इतिहास का परिचय

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इतिहास- 3 शब्दों के मेल से बना है।
इति        +           ह        +            आस्
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इस प्रकार        वास्तव में       किसी घटना का घटित होना
1. प्रागैतिहासिक काल ( Prehistoric times )
- प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में बांटा गया है-
पुरापाषाण काल, मध्य पाषाण काल व नव पाषाण काल
पुरा पाषाण काल- विश्व के सर्वप्रथम आदिमानव की उत्पति के साक्ष्य अफ्रीका महाद्वीप में मिलते है, यह आस्ट्रेलोपिथिकस मानव था। भारत में आदिमानव (रामापिथिकस) के साक्ष्य शिवालिक क्षेत्र से मिले है।
सर्वप्रथम 1863 ई. में रॉबर्ट ब्रुस फूट ने पल्लावरम (मद्रास) से पाषाण निर्मित साक्ष्य प्राप्त किया। वर्ष 1935 में डी टेरा तथा पीटरसन ने शिवालिक पहाड़ियों से महत्वपूर्ण पाषाण उपकरण खोजे।
पुरा पाषाण के तीन भाग-
(i) निम्न पुरा पाषाण काल:-
- इस काल को सोन संस्कृति, चापर – चोपिंग, पेबुल संस्कृति तथा हैंड-एक्स संस्कृति कहा जाता है।
- भारतीय उपमहाद्वीप के सभी भागों से पुरापाषाण-कालीन औज़ार प्राप्त होते हैं किंतु गंगा और सिन्धु के मैदानी क्षेत्र से इनकी प्राप्ति प्राय: नगण्य कहीं जा सकती है (उत्तर प्रदेश के कालपी को अपवाद कहा जा सकता है) सिन्ध के रोहड़ी पठार अथवा विन्ध्य पर्वत श्रृंखला के उत्तरी हिस्सों जैसे पठारी क्षेत्र में इनकी प्राप्ति हुई है।
- प्राग् ऐतिहासिक मनुष्य के जीवन को समझने में, उनके द्वारा उपयोग में लाए गए पत्थर के औज़ार की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
• यदि एक पत्थर के टुकड़े को तोड़ा जाए तब उससे प्राप्त सबसे बड़ा टुकड़ा 'कोर' कहलाता है तथा प्राप्त किये अन्य टुकड़े 'फ्लेक' कहलाते हैं। सबसे बड़े टुकड़े से बने औज़ार कोर कहे जाते है तथा छोटे टुकड़े से बने औज़ार फ्लेक-औज़ार कहे जाते हैं। किसी चट्टान से टुकड़ों को हटाना फ्लेकिंग या फलकीकरण कहा जा सकता है। इस प्रक्रिया में चट्‌टान पर बने चिह्न फ्लेक- चिह्न कहे जाते है। 
- नर्मदा घाटी में हथनोर नामक ग्राम से मिली एक मानव खोपड़ी भारत में अब तक प्राप्त मनुष्य का सबसे पुराना अवशेष है।
(ii)    मध्य पुरा पाषाण काल –
- सिन्धु और झेलम नदियों के बीच पोटवार पठार (पाकिस्तान) से तथा पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत के संघाओं गुफाओं से मध्यपुरापाषाण सभ्यता चिह्नित की गई है।
- थार क्षेत्र में मध्य पुरा पाषाण कालीन औज़ार मिले है। अब विलुप्त प्राय: हो चुकी लूनी नदी की घाटियों में भी मध्य पाषाण युगीन प्रमाण अरावली के पूर्व और पश्चिम में अलग-अलग विशेषताओं को प्रदर्शित करते है।
- प्रायद्वीपीय भारत के मध्यपाषाण कालीन स्थलों में नेवासा नामक स्थान प्रमुख है यहाँ से अगेट, जैस्पर व चैलसडनी जैसे उत्कृष्ठ पत्थरों के बने खुरचनी पाए गए है। साथ ही गंगा नदी के मैदान में मानव सभ्यता के सर्वाधिक पुरातन अवशेष कालपी (जालौन जिला U.P.) में यमुना के दक्षिणी किनारे पर पाए गये है।
- दक्षिण भारत में मध्यपुरापाषाण संस्कृति फ्लेक औज़ारों से चिह्नित की जाती है। विशाखापत्तनम के तटीय क्षेत्र में पत्थर के औज़ार के लिए क्वार्टजाइट चर्ट तथा क्वार्टज का प्रयोग किया गया है।
- भीमबेटका – यहाँ से 200 से अधिक चट्टानी गुफाओं से इस काल के लोगों के रहने के साक्ष्य मिले है।
- यह निथंडरथाल मानवों का युग था।
• लेवल्वा तकनीक -
- लेवल्वा तकनीक शल्कित फ्लेक औज़ार बनाने की विकसित तकनीक है। यह पेरिस के नजदीक स्थित लेवल्वा पेरे (Levallois Perret) नामक स्थल के नाम से जानी जाती है। इस तकनीक के अंतर्गत क्रोड से शल्क (फ्लेक) को पृथक कर के वांछित आकार देने के स्थान पर क्रोड (कोर) को ही सावधानीपूर्वक तैयार किया जाता था। इसके किनारों को काँट-छाँट कर, सतह से शल्कों को विधिपूर्वक अलग कर लिया जाता था।
 
(iii) उच्च पुरा पाषाण काल –
- उच्च पुरापाषाण युगीन औजा़रों की तकनीकी उत्कृष्टता समांतर फ्लेकों वाले ब्लेडों के आधार पर रेखांकित की जाती है।
- औज़ार निर्माण की सामान्य दिशा अपेक्षाकृत छोटे आकार के औजा़रों के उत्पादन की ओर थी, जो दरअसल पर्यावरण में आ रहे बदलावों के प्रति मानवीय अनुकूलन की प्रवृत्ति को दर्शाती है। उदाहरणस्वरूप, अध्ययनों के आधार पर अब स्पष्ट हो चुका है कि उच्च पुरापाषाण कहे जाने वाले काल में उत्तरी तथा पश्चिमी भारत के पर्यावरण में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। भारी कार्यों के लिए पहले से चले आ रहे औज़ारों का भी उपयोग किया जाता रहा। 
- भीमबेटका से गुफाओं में चित्रकारी में हरे तथा गहरे लाल रंग का उपयोग हुआ है।
2. मध्य पाषाण काल (Middle Stone Age)
- मध्य पाषाण काल में भी मानव का मुख्य पेशा शिकार करना था। खेती और घरों का निर्माण अभी आरम्भ नहीं हुआ था, परन्तु इस काल के मानव ने अपने मृतकों को भूमि में गाड़ना आरम्भ कर दिया था और कुत्ता उसका पालतू पशु बन गया था।
- इस काल के दौरान आदिमानव ने समुह में रहना प्रारम्भ किया।
- औजार - उत्खनन के माध्यम से अनेक स्थानों से इस काल के ब्लेड, प्वाइंट स्क्रेपर, इनग्रेवर, ट्रायंगल एवं क्रेसेण्ट नामक पत्थर के उपकरण प्राप्त हुए हैं। इस काल के मानव ने आधे से पोने इंच तक के छोटे औजार भी निर्मित किए जिनमें लकड़ी के हैंडिल भी मिलते हैं। इन छोटे औजारों को लघु अश्म (macro liths) कहा जाता है।
3. नव पाषाण काल (New Stone Age) –
- मानव ने आग का आविष्कार किया (आग का प्रयोग अपने सामान्य जीवन में जैसे - भोजन पकाने, जंगल साफ करने इत्यादि में)।
- स्थाई बसावट के साक्ष्य - मेहरानगढ़ (पाक) से मिलते है। यही से खेती बाड़ी या कृषि के साक्ष्य प्राप्त मिले है।
- पहिये का आविष्कार - इस काल का सबसे क्रांतिकारी आविष्कार माना जाता है।
- आदिमानव ने सर्वप्रथम धातु के रूप में ताँबे का अविष्कार किया।
- अनाज के भण्डारण हेतु उसने मृदभाण्ड बनाए।
- 3नव पाषाण काल में मानव ने तीव्रता से प्रगति की । यद्यपि इस काल में मानव के हथियार पत्थर के ही थे, परन्तु उन्हें नुकीला और पॉलिश करके चमकीला बना दिया गया था इस काल में मानव ने अन्य कालों की अपेक्षा अधिक उन्नति कर ली थी।
- इस काल में मानव खेती करके अन्न उपजाने लगा, अत: अब उसे उदरपूर्ति के लिए सभी का उपयोग भोजन के लिए करने लगा। अग्नि की सहायता से वह अपना भोजन पकाने लगा। खुदाई में भोजन पकाने के अनेक बर्तन मिले हैं।
- नवपाषाणिक संस्कृति अपनी पूर्वगामी संस्कृतियों की अपेक्षा अधिक विकसित थी। इस काल का मानव न केवल खाद्य पदार्थों का उपभोक्ता था, वरन् उत्पादक भी था। वह कृषि कर्म और पशुपालन से पूर्णत: परिचित हो चुका था। 
आद्य इतिहास
पाषाण युग की समाप्ति के बाद धातुओं के युग का प्रारम्भ हुआ। इसी युग को आद्य ऐतिहासिक काल या धातु काल कहा जाता है।
हड़प्पा संस्कृति तथा वैदिक संस्कृति की गणना इस काल से की जाती है।
अब तक विश्व की 4 सभ्यताएँ प्रकाश में आई है जो क्रमश:
सभ्यता नाम नदी
1. मेसोपोटामिया    दजला व फराज
2. मिस्त्र               नील
3. भारत               सिन्धु
4. चीन                ह्वांग-हो (पीली नदी)


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