मुगल काल
इंडो - इस्लामिक संस्कृति का काल
बाबर (1526-30 ई.) :
- 1494 ई. में ट्रांस आक्सियाना की छोटी सी रियासत फरगना का बाबर उत्तराधिकारी बना।
- मध्य एशिया में कई अन्य आक्रमणकारियों की भाँति बाबर भी अकूत धनराशि के कारण भारत की ओर आकर्षित हुआ।
- बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का तथा अपनी माता की ओर से चंगेज खाँ का वंशज था।
- बाबर के पिता का नाम उमर शेख मिर्जा था। जो चगताई तुर्क था।
- मध्य एशिया में अपनी अनिश्चित स्थिति के कारण इसने सिन्धु नदी को पार कर भारत पर आक्रमण किया था।
-1518-1519 ई. में बाबर ने भेरा के शक्तिशाली किले पर आक्रमण किया, जो उसका प्रथम भारतीय अभियान था।
-अप्रैल, 1526 को बाबर तथा इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ था।
- इस युद्ध में बाबर ने अपने 12,000 सैनिकों के साथ व एक हजार हाथियों से युक्त इब्राहिम लोदी की सेना को पराजित किया।
- इस युद्ध में बाबर ने उस्मानी विधि व तुलुगमा पद्धति का प्रयोग किया।
- इस युद्ध में इब्राहिम लोदी पराजित हुए तथा दिल्ली एवं आगरा तक का प्रदेश बाबर के अधीन हो गया।
- बाबर अपनी उदारता के कारण 'कलंदर' नाम से भी जाना जाता है।
- 27 अप्रैल, 1526 को बाबर ने दिल्ली में मुगल वंश के संस्थापक के रूप में राज्याभिषेक करवाया।
- दिसम्बर, 1530 में आगरा में बाबर की मृत्यु व उसे आगरा के नूर अफगान बाग (वर्तमान आराम बाग) में दफनाया गया। बाद में इसे काबुल में दफनाया गया।
खानवा युद्ध :
- आगरा से 40 किमी. दूर खानवा की लड़ाई 1527 ई. में बाबर तथा राणा सांगा के बीच लड़ी गई जिसमें राणा सांगा पराजित हुए।
- युद्ध में विजयी होने के बाद बाबर ने “गाजी” की उपाधि धारण की।
- खानवा की लड़ाई से दिल्ली - आगरा में बाबर की स्थिति मजबूत हुई और ग्वालियर तथा धौलपुर के किले पर भी अधिकार हो गया।
चंदेरी युद्ध :
- खानवा के बाद बाबर ने चंदेरी के युद्ध में राजपूत सरदार मेदिनीराय को पराजित कर चंदेरी पर अधिकार कर लिया।
- 1529 ई. में बाबर ने बनारस के निकट गंगा नदी पार करके घाघरा नदी के निकट अफगानों और बंगाल के नुसरतशाह की सेनाओं का सामना किया।
- बाबर की मातृभाषा तुर्की थी।
- बाबर की आत्मकथा 'तुजुक-ए-बाबरी' का विश्व साहित्य के शास्त्रीय ग्रन्थों में स्थान है। बाबरनामा (तुर्की भाषा में) का फारसी भाषा में अनुवाद ‘रहीम-खान-ए-खाना’ ने किया।
हुमायूँ (1530-1556 ई.) :
- हुमायूँ 1530 ई. में 23 वर्ष की आयु में आगरा में गद्दी पर बैठा।
- इसके सामने अनेक समस्याएँ थीं-प्रशासन को सुगठित करना, आर्थिक स्थिति ठीक करना, अफगानों को पूरी तरह दबाना तथा पुत्रों में राज्य बाँटने की तैमूरी प्रथा।
- हुमायूँ का छोटा भाई कामरान काबुल और कंधार का प्रशासक था।
- कामरान ने लाहौर तथा मुल्तान पर आधिपत्य जमा लिया था।
- 1531 ई. में कालिंजर अभियान के अंतर्गत हुमायूँ ने बुंदेलखंड के कालिंजर दुर्ग पर घेरा डाला।
- हुमायूँ तथा महमूद लोदी के बीच दोहरिसा का युद्ध हुआ जिसमें महमूद लोदी पराजित हुआ।
- हुमायूँ दिल्ली के निकट दीनपनाह नामक नया शहर बनवाने में व्यस्त रहा, जो बहादुरशाह की ओर से आगरा पर खतरा पैदा होने की स्थिति में इसकी राजधानी के रूप में काम आया।
- इसी बीच बहादुरशाह ने अजमेर, पूर्वी राजस्थान को रौंद डाला। चित्तौड़ पर आक्रमण किया तथा इब्राहिम लोदी के चचेरे भाई तातार खाँ को सैनिक तथा हथियारों से सहायता दी।
- हुमायूँ ने तातार खाँ की चुनौती समाप्त कर दी तथा बहादुरशाह के अंत के लिए मालवा पर आक्रमण कर दिया।
- माँडू किले को पार करने वाला हुमायूँ 41वाँ व्यक्ति था।
- मालवा और गुजरात का समृद्ध क्षेत्र हुमायूँ के अधीन आ गया था।
- माडू तथा चम्पानेर के किले पर भी हुमायूँ का अधिकार हो गया था।
- आगरा से हुमायूँ की अनुपस्थिति के दौरान शेर खाँ ने 1535-37 ई. तक अपनी स्थिति मजबूत बना ली तथा वह बिहार का निर्विरोध स्वामी बन गया।
- शेर खाँ ने बंगाल के सुल्तान को पराजित किया।
- 1539 ई. में चौसा की लड़ाई में हुमायूँ शेर खाँ से पराजित हो गया था।
- मई, 1540 में कन्नौज की लड़ाई में अस्करी तथा हिन्दाल कुशलतापूर्वक शेर खाँ से लड़े लेकिन मुगल पराजित हुए।
- हुमायूँ अब राज्यविहीन राजकुमार था, क्योंकि काबुल और कंधार कामरान के अधीन था।
- अगले ढाई वर्ष तक हुमायूँ सिंध तथा पड़ोसी राज्यों में घूमता रहा।
- अंततः हुमायूँ ने ईरानी शासक के दरबार में शरण ली तथा 1545 ई. में ईरानी शासक की सहायता से काबुल तथा कंधार को प्राप्त किया।
- हुमायूँ 1555 ई. में सूर साम्राज्य के पतन के बाद दिल्ली पर पुनः अधिकार करने में सफल हुआ।
- दिल्ली के पुस्तकालय (दीनपनाह भवन) की इमारत की पहली मंजिल से गिर जाने के कारण हुमायूँ की मृत्यु हो गई थी।
- हुमायूँ सप्ताह के सात दिन, अलग-अलग रंग के कपड़े पहनता था। हुमायूँ का मकबरा दिल्ली में हाजी बेगम द्वारा बनवाया गया इसे ताजमहल का पूर्वगामी भी कहा जाता है।
शेर खाँ (1540-45 ई.) :
- शेर खाँ का वास्तविक नाम फरीद था। उसके पिता जौनपुर में जमींदार थे।
- 1544 ई. में अजमेर तथा जोधपुर के बीच सुमेल नामक स्थान पर राजपूत और अफगान सरदारों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें राजपूत सेना पराजित हुई।
- शेरशाह/शेर खाँ का अंतिम अभियान कालिंजर (बुंदेलखण्ड) के किले के विरुद्ध था।
- शेरशाह का उत्तराधिकारी उसका दूसरा पुत्र इस्लामशाह बना था।
- हुमायूँ ने 1555 ई. में जबरदस्त लड़ाइयों में अफगानों को पराजित कर, दिल्ली और आगरा पुनः जीत लिया।
- शेरशाह के शासनकाल में आय का सबसे बड़ा स्रोत भू-राजस्व था।
- रोहतासगढ़ दुर्ग का निर्माण शेरशाह ने करवाया। सड़क-ए-आजम (ग्रांड ट्रंक रोड) बंगाल के सोनार गाँव से दिल्ली लाहौर होती हुई पंजाब में अटक तक का निर्माण करवाया।
- भू-राजस्व का निर्धारण भूमि की पैमाइश पर आधारित था।
- राज्य कर का भुगतान नकदी में चाहता था, लेकिन यह काश्तकारों पर निर्भर था कि वे कर नकद में दें या अनाज के रूप में।
- कानूनगो ने शेरशाह सूरी के लिए कहा है कि “वह बाहर से मुस्लिम अन्दर से हिन्दू था”।
- शेरशाह ने भूमि की पैमाइश हेतु 32 अंक वाले गज-ए-सिकन्दरी तथा सन की रस्सी का प्रयोग किया।
- मुद्रा सुधार के क्षेत्र में शेरशाह ने 280 ग्रेन का चाँदी का रुपया तथा 380 ग्रेन का ताँबे का दाम चलाया।
- शेरशाह ने इस्लामी कानून को लिखित रूप दिया।
- शेरशाह ने सैनिकों को नकद वेतन देने की प्रथा चलाई।
- सासाराम (बिहार) में स्थित शेरशाह का मकबरा, जो उसने अपने जीवनकाल में निर्मित करवाया था, जो स्थापत्य कला की पराकाष्ठा है।
- शेरशाह ने दिल्ली के निकट यमुना नदी के किनारे एक नया शहर बनाया। जिसमें अब केवल पुराना किला तथा उसके अंदर एक मस्जिद सुरक्षित है।
- मलिक मुहम्मद जायसी की श्रेष्ठ रचना ‘पद्मावत’ शेरशाह के शासनकाल में ही रची गई थी।
- इसने हिन्दुओं से जजिया कर लिया तथा सभी सरदार लगभग अफगानी थे।
- इसने घोड़ों को दागने की प्रथा पुनः चलाई थी।
- मारवाड़ के बारे में शेरशाह का कथन- “मैं मुट्ठीभर बाजरे के लिए दिल्ली के साम्राज्य को खो देता”।
- मच्छीवाड़ा (मई, 1555) तथा सरहिन्द युद्ध (जून, 1555) के बाद हुमायूँ ने अपने प्रदेशों को पुनः प्राप्त किया।
अकबर (1556-1605 ई.) :
- हुमायूँ जब बीकानेर से लौट रहा था तो अमरकोट के राणा ने उसकी सहायता की थी।
- अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में ही 1542 ई. में अकबर का जन्म हुआ था।
- 1556 ई. में कलानौर में अकबर की ताजपोशी 13 वर्ष 4 महीने की अवस्था में हुई थी।
- बैरम खाँ को खान-ए-खाना की उपाधि प्रदान की गयी तथा राज्य का वकील बनाया गया।
- 5 नवम्बर, 1556 में हेमू के नेतृत्व में तथा मुगलों के बीच पानीपत की दूसरी लड़ाई हुई जिसमें हेमू पराजित हुआ एवं मारा गया।
- बैरम खाँ लगभग 4 वर्ष तक (1556-1560 ई.) अकबर के साम्राज्य का सरगना रहा।
प्रान्तीय स्थापत्य कला
1.अटाला मस्जिद | इब्राहिम शाह शर्की (जौनपुर) |
2.अदीना मस्जिद (पांडुआ) | सिकन्दरशाह (बंगाल) |
3.माँडू का किला | हुशंगशाह (मालवा) |
4.बाज बहादुर एवं रूपमती महल | नासिरुद्दीन शाह (मालवा) |
5.हुशंगशाह का मकबरा | महमूद I (मालवा) |
6.हिंडोला महल | हुशंगशाह (मालवा) |
7.अहमदशाह का मकबरा | मुहम्मद शाह (गुजरात) |
8.जामा मस्जिद | सिकन्दर (कश्मीर) |
- अकबर की धाय माँ माहम अनगा थी।
- बैरम खाँ की मृत्यु के बाद अकबर की पहली विजय मालवा (1561 ई.) की थी।
- मालवा का शासक बाज बहादुर संगीत प्रेमी था।
- 1564 ई. में अकबर ने गढ़कटंगा (गौंडवाना) को विजित किया।
- गढ़कटंगा की स्थापना अमन दास ने की थी।
- यहाँ का राजा वीर नारायण अल्पायु था, अतः उसकी माँ रानी दुर्गावती जो महोबा की चंदेल राजकुमारी थी, गढ़कटंगा की वास्तविक शासिका थी।
- आमेर के राजपूत शासक भारमल अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाले प्रथम राजपूत शासक थे।
- अकबर द्वारा 1567-1568 ई. में मेवाड़ अभियान किया गया था।
- मेवाड़ का तत्कालीन शासक राणा उदयसिंह ने मालवा के शासक बाज बहादुर को अपने यहाँ शरण देकर अकबर को क्रोधित कर दिया था। साथ ही मेवाड़ काफी शक्तिशाली राजपूत राज्य भी था।
- राणा उदयसिंह ने राजपूत सेना का नेतृत्व जयमल तथा फतेह सिंह (फत्ता) को सौप दिया।
- इन दोनों वीरों के शहीद होने के बाद स्त्रियों ने जौहर कर लिया।
- अकबर ने आगरा के मुख्य द्वार पर जयमल तथा फत्ता की प्रतिमाएँ लगवाई।
- अकबर ने आसफ खाँ को मेवाड़ का सूबेदार नियुक्त किया था।
- 1569 ई. में अकबर ने रणथम्भौर के राव सुरजन हाड़ा को अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया।
- 1570 ई. में बीकानेर के शासक राव कल्याण मल व जैसलमेर के शासक रावल हरराय ने अकबर की अधीनता स्वीकार की।
- अकबर ने 1572-73 ई. में गुजरात अभियान किया।
- इस समय गुजरात का तत्कालीन शासक मुजफ्फरशाह -III था।
- गुजरात में ही अकबर सर्वप्रथम पुर्तगालियों से मिला और यहीं पर उसने पहली बार समुद्र को देखा।
- अकबर ने लड़के व लड़कियों की विवाह की आयु 16 व 14 वर्ष तय की।
- 1574-76 ई. में अकबर ने बिहार तथा बंगाल को मुगल साम्राज्य में शामिल किया।
- 18 जून, 1576 को मुगल सेना तथा मेवाड़ के शासक राणा प्रताप की सेना के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।
- 1585-86 ई. में अकबर ने कश्मीर को जीतने तथा काबुल को मुगल साम्राज्य का अंग बनाने के लिए अभियान किया। युसूफजाई कबीले के विद्रोह को दबाने के क्रम में राजा बीरबल मारे गए। बाद में टोडरमल ने इस विद्रोह का दमन किया।
- कश्मीर के तत्कालीन शासक युसुफ खाँ पराजित हुए।
- 1590 ई. में अकबर ने सिंध पर विजय प्राप्त की। इस अभियान का नेतृत्व अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना द्वारा किया गया।
- अकबर प्रथम मुगल शासक था, जिसने दक्षिणी राज्यों को अधीन करने के लिए अभियान किया।
§ खानदेश अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाला प्रथम दक्कनी राज्य था। यहाँ का शासक अली खाँ था।
- 1601 ई. में असीरगढ़ के किले को विजित किया गया, जो कि अकबर का अंतिम सैनिक अभियान था।
- 1602 ई. में सलीम (जहाँगीर) के निर्देश पर ओरछा के बुंदेला सरदार वीरसिंह ने अबुल फजल की हत्या कर दी।
-1605 ई. में अतिसार रोग से अकबर की मृत्यु हो गई थी।
- अकबर का मकबरा आगरा के समीप सिकन्दरा में है।
- 1575 ई. में अकबर ने अपनी नयी राजधानी फतेहपुर सीकरी (आगरा) में इबादतखाना (प्रार्थना भवन) बनवाया।
- इबादतखाना में धार्मिक विषयों पर वाद - विवाद होता था।
- 1578 ई. में इबादतखाना को सभी धर्मों के लिए खोल दिया गया था।
- 1579 ई. में अकबर ने मुल्लाओं से निपटने के लिए और अपनी स्थिति को ओर मजबूत बनाने के लिए मजहर की घोषणा की।
- मजहर की घोषणा के बाद अकबर ने सुल्तान-ए-आदिल की उपाधि धारण की।
- 1582 ई. में इबादतखाना को बंद कर दिया।
- बदायूंनी अकबर का घोर आलोचक था।
- 1582 ई. में अकबर ने विभिन्न धर्मों के सार संग्रह के रूप में ‘दीन-ए-इलाही’ की घोषणा की, जो एकेश्वरवाद पर आधारित थी।
- अबुल फजल तथा बदायूंनी ने तथाकथित नए धर्म के लिए 'तौहीद-ए-इलाही' शब्द का प्रयोग किया है।
- दीन-ए-इलाही की स्थापना के पीछे अकबर का उद्देश्य 'सुलह-ए-कुल' अथवा सार्वभौमिक सहिष्णुता की भावना का प्रसार करना था।
- बीरबल ने दीन-ए-इलाही की दीक्षा ली थी।
- 1562 ई. में अकबर ने युद्ध बंदियों को बलात दास बनाने की प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- 1563 ई. में अकबर ने हिन्दू तीर्थयात्रियों पर से तीर्थयात्रा कर को समाप्त कर दिया।
- अबुल फजल के अनुसार 1564 ई. में गैर-मुसलमानों से वसूल किए जाने वाले जजिया कर को अकबर ने समाप्त कर दिया, जबकि बदायूंनी के अनुसार 1599 ई. में जजिया कर समाप्त किया था।
- 1571 ई. में फतेहपुर सीकरी का निर्माण करवाकर राजधानी आगरा से फतेहपुर स्थानान्तरित की।
- प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के साथ अकबर के घनिष्ठ संबंध थे।
- 1580 ई. में अकबर ने सम्पूर्ण साम्राज्य को 12 प्रान्तों में विभाजित किया था।
- टोडरमल राजस्व मामलों का विशेषज्ञ था। उसने जब्ती प्रथा को जन्म दिया।
- अकबर के नवरत्न में बीरबल, अबुल फजल, फैजी, टोडरमल, भगवानदास, तानसेन, मानसिंह, अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना आदि शामिल थे।
- महेशदास नामक ब्राह्मण को अकबर ने बीरबल की पदवी दी थी।
- अबुल फजल का भाई फैजी अकबर का राजकवि था।
- अकबर के समय में सिंहासन बत्तीसी, अथर्ववेद, बाइबिल, महाभारत, गीता, रामायण, पंचतंत्र, कुरान आदि का अनुवाद हुआ।
जहाँगीर (1605-1627 ई.) :
- जहाँगीर का जन्म फतेहपुर सीकरी में हुआ था।
- अकबर जहाँगीर (सलीम) को शेखोबाबा कहकर पुकारता था।
- जहाँगीर का राज्याभिषेक आगरा के किले में 1605 ई. में हुआ।
- देश के सामान्य कल्याण तथा उत्तम प्रशासन के लिए बारह आदेशों के प्रवर्तन के साथ उसके शासन का शुभारम्भ हुआ।
- सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव के साथ बागी शहजादा खुसरो तनतास में ठहरा था और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। अतः जहाँगीर ने पहले जुर्माना लगाया लेकिन जुर्माना अदा करने से इनकार करने पर गुरु अर्जुनदेव को फाँसी दे दी थी।
- 1613-1614 ई. में शहजादा खुर्रम के नेतृत्व में किया गया मेवाड़ अभियान सफल रहा तथा मेवाड़ के राणा ने मुगलों से संधि कर ली थी।
- जहाँगीर के शासनकाल की सबसे बड़ी असफलता फारस द्वारा कंधार पर अधिकार कर लेना था।
- इसके शासनकाल में न्याय की जंजीर नाम से एक सोने की जंजीर आगरा दुर्ग के शाहबुर्ज तथा यमुना के तट पर एक पत्थर के खम्भे के बीच लगवाई थी।
- 1611 ई. में मिर्जा गयास बेग की पुत्री मेहरूनिसा के साथ जहाँगीर का विवाह हुआ था।
§ मेहरूनिसा के पति शेर अफगान की हत्या के बाद जहाँगीर ने उससे विवाह किया।
- सम्राट ने इसे ‘नूरमहल’ की उपाधि दी जिसे बाद में बदलकर नूरजहाँ कर दिया गया। 1613 ई. में बादशाह बेगम की उपाधि भी दी गई।
- नूरजहाँ के प्रभाव से उसके पिता मिर्जा गयास बेग को “एत्माद-उद-दौला” की उपाधि मिली।
- नूरजहाँ गुट में एत्माद-उद-दौला अस्मत बेगम (नूरजहाँ की माँ) आसफ खाँ तथा शहजादा खुर्रम शामिल था।
- जहाँगीर के शासनकाल में खुर्रम की अप्रत्याशित उन्नति तथा परवेज का पतन हुआ।
- 1623 ई. में खुर्रम ने जहाँगीर के कंधार जीतने के आदेश को मानने से इंकार कर दिया था।
- 1626 ई. में महावत खाँ ने विद्रोह कर दिया।
- शाहजहाँ के शासनकाल में पहला विद्रोह 1628 ई. बुन्देला नायक जुआर सिंह था।
- 1617 ई. में दक्कन अभियान की सफलता के बाद खुश होकर जहाँगीर ने खुर्रम को शाहजहाँ की उपाधि प्रदान की।
- जहाँगीर का मकबरा रावी नदी के किनारे शाहदरा (लाहौर) में है।
- जहाँगीर के शासनकाल में विलियम हॉकिन्स, विलियम फिंच, सर टॉमस रो, एडवर्ड टैरी आदि यूरोपीय यात्री आए थे।
- नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम को इत्र के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है।
शाहजहाँ (1628-1658 ई.) :
- 1627 में जहाँगीर की मृत्यु के समय शाहजहाँ दक्कन में था।
- धरमत (उज्जैन) के मैदान में 25 अप्रैल, 1658 को मुराद और औरंगजेब की संयुक्त सेना का मुकाबला दारा शिकोह की सेना, (जिसका नेतृत्व जसवंत सिंह तथा कासिम खाँ कर रहे थे) के मध्य हुआ। युद्ध का परिणाम औरंगजेब के पक्ष में रहा।
- उत्तराधिकार का एक अन्य युद्ध सामूगढ़ के मैदान में 29 मई, 1658 को हुआ, जिसमें दारा एक बार पुनः पराजित हुआ।
- औरंगजेब ने शाहजहाँ को 1658 ई. में आगरा के किले में कैद किया।
- शाहजहाँ के शासनकाल में यूरोपीय यात्री फ्रांसीस बर्नियर ने भारत की यात्रा की थी।
- शाहजहाँ के सिंहासन 'तख्ते ताऊस'में विश्व का सर्वाधिक महंगा हीरा कोहिनूर लगा था।
- दारा ने सफीनत औलिया, सकीनत औलिया, मजम-उल-बहरीन आदि पुस्तकें लिखीं थी।
- दारा ने अथर्ववेद एवं उपनिषदों का फारसी में अनुवाद करवाया था।
औरंगजेब (1658-1707 ई.) :
- औरंगजेब का राज्याभिषेक 1658 ई. तथा 1659 ई. में दो बार हुआ था।
- आगरा पर अधिकार के पश्चात् 1658 ई. में उसने ‘आलमगीर’ की उपाधि धारण की थी।
- इसने सिक्कों पर कलमा अभिलिखित कराने की प्रथा समाप्त कर दी तथा पारसी नववर्ष नौरोज (नवरोज) का आयोजन भी बंद करवा दिया था।
- 1668 ई. में हिन्दू त्योहारों के मनाने पर रोक लगा दी।
- 1679 ई. में हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया था।
- 1669-70 ई. में गोकुल के नेतृत्व में मथुरा क्षेत्र में जाट किसानों, 1672 ई. में पंजाब के सतनामी किसानों तथा बुंदेलखंड में चम्पतराय और छत्रसाल बुंदेला के नेतृत्व में विद्रोह हुआ।
- औरंगजेब ने मारवाड़ के राजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र अजीतसिंह की वैद्यता को अस्वीकार कर दिया।
- दुर्गादास के नेतृत्व में मारवाड़ ने औरंगजेब के खिलाफ संघर्ष किया।
- 1686 ई. में बीजापुर को मुगल साम्राज्य में शामिल किया गया। तत्कालीन शासक सिकन्दर आदिलशाह था।
- 1687 ई. में गोलकुंडा का पतन हुआ, यहाँ का शासक अबुल हसन कुतुबशाह था।
- मदना तथा अकन्ना नामक ब्राह्मणों के हाथों में गोलकुंडा के शासन की बागडोर थी।
- 1686 ई. में जाटों ने पुनः राजाराम तथा उसके भतीजे चूड़ामन के नेतृत्व में विद्रोह किया। इन्होंने 1688 ई. में सिकन्दरा स्थित अकबर की कब्र की लूटपाट की।
- 1675 ई. में औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर को प्राणदंड दे दिया।
- तेगबहादुर ‘बाकसाद-ए-बाबा’ के नाम से भी जाने जाते थे।
- राठौड़ दुर्गादास तथा मराठा शासक शम्भाजी ने शाहजादा अकबर को शरण दी थी। अंततः शहजादा अकबर फारस चला गया।
- औरंगजेब 'जिन्दापीर' के नाम से भी जाना जाता था।
- इसने सती प्रथा को प्रतिबंधित किया तथा मनूची के अनुसार इसने वेश्याओं को शादी कर घर बसाने का आदेश दिया।
- 1669 ई. में बनारस स्थित विश्वनाथ मंदिर तथा मथुरा का केशवराय मंदिर तुड़वा दिया था।
- औरंगजेब का मकबरा दौलताबाद में स्थित है।
मुगल प्रशासन
- मुगलकालीन प्रशासन मुख्यत: अरबी, फारसी व भारतीय प्रशासन का मिला-जुला रूप था।
- मुगलकालीन राजस्व सिद्धान्त शरीयत पर आधारित था।
- आइने-अकबरी (अबुल फजल) के अनुसार बादशाह वही बनता है जो ईश्वर का प्रतिनिधित्व तथा पृथ्वी पर ईश्वर का दूत होता है।
- जिसमें एक साथ हजारों व्यक्तियों के गुण समाहित हो। इस सिद्धान्त को दैविय सिद्धान्त कहा जाता है।
- मुगल प्रशासन में बादशाह को सहायता देने हेतु एक मंत्रि परिषद् होती थी, जिसे विजारत कहा जाता था।
- मुगल प्रशासन ‘केन्द्रिकृत’ निरंकुश प्रशासन था, जो खलीफा की सत्ता में विश्वास नहीं करता था।
- बाबर ने 1507 ई. में मिर्जा की उपाधि का त्याग कर बादशाह (पादशाह) की उपाधि धारण की यह उपाधि धारण करने वाला यह प्रथम शासक था।
- मुगल काल से पूर्व दिल्ली सल्तनत काल के दौरान शासक सुल्तान की उपाधि धारण करते तथा वे खलीफा के अधीन रहकर शासन संचालित करते थे तथा खलीफा से जो आदेश प्राप्त करते थे जिसे “सनद” कहा जाता था।
- 1579 ई. में अकबर ने मजहर की घोषणा की। इस मजहर का अर्थ था अगर किसी धार्मिक विषय पर कोई वाद-विवाद की स्थिति प्रकट होती है तो इसमें बादशाह अकबर का फैसला सर्वोपरि होगा और यह फैसल सबको स्वीकार करना पड़ेगा।
मुगल कालीन केन्द्रीय प्रशासन
- मुगल सम्राट साम्राज्य का प्रमुख होने के साथ ही सर्वोच्च सेनापति, सर्वोच्च न्यायधीश व इस्लाम का रक्षक और जनता का आध्यात्मिक नेता होता था।
- शासन में अपनी सहायता के लिए बादशाह विभिन्न मंत्रियों की नियुक्ति करता था तथा प्रत्येक मंत्री का अपना पृथक् कार्यालय होता था।
- मुगल कालीन केन्द्रीय प्रशासन में सर्वोच्च इकाई केन्द्र था। जिसका प्रमुख बादशाह व मंत्रि परिषद् होती थी।
- केन्द्र को सूबा में विभाजित किया जाता था जिसका सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी “सूबेदार” होता था।
- सूबा को सरकार (जिला) में विभाजित किया जाता था जिसका सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी “फौजदार” होता था।
- सरकार को परगना (तहसीलों) में विभाजित किया जाता था जिसका सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी “शिकदार” होता था।
- परगनों को गाँव (मौजा) में विभाजित किया जाता था जिसका प्रमुख मुकदम या चौधरी होता था।
प्रान्तीय (सूबा) शासन व्यवस्था :-
- बाबर और हुमायूँ के शासन की प्रान्तीय व्यवस्था विकसित नहीं हो पाई थी।
- मुगल कालीन प्रान्तीय प्रशासन के विकास का श्रेय अकबर को जाता है जिन्होंने 1580 ई. में मुगल साम्राज्य को सूबो में विभाजित किया तथा सूबो के प्रमुख अधिकारी सूबेदार व सूबाई दिवान होते थे।
- सूबेदार :- यह प्रान्त का सार्वोच्च अधिकारी था इसे प्रान्त के सम्पूर्ण सैनिक व असैनिक अधिकार प्राप्त थे। इसे सूबेदार, नाजिम या सिपहसालार के नाम से जाना जाता था।
- सूबाई दिवान :- ये प्रान्त में राजस्व विभाग का संचालक होता था इसका प्रमुख कार्य आय-व्यय का लेखा-जोखा रखना तथा राजस्व संबंधी मुकदमों का निर्णय करना होता था।
- सरकार (जिला) :- मुगल प्रशासन में सूबो (प्रान्त) को जिला या सरकार में बांटा गया था जिसके प्रमुख अधिकारी फौजदार (कानून व्यवस्था) व अमलगुजार (राजस्व व्यवस्था) होते थे।
- परगना :- सरकार से नीचे की इकाई परगना थी। सरकार (जिला) कई परगनों में विभाजित था इसके प्रमुख अधिकारी शिकदार (कानून व्यवस्था) व आमिल (राजस्व व्यवस्था) होते थे।
- गाँव (मौजा) :- प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रशासन मुकदम (कानून) व पटवारी (राजस्व) के नियन्त्रण में था।
- वजीर (वकील या प्रधानमंत्री) :- यह बादशाह के बाद सबसे शक्तिशाली पद था जिसे सैनिक व असैनिक दोनों अधिकार प्राप्त थे। अकबर के काल में वजीर को वकील कहा जाने जगा। इसे “वकील-ए-मुतलक” कहा जाता था। बाबर व हुमायूँ के काल में वजीर का पद सबसे महत्वपूर्ण था।
- बाबर के वजीर का नाम निजामुद्दीन खलीफा।
- हुमायूँ के वजीर का नाम अमीरउवैस व हिन्दुबेग।
- अकबर के वजीर का नाम बैराम खाँ व माहम अनगा।
नोट : -
- माहम-अनगा मुगल काल में वकील, वजीर व प्रधानमंत्री बनने वाली प्रथम व अंतिम महिला थी।
- बैराम खाँ की मृत्यु के बाद अकबर ने वकील की शक्तियों को कम करने हेतु अपने शासन काल के 8वें वर्ष में दिवान का पद सृजित किया जिसे “दिवान-ए-वजारत-ए-कुल” कहा जाता था। इसे राजस्व व वित्त मामलों का सर्वोच्च अधिकारी बना दिया था तथा मुजफ्फर खाँन को प्रथम दिवान नियुक्त किया था।
- अकबर ने वकील के एकाधिकार को समाप्त करने हेतु उसके समस्त अधिकारों को निम्न चार लोगों में विभाजित किया :-
1. दीवान – वित्त मामले
2. मीर बख्शी – सैनिक मामले
3. मीर-ए-सांमा – घरेलू मामले
4. सद्र-उस-सुदुर – धार्मिक मामले
- दीवान-ए-कुल :- अकबर ने वकील (प्रधानमंत्री) की शक्तियों को कम करने हेतु 1565 ई. में इस पद का सृजन किया तथा इसके निम्न कार्य थे जैसे :-
- राजस्व व वित्त मामलों का प्रमुख होता था।
- राजस्व नीति का निर्माण करना।
- सूबई दिवान की नियुक्ति बादशाह द्वारा दीवान-ए-कुल की सलाह से की जाती थी।
- दीवान-ए-खालसा :- इस प्रमुख कार्य खालसा भूमि (सरकारी भूमि) की देखरेख करना।
- दीवान-ए-जागीर :- इसका प्रमुख कार्य जागीर भूमि व इनाम भूमि की देखरेख करना।
- दीवान-ए-वाकियात :- इसका प्रमुख कार्य रोजाने की आमदनी व खर्चों का लेखा-जोखा रखना।
- मुस्तौफी :- इसका प्रमुख कार्य लेखा परीक्षक (ऑडीटर जनरल) करना।
- मुसरिफ-ए-खजाना :- यह मुख्यत: खजांची होता था।
- मीर बख्शी :- यह सैनिक विभाग का प्रमुख होता था। मीर बख्शी सेनापति नहीं होता था क्योंकि सर्वोच्च सेनापति बादशाह स्वयं होता था।
- मीर बख्शी के निम्न कार्य थे :-
- सैनिकों की नियुक्ति
- सैनिकों का हुलिया रखना
- सैनिकों को रसद व हथियार आपूर्ति करना
- युद्ध काल के दौरान सैनिकों को वेतन बांटने का कार्य।
- सेना को वेतन मीर बख्शी द्वारा “सरखत” नामक पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद ही मिलता था।
- शाही महल व यात्राओं के दौरान बादशाह की सुरक्षा का कार्य भी देखा जाता था।
- मीर-ए-सामा:
- इस पद का सृजन अकबर द्वारा किया गया, औरंगजेब के काल में इसे “खाने समा” कहा जाने लगा।
- अकबर के काल में मीर-ए-समा दीवान के अधीन कार्य करता था, परन्तु जहाँगीर ने इसे स्वतंत्र मंत्री का दर्जा दे दिया।
- यह घरेलू मामलों का प्रधान होता था, बादशाह तथा महल की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता था।
- राज्य के कारखानों का निरीक्षण, दीवान-ए-बयूयात व मुशर्रिफ पर नियंत्रण रखने का कार्य भी करता था।
- शाही दावतों का आयोजन करवाना भी इसका प्रमुख कार्य था।
- सद्र-उस-सुदुर :
- धार्मिक मामलों का प्रमुख होता था, जो बादशाह को सलाह भी देता था।
- प्रमुख कार्य :
1. दान-पुण्य की व्यवस्था करना,
2. विद्वानों को कर मुक्त भूमि प्रदान करना, वजीफा देना
3. धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था करना व इस्लामी कानूनों का पालन करवाना।
4. दान में दी गई भूमि (मदद-ए-माश) का निरीक्षण करना।
- Note : प्रारंभिक समय में सद्र-उस-सुदूर ही काजी के रूप में कार्य करता था, परन्तु अकबर ने इन दोनों पदों को अलग कर “काजी-उल-कुजात” नामक पद का सृजन किया।
- अकबर के समय ही “अब्दुल नबी” नामक सद्र को भ्रष्टाचार के कारण पद से हटा दिया गया।
- मुगलकाल का प्रथम “सद्र-उस-सुदूर” शेख गदई था
- 1578 के बाद प्रांतों में भी सद्र की नियुक्ति की जाने लगी।
- काजी-उल-कुजात :
- मुख्य काजी (न्यायधीश), इसकी सहायता हेतु “मुफ्ती” नियुक्त होते थे।
- मुफ्ती की व्याख्या के आधार पर ही काजी अपने निर्णय देता था, वर्तमान वकील के समान।
- मुहतसिब :
- इनकी नियुक्ति औरंगजेब के द्वारा की गई जो मुस्लिम वर्ग के लोगों की नैतिक चरित्र की जाँच करना था,
- इस्लाम के अनुसार आचरण करवाना मुख्य कार्य :
- औरंगजेब ने बनारस फरमान के द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़ने का कार्य मुहतसिबों को दिया था।
- मुगलकालीन अन्य अधिकारी :
अधिकारी | विभाग/कार्य |
1 मीर-ए-आतिश (मीरआतिश) | शाही तोपखाने का प्रमुख |
2 मीर-ए-बर्र | वन विभाग का प्रमुख होता था |
3 मीर-ए-बहर | जल सेना का प्रमुख व शाही नौकाओं की देखरेख करने |
4 दरोगा-ए-डाकचौकी | डाकविभाग व गुप्तचर विभाग का प्रमुख |
5 मीर-ए-अर्ज | बादशाह के पास भेजे जाने वाले आवेदन पत्रों का प्रभारी |
6 मीर-ए-तोजक | धार्मिक उत्सवों का प्रबंध करने वाला अधिकारी |
7 वाकिया-नवीस | समाचार लेखक व गुप्तचर |
8 खुफिया नवीस | गुप्त सूचनाएँ केन्द्र (बादशाह) तक पहुँचाने का कार्य |
9 हरकारा | संदेश वाहक व गुप्तचर |
- बितक्ची :- प्रांतों में भूमि व लगान के कागज तैयार करने वाला
- मुशरिफ :- (लेखाधिकारी) – राज्य की आय – व्यय का लेखा-जोखा
- मुस्तौफी :- (लेखा परीक्षक) – मुशरिफ द्वारा तैयार रिकॉर्डस की जाँच
- मुसद्दी :- बंदरगाह का प्रशासक
प्रांतीय प्रशासन
- मनसबदारी प्रथा :- मनसबदारी प्रथा अकबर ने शुरू की थी।
- मनसब, दरअसल फारसी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब पद, ओहदा या दर्जा होता है।
- भारत में बिखरी राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर अकबर समझ गया था कि यहाँ शासन चलाने के लिए सैन्य प्रणाली पर आधारित एक शक्तिशाली प्रशासनिक व्यवस्था की जरूरत है, इसलिए उसने मनसबदारी व्यवस्था की शुरुआत की।
- इसके तहत उसने अधिकारियों की नियुक्तियाँ की और उनको सैनिक व असैनिक दोनों तरह के अधिकार सौंपे।
- मनसबदार दरबार में भी होते थे और दरबार के बाहर प्रांतों में भी।
- यह प्रथा दशमलव प्रणाली पर आधारित थी। इसकी सबसे छोटी इकाई 10 थी और सबसे बड़ी इकाई 10,000 थी।
- मनसबदारी प्रथा का आरम्भ अकबर ने 1975 ई. में किया।
- बाबर व हुमायु को प्रांतीय प्रशासन का गठन करने का समय नहीं मिला, अत: मुगलकाल में प्रांतीय प्रशासन का जनक “अकबर” को माना जाता है।
शासक | प्रांत (सुबों) की संख्या |
1. अकबर | 1580 ई. सूबों की संख्या- 1 |
- Note : अकबर के शासनकाल के अंतिम समय में दक्षिण अभियान बरार, खानदेश, अहमदनगर को जीतने के बाद - (15 सूबे) हो गये थे
- Note : आइने अकबरी (अकबरनामा का तीसरा अध्याय) में सूबों की संख्या 12 बताई गई है।
- 2 जहाँगीर : सूबों की संख्या 15
- Note : जहाँगीर ने कांगड़ा (हिमाचल) को जीतने के बाद उसे लाहौर सूबे में मिला दिया अत: सूबों की संख्या – 15
- 3 शाहजहाँ : 18 सूबे
शाहजहाँ ने | - | कश्मीर (लाहौर सूबे में शामिल) | को जीतकर इन तीन सूबों शामिल किया |
- | थट्टा (मुल्तान सूबे में शामिल) | ||
- | उड़ीसा (बंगाल सूबे में शामिल) |
- 4 औरगंजेब : 20/21
- मुगलकाल में सर्वाधिक सूबों की संख्या इसी के काल में थी
- औरंगजेब ने बीजापुर (1686) व गोलकुण्डा (1687) ई. में जीता इस प्रकार सूबों की संख्या – 20
- Note : प्रो. राय चौधरी व मजूमदार ने औरंगजेब के काल में सूबों की संख्या 21 बताई है।
- सूबे के मुख्य प्रशासक को – सूबेदार/सिपहसालार/ नाजिम कहा जाता था।
- सूबेदार :
- सूबे का सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी
- 1586 ई. में सूबेदार की शक्तियों को नियंत्रित करने हेतु अकबर प्रांतीय दीवान (सुबई) का पद सृजित।
- Note : सूबेदार को संधि करने व मनसब प्रदान करने का अधिकार नहीं था परन्तु गुजरात के सूबेदार राजा टोडरमल को अकबर ने राजपूतों से संधि करने व उन्हें मनसब प्रदान का अधिकार प्रदान किया था।
- प्रांतीय दीवान :
- पद का सृजन अकबर द्वारा किया गया।
- प्रांतों में वित्त व राजस्व का सर्वोच्च अधिकारी था।
- यह शाही दीवान के प्रति उत्तरदायी था।
- प्रांतों में दीवानी मामलों का निपटारा भी करता था।
- बख्शी : प्रांतों में सेना की देखभाल करना।
- वाकिया निगार के रूप में प्रांतों की सूचना केन्द्र में देने का कार्य।
- मीर-ए-अदल :
- इसकी नियुक्ती सर्वप्रथम अकबर द्वारा की गई थी।
- यह दान, (अनुदान) व उत्तराधिकार से संबंधित मामलों का निपटारा करता था।
- बड़े सूबों व उनकी राजधानियों में यह कार्य करने हेतु “कौतवाल” की नियुक्ती की जाती थी।
- सरकार (जिला) प्रशासन :
- फौजदार : सर्वोच्च प्रशासक था।
- अमलगुजार : राजस्व व वित्त से संबंधित कार्य करना।
- खालसा भूमि से भी राजस्व वसूलता था।
- बितक्ची : अमलगुजार के अधीन लिपिक, लगान व भूमि के कागज तैयार करवाना।
- खजानदार : मुख्य खजांची होता था।
- परगने का प्रशासन :
- 1 शिकदार : सर्वोच्च प्रशासक होता था।
- 2 आमिल : किसानों से राजस्व वसूल करने हेतु – अकबर ने 1574 ई. में 1 करोड़ दाम से अधिक राजस्व वाले परगनों में एक आमिल की नियुक्ती की जिसे “करौड़ी” कहा जाता था।
- अमीन : शाहजहाँ द्वारा नियुक्त – मालगुजारी का निर्धारण करने हेतु इसकी नियुक्ति की जाती थी।
- फौजदार : मुख्य खंजाची होता था।
- कारकून : परगने का लिपिक
- परगने का लेखा (रिकॉर्ड - फारसी) भाषा में रखा जाता था।
मुगलकालीन अर्थव्यवस्था
बाबर के सिक्के:-
- बाबर ने काबुल में शाहरुख नामक चाँदी का सिक्का चलाया व कांधार में बाबरी नामक चाँदी का सिक्का चलाया।
- मुगल शासकों ने सोने, चाँदी, व ताँबे के सिक्के चलाए थे।
शेरशाह सूरी:-
- शेरशाह सूरी ने 180 ग्रेन (14 ग्राम) का शुद्ध चाँदी का रुपया चलाया।
- शेरशाह सूरी ने ताँबे का सिक्का चलाया जिसे ‘पैसा’ कहा जाता था।
- शेरशाह सूरी द्वारा प्रचलित रुपया आधुनिक भारत की मुद्रा का आधार माना जाता है।
अकबर के सिक्के:-
- मुगलकालीन अर्थव्यवस्था को सुव्यवस्थित करने का श्रेय अकबर को जाता है।
- अकबर ने 1577 ई. में दिल्ली में एक टकसाल की स्थापना करवाई तथा इसका अध्यक्ष ‘ख्वाजा अब्बदुसम्मद’ को नियुक्त किया।
- अकबर ने ‘अब्बदुसम्म्द’ को ‘शीरी कलम’ की उपाधि प्रदान की।
- टकसाल के मुखिया को ‘दारोगा’ कहा जाता था।
- अबुल फजल के अनुसार 1577 ई. तक टकसालों की संख्या निम्न अनुसार थी-
- सोने की टकसाल – 4
- चाँदी की टकसाल – 14
- ताँबे की टकसाल – 42
मुहर:-
- मुगलकाल के समय अकबर के मुहर नामक सिक्का सबसे ज्यादा प्रचलित था। यह सोने का सिक्का था जिसका मूल्य 9 रुपये के बराबर था तथा इसका वजन 169 ग्रेन (लगभग 13.30 ग्राम) था।
इलाही:-
- यह सोने का गोल सिक्का था जिसका मूल्य 10 रुपये के बराबर था।
शंसब:-
- यह अकबर द्वारा प्रचलित किए गए सिक्कों में से सबसे बड़ा सिक्का था।
- इसका उपयोग बड़े लेन-देनों में किया जाता था।
- इस सिक्के का मूल्य 101 तौला के बराबर होता था।
चाँदी के सिक्के:-
जलाली:-
- यह चाँदी का चौकोर सिक्का था।
ताँबे के सिक्के:-
दाम:-
- यह सिक्का रुपये के 40 वें भाग के बराबर होता था।
अन्य सिक्के:-
- दरब:- 50 पैसे का सिक्का
- चर्न:- 25 पैसे का सिक्का
- पनडाऊ:- 20 पैसे का सिक्का
- अष्ठा:- 12.5 पैसे का सिक्का
- काला:- 6.25 पैसे का सिक्का
- सूकी:- 5 पैसे का सिक्का
नोट:- अकबर ने अपने शासन काल के 50वें वर्ष में 1605 ई. में चाँदी ‘राम-सिया’ प्रकार का सिक्का चलाया था। जिस पर भगवान श्री राम व माता सीता की मूर्ति का अंकन करवाया तथा इस पर देवनागरी लिपि में राम-सिया उत्कीर्ण करवाया।
- अकबर एकमात्र ऐसा शासक माना जाता है जिसने सूर्य व चन्द्रमा के श्लोक भी अपने सिक्कों पर उपलब्ध करवाया।
- अकबर ने 1601 ई. में असीरगढ़ विजय के बाद सोने का एक सिक्का चलाया जिस पर एक तरफ बाज का अंकन तथा दूसरी तरफ तटसाल व सिक्का ढालने की तिथि का अंकन मिलता है।
- अकबर के सिक्कों पर ‘अल्लाहो अकबर’ व ‘जिले-जलाल हूँ’ का अंकन मिलता है।
जहाँगीर के सिक्के:-
निसार:-
- ताँबे का सिक्का जो रुपये का चौथा भाग होता था।
खैर-ए-काबुल:-
- यह चाँदी का सिक्का होता था।
सोने के सिक्के:- नुरेअफ्शा, नूरशाही, नूर सल्तानी, नूर दौलत, नूर करम, नूर मिहिर।
नोट:- जहाँगीर के काल का सोने का सबसे बड़ा सिक्का नूरशाही था जिसका मूल्य 100 तोल के बराबर होता था।
- जहाँगीर मुगलकाल का प्रथम शासक जिसने अपने सिक्के पर स्वयं की तस्वीर अंकित करवाई थी।
- जहाँगीर ने अपने सिक्कों को सुन्दर लेखों से अलंकृत करवाया था।
- जहाँगीर को उसके कई सिक्कों में नूर के साथ दिखाया गया है साथ ही हाथ में शराब का प्याला भी उत्कीर्ण किया गया है।
- जहाँगीर अपने सिक्कों पर स्वयं के साथ नूर का भी नाम अंकित करवाता था।
- जहाँगीर प्रथम ऐसा शासक था जिसने अपने चाँदी के सिक्कों पर 12 राशि चक्रों का अंकन करवाया।
- जहाँगीर ने अपने राज्याभिषेक के समय एक सोने की मोहर चलाई जिस पर अकबर का चित्रण करवाया।
- जहाँगीर के काल में तटीय क्षेत्रों में मुद्रा के रूप में कौड़ियों का प्रयोग किया जाता था।
- 2500 कौड़ियों का मूल्य 1 रुपये के बराबर होता था।
शाहजहाँ:-
- शाहजहाँ ने रुपया व दाम के मध्य ‘आना’ नामक एक नवीन सिक्का चलाया।
औरंगजेब:-
- औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद कर दिया तथा मुगल काल में सर्वाधिक सिक्के औरंगजेब के काल में ढाले गए।
- जीतल का प्रयोग केवल हिसाब-किताब रखने में ही किया जाता था। इसे फलूस या पैसा भी कहा जाता था।
- सिक्कों का मूल्य ह्रास भी लगाया जाता था जैसे-
- यदि कोई सिक्का एक वर्ष से अधिक पुराना हो गया हो तो उस पर 3 प्रतिशत कटौती की जाती थी।
- यदि कोई सिक्का 2 वर्ष से अधिक पुराना हो गया हो तो उस पर 5 प्रतिशत कटौती की जाती थी।
माप-तौल इकाई:-
- अकबर ने पहले से प्रचलित ‘सिकन्दरी गज’ के स्थान पर इलाही गज प्रचलित करवाया था।
इलाही गज:-
- यह 41 अंगुल या 33.5 इंच का होता था।
- दक्षिण भारत में ‘कोवाड़’ नामक इकाई का प्रयोग किया गया।
- गोवा में ‘कैडी’ नामक इकाई का प्रयोग किया गया।
नोट:- अरब व्यापारियों द्वारा समुद्री तटों पर ‘बहार’ नामक इकाई का प्रयोग किया जाता था।
राजस्व व्यवस्था:-
- अकबर ने शेरशाह सूरी द्वारा प्रचलित ‘जाब्ती’ प्रणाली को बंद कर 1569 ई. में शिहाबुद्दीन अहमद की सिफारिश पर ‘कनकूत व मुक्ताई’ प्रणाली प्रारंभ की।
- अकबर ने राजा टोडरमल को गुजरात का दीवान नियुक्त किया।
- टोडरमल ने सम्पूर्ण गुजरात की कृषि योग्य भूमि का माप करवाया था तथा टोडरमल के सुझाव से ही प्रसन्न होकर 1570-71 ई. में सम्पूर्ण साम्राज्य की भूमि का माप करवाने का आदेश, कानूनगों को दिया गया।
- अकबर ने भूमि माप हेतु संघ की रस्सी के स्थान पर पहली बार ‘बाँस’ की जरीब का प्रयोग किया गया।
आइने दरसाला:-
- 1580 ई. में इसे लागू किया गया।
- इसका उपनाम जाब्ती, बंदोबस्त अर्जी, टोडरमल व्यवस्था के नाम से जाना जाता था।
- इस व्यवस्था में पिछले 10 वर्षों की उपज तथा उन 10 वर्षों के दौरान उपज के प्रचलित मूल्य का औसत निकाल कर उस पर 1/3 भाग राजस्व लिया जाता था।
- राजस्व नकद के रूप में लिया जाता था।
नोट:- आइने दरसाला एक प्रकार से ‘रैय्यतवाड़ी’ व्यवस्था थी जिसे किसान सीधे-सीधे सरकार को अपना राजस्व जमा करवाते थे।
- इसमें किसानों को सुविधा भी दी जाती थी जैसे-
- किसानों को अग्रिम ऋण दिया जाता था।
- फसल खराब हो जाने पर वसूली में छूट दी जाती थी।
- प्रारंभ में इस व्यवस्था को 8 प्रान्तों- इलाहाबाद, आगरा, अवध, अजमेर, मालवा, दिल्ली, लाहौर, मुल्तान में लागू किया गया।
- टोडरमल व्यवस्था में 5 चरण होते थे-
1. भूमि माप
2. भूमि का वर्गीकरण
3. भू राजस्व का निर्धारण
4. भू राजस्व का अनाज से नकद में रूपांतरण
5. भू राजस्व एकत्र करने की विधि।
भू राजस्व वसूलने की अन्य विधि:-
1. गल्ला बख्शी (भाओली):-
- इसके तहत सरकार व किसान के मध्य फसल का निश्चित अनुपात में बंटवारा किया जाता था।
- इसे तीन भागों में बाँटा गया था-
- मुगलकालीन भूमि को चार भागों में बाँटा गया था।
1. पोलज:- प्रतिवर्ष बोई जाने वाली भूमि को पोलज कहा जाता था।
2. परती:- 1 वर्ष छोड़कर बोई जाने वाली भूमि को परती कहा जाता था।
3. चच्चर:- 3 या 4 वर्ष छोड़कर बोई जाने वाली भूमि चच्चर कहलाती थी।
4. बंजर:- 5 वर्ष से अधिक समय से बोई नहीं गई भूमि, बंजर कहलाती थी।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-
- शाहजहाँ के काल में भू-राजस्व एकत्रित करने हेतु ठेकेदारी प्रथा प्रारंभ की गई जिसे ‘इजारा’ प्रणाली कहा जाता था।
- शाहजहाँ के काल में ही राज्य की 70 प्रतिशत भूमि जागीर के रूप में जागीरदारों को दे दी गई।
- शाहजहाँ के शासनकाल में ‘मुर्शिदकुली खाँ’ ने, दक्षिण में टोडरमल की भाँति राजस्व व्यवस्था लागू की, अत: इसे दक्कन का टोडरमल कहा जाता है।
आय के अन्य स्रोत:-
1. जजिया:- गैर मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर।
2. जकात:- मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर (कुल आय का 2.5 प्रतिशत)
3. खुम्स:- युद्ध की लूट में अर्जित किया गया धन लूट के माल को 20% राजा को तथा 80 प्रतिशत भाग लूटने वाली सैनिक टुकड़ी रखती थी।
4. नजराना:- बादशाह को दी जाने वाली नकद भेंट इसे नजर भी कहा जाता था।
5. पेशकस:- अधीनस्थ राजाओं व मनसबदारों द्वारा बादशाह को दी जाने वाली नकद भेंट।
मुगलकालीन गाँव व भूमि के अन्य प्रकार:-
गैर अमली क्षेत्र:-
- ऐेसे क्षेत्र जो मुगल राजस्व व्यवस्था के अंतर्गत नहीं आते थे, परन्तु वहाँ के राजा राजस्व एकत्रित कर बादशाह को नजराना प्रस्तुत करते थे।
नानकर व बंध:-
- कर मुक्त भूमि, जो जमींदारों का प्रदान की जाती थी।
- इस पर किसी भी प्रकार का राजस्व नहीं लिया जाता था।
मालिकान:-
- जब राज्य जमीनदार की सहायता के बिना सीधे राजस्व वसूल लेते थे तथा कुल उपज का 10वाँ भाग जमीनदार को देते थे उस भूमि को मालिकान कहा जाता था।
गाँवों के प्रकार:-
1. असली ग्राम:- सबसे प्राचीन व पूर्ण रूप से बसा हुआ गाँव।
2. दाखिली ग्राम:- नव निर्मित ग्राम।
3. एम्मा ग्राम:- ऐसे गाँव जिन्हें राज्य की तरफ से मुफ्त अनुदान दिए जाते थे।
4. रैती ग्राम:- ऐसे गाँव जो जमींदारों के क्षेत्र से बाहर थे।
जमींदारी ग्राम:-
- जमींदार द्वारा नियंत्रित ग्राम को जमींदारी ग्राम कहते थे।
- जमींदारों को देशमुख, पाटिल व नायक कहा जाता था।
- जमींदारी वंशानुगत होती थी।
जागीरदारी ग्राम:-
- मनसबदारों को नकद वेतन के बदले दी जाने वाली भूमि को जागीरदारी ग्राम कहते थे।
- यह वंशानुगत नहीं होते थे।
- एक जागीरदार के पास यह जागीर के रूप में 4 वर्ष तक अधीन रहता था।
नोट:- जमींदार वस्तुत: अधिनस्थ हुआ करते थे उन्हें उनके ही क्षेत्र का कुछ भाग जमींदारी के रूप में दिया जाता था जहाँ वह राजस्व वसूलते थे इसे वतन जागीर कहा जाता था। इस पर जमींदारों का वंशानुगत अधिकार होता था तथा इन्हें स्थानांतरण नहीं किया जा सकता था।
- जमींदार को भू-राजस्व वसूलने पर उसे उस राजस्व का 10-25 प्रतिशत तक कमीशन दिया जाता था।
मदद-ए-मास:-
- सदर-उस-सुदूर द्वारा धार्मिक अनुदान हेतु दी गई भूमि जो कि विद्वानों, धार्मिक गुरुओं, अनाथ, अपाहिज, गरीब, विधवा इत्यादि लोगों को दी जाती थी इसे मिल्क व सयूरगल भूमि भी कहा जाता था।
- अकबर ने सिख गुरु रामदास को 500 बीघा भूमि दान में दी थी तथा तीसरे सिख गुरु अमरदास की पुत्री को भी कई गाँवों की जागीर प्रदान की थी।
- वल्लाभचार्य के पुत्र विट्ठल नाथ को जैतपुरा व गोकुला की जागीर प्रदान की गई थी।
वक्फ भूमि:-
- धार्मिक संस्थान हेतु अनुदानित भूमि को वक्फ भूमि कहा जाता था।
अलतमगा भूमि:-
- यह जहाँगीर द्वारा प्रारम्भ की गई थी।
- यह भूमि विशेष कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्तियों को प्रदान की जाती थी।
खालसा भूमि:-
- सरकारी भूमि जिसका राजस्व सीधे शाही खजाने में जमा होता था।
- राजस्व की कुल भूमि का 20 प्रतिशत भाग खालसा भूमि होना अनिवार्य था।
- अकबर के काल में खालसा भूमि सर्वाधिक थी।
- जहाँगीर के काल में सबसे कम थी।
मुगल कालीन कृषि:-
- मुगलकालीन कृषि का उल्लेख अबुल फजल ने आईने-अकबरी में किया है।
- मुख्य फसलें गेहूँ, बाजरा, चावल, दाल, तिलहन
- नील की खेती, कपास, गन्ना, अफीम यह नगदी फसलें थी।
- नील की खेती बयाना (भरतपुर) व गुजरात के सरखेज नामक स्थान पर होती थी।
मुगल कालीन किसान:-
- मुगल कालीन किसान 3 प्रकार के होते थे-
1. खुदकाश्त:-
- ऐसे किसान जिनकी स्वयं की भूमि होती थी तथा स्वयं के गाँव में रहकर कृषि करते थे।
2. पाहीकाश्त:-
- स्वयं की भूमि नहीं होती थी, दूसरे गाँव में जाकर अस्थायी बटाईदार के रूप में कृषि करते थे।
3. मुजारीयन:-
- खुदकाश्त से जमीन किराये पर लेकर खेती करते थे।
मुगलकालीन उद्योग:-
- सूती वस्त्र उद्योग मुगलकाल का सबसे प्रमुख उद्योग था।
- सर्वाधिक निर्यात सूती वस्त्र का किया जाता था।
- सूती वस्त्र को कैलिको कहा जाता था।
- रेशमी वस्त्र को पटौला कहा जाता था।
- रेशमी वस्त्र के मुख्य केन्द्र- ढाका, आगरा, कश्मीर, लाहौर, दिल्ली थे।
- ढाका की मलमल विश्व प्रसिद्ध थी।
- जहाँगीर ने अमृतसर में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना की।
- जहाँगीर के काल में 1605 ई. में पुर्तगाली लोग तम्बाकू को भारत लेकर आए तथा तम्बाकू खेती प्रारंभ की गई।
मुगलकालीन बंदरगाह:-
1. सिंध – लाहरी
2. गुजरात – सूरत, भड़ौच व खम्भात
3. महाराष्ट्र – बसाई, चौल, काभौई
4. कर्नाटक – भट्टकल
5. आंध्रप्रदेश – मसूलीपट्टनम
6. केरल – कालीकट
7. बंगाल – सतगाँव, चटगाँव, श्रीपुर, हुगली, सोनार गाँव