीप को भी पराजित किया।
- राजराज-I शैव मतानुयायी था तथा उसने शिवपादशेखर की उपाधि धारण की।
रचनाकार एवं कृति   
रचनाकार         कृति
1. पद्मगुप्त        नवसाहसांकचरित
2. विल्हण        विक्रमांकदेवचरित
3. कल्हण        राजतरंगिणी
4. हेमचन्द्र        कुमारपालचरित
5. नयचन्द्र सूरि    हम्मीरकाव्य
6. जयानक        पृथ्वीराज विजय
7. वाक्पति        गौडवहो
8. संध्याकर नन्दी   रामपालचरित
9. क्षेमेन्द्र          वृहत्कथामंजरी
- उसने तंजौर में विश्वप्रसिद्ध राजराजेश्वर/वृहदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया।
- उसके शासनकाल में शैलेन्द्र शासक श्रीमार विजयोतुंग वर्मन को नागपट्टम में बौद्ध विहार बनाने की अनुमति दी गई।
- राजराज I के बाद राजेन्द्र I (1014-1044) शासक बना।
- राजेन्द्र I के शासनकाल में श्रीलंका को पूर्णरूपेण विजित किया गया तथा तत्कालीन शासक महेन्द्र V को बंदी बनाया गया।
- राजेन्द्र चोल के उत्तर की ओर किए गए सैन्य अभियान में गंग शासक तथा पाल शासक (महीपाल) को पराजित किया गया। इस अभियान की सफलता पर राजेन्द्र I 'गंगईकोंडचोल' की उपाधि धारण की। साथ ही गंगईकोंडचोलपुरम नामक नगर का निर्माण किया गया।
- राजेन्द्र I ने दक्षिण - पूर्व एशिया स्थित श्रीविजय राज्य को भी विजित किया।
राजाधिराज प्रथम (1044-1052 ई.) :-
- राजेन्द्र I के बाद राजाधिराज I (1044-1052) उसका उत्तराधिकारी बना उसने चालुक्य नरेश सोमेश्वर को हराकर वीर राजेन्द्र की उपाधि धारण की।
- कोप्पम युद्ध में राजाधिराज-I सोमेश्वर के साथ युद्ध करते हुए शहीद हो गया तथा उसके छोटे भाई राजेन्द्र-II का राज्याभिषेक युद्धभूमि में ही किया गया।
राजेन्द्र-II (1052-1064 ई.) :-
- अपने पिता राजाधिराज की हत्या का बदला लेने हेतु कोप्पम की युद्ध भूमि में ही सोमेश्वर प्रथम को पराजित किया था।
- इस विजय के उपलक्ष्य में “कोल्हापुर” में एक विजय स्तंभ का निर्माण करवाया तथा अपना राज्याभिषेक करवाया था।
- 1062 . में कुंडलसंगम (कर्नाटक) के युद्ध में सोमेश्वर प्रथम को पुन: पराजित कर प्राकेसरी की उपाधि धारण की थी।
वीर राजेन्द्र (1064-1070 ई.) :-
- वीर राजेन्द्र, राजेन्द्र-II का पुत्र था।
- 1066 ई. इसने कल्याणी के शासक सोमेश्वर प्रथम को पराजित किया था
- सोमेश्वर ने अगले वर्ष पुन: लड़ने को चुनौती दी थी।
- 1067-68 . कुंडलसंगम के युद्ध में सोमेश्वर प्रथम बीमार होने के कारण स्वयं आकर अपनी सेना को वीर राजेन्द्र से लड़ने भेजा था।
- वीर राजेन्द्र ने सोमेश्वर की सेना को पराजित किया था।
- तुंगभद्रा नदी के किनारेविजय स्तंभराजकेशरीकी उपाधि धारण की थी।
- विजयवाड़ा (बैजवाड़ा) के युद्ध में वेंगी चालुक्यों को पराजित कर वेंगी पर पुन: चोलों का अधिकार स्थापित किया था।
Note : वीर राजेन्द्र की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों में उत्तराधिकार संघर्ष हुआ, जिसमें अधिराजेन्द्र विजय रहा शासक बना।
- चोल शासक अधिराजेन्द्र की जन विद्रोह के समय में हत्या कर दी गई।
कुलोत्तुंग प्रथम (1070-1120 ई.) :-
- कुलोत्तुंग I चोल - चालुक्य वंश का प्रथम शासक था।
- कौन: – मूलत: यह वेंगी चालुक्य शासक राजेन्द्र द्वितीय था, जिसने अधिराजेन्द्र की मृत्यु के बाद चोल साम्राज्य पर अधिकार कर अपना राज्याभिषेक “कुलोत्तुंग प्रथम” के नाम से करवाया था।
- इसके समय भी अनेक जन विद्रोह हुए।
- 1076 ई. में सिंहल द्वीप (श्रीलंका) ने अपने आप को स्वतंत्र कर लिया था।
- 1078/79 कल्याणी शासक विजयादित्य (विक्रमादित्य) के साथ हुए युद्ध में इसने कल्याणी शासक को पराजित कर गंगवाडी पर अधिकार कर लिया था।
- पाण्डे्य चेरो ने भी विद्रोह किए परन्तु उनका दमन कर दिया था।
कलिंग आक्रमण :-
- कुलोत्तुंग ने दो बार कलिंग पर आक्रमण किया था :-
1.  1096 ई. – द.कलिंग के विद्रोह का दमन करने हेतु।
2.  1110 ई. – कलिंग शासक अंनतवर्मन को पराजित कर कलिंग पर अधिकार कर लिया था।
- उपाधिश्रीभुवनचक्रवर्तिन (तीनों लोकों का स्वामी)
- कुलोत्तुंग I के शासनकाल में 1077 में 72 व्यापारियों के एक दूतमंडल को चीन भेजा गया।
- कुलोत्तुंग I ने 'शुंगमतर्वित' (करों को हटाने वाला) की उपाधि धारण की।
- उसके शासनकाल में भूमि का पुनः सर्वेक्षण कराया गया।
- 1120 ई. में इसकी मृत्यु के साथ ही चोलों का पतन प्रारंभ हो गया था।
- कुलोत्तुंग II के शासनकाल में चिदम्बरम मंदिर में स्थित गोविन्दराज की मूर्ति को समुद्र में फेंक दिया गया। कालान्तर में प्रसिद्ध वैष्णव संत रामानुजाचार्य ने उक्त मूर्ति का पुनः उद्धार करके उसे तिरुपति मंदिर में स्थापित किया।
- कुलोत्तुंग II के दरबार में तमिल रामायण के लेखक कम्बन रहते थे।
राजेन्द्र-III (1246-1279 ई.) :-
- चोल वंश का अंतिम शासक।
- इसी ने मदुरै के पाण्ड्य शासक सुन्दर पाण्ड्य, चेर, काकतीय होयसल पर विजय प्राप्त की थी।
- सुंदर पाण्ड्य ने राजेन्द्र-III पर आक्रमण कर पराजित किया इसे अपना सामंत बना लिया था।
- चोल साम्राज्य का विभाजन पाण्ड्य होयसलो में हो गया था।
चोल प्रशासन :
- चोल प्रशासन केन्द्रीय नियंत्रण के साथ - साथ स्थानीय स्वायत्तता के लिए प्रसिद्ध था।
- शासन की प्रकृति- राजतंत्रात्मक थी।
- राजा की मृत्यु के बाद- ज्येष्ठाधिकार था।
- उपराजा का सामान्यत- राजकुमारियों को दिया जाता था।
- प्रशासन से संबंधित शब्दावली:
1.राजा के मौखिक आदेश- तिरुवायकेल्लि कहलाता था।
दो प्रकार के सरकारी अधिकारी
1. पेरुन्दनम: उच्च श्रेणी के अधिकारी
2. शिरुन्दम: निम्न श्रेणी के अधिकारी
- वैडेक्कार: राजा के व्यक्तिगत अंगरक्षक
- उडेनकुट्टम: शाब्दिक अर्थ: सदा प्रस्तुत समूह
- उडेनकुट्टम: में राजा के निजी सहायक शामिल होते थे।
- उडेनकुट्टम में आदेशों को लिपिबद्ध करने का कार्य किया जाता था
- अधिकारियों को वेतन के रूप  में भूमि दी जाती थी।
साम्राज्य विभाजन:- 
- प्रशासन इकाई- केन्द्र (देश)
- मण्डलम (राज्य/प्रांत)
- कोट्टम/ वलनाडु:जिला
- नाडु- तहसील
- कुर्रम- ग्राम पंचायत
- गाँव- प्रशासन की सबसे छोटी इकाई।
- इनके सिक्कों पर – व्याघ्र, मछली, धनुष, वराह का अंकन होता था।
- दक्षिण भारत में वराह प्रकार का सिक्का सबसे ज्यादा प्रचलित था।
- ताँबे के सिक्के हेतु कणि शब्द का प्रयोग किया गया था।
- उत्तम चोल प्रथम चोल शासक जिसने सोने के सिक्के चलाए।
सैन्य प्रशासन-
- चोलों की 4 प्रकार की सेना थी- 1. पैदल सेना, 2.  अश्व सेना, 3. गज सेना, 4. जल सेना
- रथ सेना का उल्लेख नहीं मिलता है।
- सेना की टुकड़ी को- गुल्प
- सेना के प्रमुख- नायक
- सेनापति को- महादण्डनायक
- वीरतापूर्वक लड़ने वाले सैनिकों को क्षत्रिय शिरोमणि की उपाधि दी जाती थी।
- राजा की मृत्यु के पश्चात् मंदिरों में मूर्तियाँ स्थापित कर पूजा की जाती थी।
- राजराज I तथा कुलोत्तुंग I के शासनकाल में भूमि सर्वेक्षण कराया गया था।
- चोलों के पास शक्तिशाली नौसेना थी।
- ग्रामीण स्तर पर संस्थाओं को स्वायत्तता दी गई थी।
- ग्राम स्तर पर उर तथा सभा या महासभा संस्थाएँ थी।
- उर: सभी लोगों की ग्राम सभा (गाँव के सभी लोग शामिल) थी।
- सभा/महासभा: गाँव के ब्राह्मणों की सभा थी।
- नगरम: व्यापारिक समुदाय की प्रशासनिक सभा जिसमें केवल व्यापारी वर्ग ही शामिल था।
- वारियम सभा की समिति को कहा जाता था।
- विशेष परिस्थिति में ही केन्द्रीय सरकार स्थानीय स्वशासन की स्वायत्तता में हस्तक्षेप करती थी।
- नगरम नामक एक अन्य संस्था व्यापारिक गतिविधियों की देखरेख करती थी।
कला एवं संस्कृति :
- चोलकाल में पल्लवों द्वारा प्रारंभ की गई द्रविड़ मंदिर स्थापत्य कला अपने चरम विकास पर पहुँच गई थी।
- चोलकालीन मंदिर- आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र थे।
चोल मंदिरों की विशेषता-
- इनका निर्माण ऊँचे वर्गाकार चबूतरे पर किया जाता था।
- ऊँचे विमान बनाए जाते थे।
- मंदिरों में राजा की प्रतिमा स्थापित की जाती थी तथा उनका पूजन देवता के रूप में किया जाता था।
- भीतरी भाग (गर्भग्रह)
- भगवान की प्रतिमा स्थापित की जाती थी।
- चोल मंदिरों के संदर्भ में फर्ग्यूसन का कथन- चोल कलाकारों ने इन मंदिरों का निर्माण दानवों की भाँति किया तथा रत्नकारों (जोहरियों) की तरह विन्यास किया था।
सभी मंदिर तमिलनाडु में स्थित है-
मंदिरशासकस्थान
चोलेश्वर मंदिर(शिव)विजयालयनरतमल्लै (तमिल)
- बृहदेश्वर मंदिर (राजराजेश्वर मंदिर) बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण- राजराज प्रथम ने करवाया था।
- बृहदेश्वर मंदिर स्थित है- तंजौर (दारासुरम)
- द्रविड़ शैली का सर्वोत्कृष्ट नमूना माना जाता है।
- 1987 ई. में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत (धरोहर) सूची में शामिल किया गया था
- त्रिभुवनेश्वर मंदिर- कुलोत्तुंग III- त्रिभुवन तंजौर
- शिव मंदिर- अज्ञात- त्रिवलीश्वर
- यह मंदिर भी चोलकालीन है।
- कम्हेश्वर मंदिर- कुलोत्तुंग III – त्रिभुवन (कुंभकोणम)
- सबसे बड़ा मंदिर- बृहदेश्वर शिव मंदिर।
- समाज में क्षत्रिय एवं वैश्य का अस्तित्व नहीं था।
- वलंगै (दायीं भुजा वाले) तथा इड़गै (बायीं भुजा वाले) विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग थे।
- वैष्णव संतों को आलवार तथा शैव संतों को नयनार कहा जाता था।
- चोल शासनकाल में शैव एवं वैष्णव दोनों धर्मों  का प्रचार हुआ।
- अधिकांश चोल शासक शैव मतानुयायी थे।
- चोलकालीन वैष्णव मत के प्रधानाचार्य रामानुज विशिष्टा ने द्वैतवाद मत का प्रतिपादन किया।
- विजयालय चोल ने नार्त्तामलाई में चोलेश्वर मन्दिर का निर्माण करवाया।
- चोलों के अधीन चित्रकला का भी विकास हुआ।
- कन्ननूर में आदित्य I ने सुब्रह्मण्यम मन्दिर का निर्माण करवाया।
- परांतक II के शासनकाल में श्रीनिवासनालयूर में कोरंगनाथ मंदिर का निर्माण हुआ।

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