मौर्य काल (323 ई. पू. – 185 ई. पू.)
मौर्यों की उत्पत्ति :
- मगध के विकास के साथ मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से नंदवंश के अंतिम शासक घनानंद को पराजित कर मौर्य वंश की नींव रखी।
- चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक विस्तृत था।
- ब्राह्मण परम्परा के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की माता शूद्र जाति की मुरा नामक स्त्री थी। बौद्ध परम्परा के अनुसार मौर्य 'क्षत्रिय कुल' से संबंधित थे। महापरिनिब्बानसुत्त के अनुसार मौर्य पिपलीवन का शासक तथा क्षत्रिय वंश से संबंधित थे।
मौर्यवंश की जानकारी के स्रोत:
1. साहित्यिक स्रौत:
- मौर्य इतिहास का उल्लेख करने वाले अन्य साहित्यिक स्रोत में चाणक्य का अर्थशास्त्र, क्षेमेन्द्र की 'वृहत्कथा मंजरी', कल्हण की राजतरंगिणी, विशाखदत्त का 'मुद्राराक्षस' तथा सोमदेव का 'कथासरितसागर' आता है।
- धार्मिक साहित्यिक स्रोत में पुराणों से मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी मिलती है।
- बौद्ध ग्रंथों में जातक, दिघनिकाय, दीपवंश, महावंश, वंशथपकासिनी तथा दिव्यावदान से मौर्यकाल के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। जैन ग्रंथों में भद्रबाहु के कल्पसूत्र एवं हेमचन्द्र के परिशिष्टपर्वन से मौर्यकालीन जानकारी प्राप्त होती है।
- अशोक के वृहत् शिलालेख, लघु शिलालेख, स्तंभ लेख, गुहा लेख आदि।
- रुद्रदामन का गिरनार अभिलेख भी मौर्यकाल के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
अर्थशास्त्र :-
- लेखक- कौटिल्य/चाणक्य/अजय/विष्णुगुप्त
- अर्थशास्त्र, कौटिल्य या चाणक्य (चौथी शताब्दी ईसा पूर्व) द्वारा रचित संस्कृत का एक ग्रन्थ है।
- अर्थशास्त्र की शैली गद्य+पद्य (चम्पू) है।
- अर्थशास्त्र मौर्यकालीन राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक विषयों की सम्पूर्ण जानकारी देता है।
- इसकी शैली उपदेशात्मक और सलाहात्मक (instructional) है।
- अर्थशास्त्र की तुलना मैक्यावली के ‘द प्रिंस’ से की जाती है।
- ‘द प्रिंस’ विश्व राजनीति पर लिखा गया प्रथम ग्रंथ माना जाता है।
Note:-
चाणक्य को भारत का ‘मैक्यावली’ भी कहा जाता है।
- यह प्राचीन भारतीय राजनीति का प्रसिद्ध ग्रंथ है।
- चाणक्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य (321-298 ई.पू.) के महामंत्री थे।
- चाणक्य ने चंद्रगुप्त के प्रशासकीय उपयोग के लिए इस ग्रंथ की रचना की थी। यह मुख्यत: सूत्र शैली में लिखा हुआ है और संस्कृत के सूत्रसाहित्य के काल और परंपरा में रखा जा सकता है। यह शास्त्र अनावश्यक विस्तार से रहित, समझने और ग्रहण करने में सरल एवं कौटिल्य द्वारा उन शब्दों में रचा गया है, जिनका अर्थ सुनिश्चित हो चुका है।
- इसकी खोज 1905 तंजौर के एक ब्राह्मण ”भट्ट स्वामी” ने हस्तलिखित पांडुलिपि के रूप में की थी, इन्होंने 1906-1909 के दौरान इसका संस्कृत भाषा में प्रकाशन करवाया तथा मद्रास के पुस्तकालय अध्यक्ष प्रो.श्याम शास्त्री को यह पांडुलिपि भेंट की।
- अर्थशास्त्र के छठे अध्याय में सप्तांक सिद्धांत का विवेचन मिलता है।
- सप्तांग सिद्धांत:- राज्य को सुव्यवस्थित रूप से संचालित करने हेतु राज्य के सात अंग बताए गए हैं।
- अर्थशास्त्र में चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम का उल्लेख नहीं मिलता है।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में शत्रु के शत्रु को मित्र बताया गया है।
- अर्थशास्त्र में सम्राट शब्द का प्रयोग किया गया है।
इंडिका:-
- लेखक - मेगस्थनीज
- मेगस्थनीज सेल्युकस निकेटर द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की राज्य सभा में भेजा गया था।
- मेगस्थनीज की नियुक्ति भारत में प्रथम विदेशी राजदूत के रूप में हुई।
- यह यूनानी राजदूत था।
- मेगस्थनीज 305 ई. पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया।
- मेगस्थनीज की इंडिका की मूल प्रति उपलब्ध नहीं है।
- इंडिका का संकलन 1848 ई. में डॉ. श्वान बैक द्वारा किया गया है।
- इंडिका का अंग्रेजी में अनुवाद 1891 ई. में म्रैकिंडल महोदय ने किया।
- इंडिका में मौर्यकालीन प्रशासन, अर्थव्यवस्था, समाज इत्यादि के बारे में जानकारी मिलती है।
- इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य का उल्लेख मिलता है।
- मेगस्थनीज के अनुसार सबसे बड़ा नगर पाटलिपुत्र था जिसे उसने 'पोलीब्रोथा' कहा है।
- मेगस्थनीज की इंडिका में “उत्तरापथ” का वर्णन है।
- उसके अनुसार मौर्यकाल की सबसे लम्बी सड़क का निर्माण चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा करवाया गया था।
- मेगस्थनीज के अनुसार भारतीय लोग हेराक्लीन (कृष्ण) व डायनोसियस(शिव) की पूजा करते थें।
मेगस्थनीज की भ्रामक बातें:-
- भारत में अकाल नहीं पड़ते हैं। (महास्थान व सहोगरा से प्राप्त ताम्रपत्राभिलेख से अकाल की जानकारी मिलती है।)
- भारतीय लोगों को लिखने का ज्ञान नहीं।
- भारत में दास प्रथा नहीं है। (भारत में यूनान के समान दास प्रथा नहीं थी)
- बौद्ध धर्म का उल्लेख नहीं मिलता है।
- मेगस्थनीज के अनुसार भारतीय समाज 7 जातियों में विभाजित था।
I. दार्शनिक
II. कृषक
III. शिकारी/पशुपालक
IV. व्यापारी/शिल्पी
V. योद्धा
VI. निरीक्षक (इंस्पेक्टर)
VII. मंत्री
मुद्राराक्षस:-
- टीकाकार - ढूढ़ीराज
- इसकी रचना चौथी शताब्दी में हुई थी।
- मुद्रा राक्षस से मौर्यवंश, गुप्तकाल व नंदवंश की जानकारी मिलती है।
- इसमें चन्द्रगुप्त को वृषल (निम्न कुल में उत्पन्न) कहा गया है।
- यह भारत का प्रथम जासूसी ग्रंथ माना जाता है।
नोट - इस महत्वपूर्ण नाटक को हिंदी में सर्वप्रथम अनूदित करने का श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद्र को है।
राजतरंगिणी:-
- 'राजतरंगिणी' का शाब्दिक अर्थ है - राजाओं की नदी, जिसका भावार्थ है - 'राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह'। यह कविता के रूप में है।
- भारत का प्रथम ऐतिहासिक ग्रंथ माना जाता है।
- इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होता है। इसका रचना काल 1147 ई. से 1149 ई. तक बताया जाता है । इस पुस्तक के अनुसार कश्मीर का नाम "कश्यपमेरु" था जो ब्रह्मा के पुत्र ऋषि मरीचि के पुत्र थे।
- राजतरंगिणी में अशोक द्वारा झेलम नदी के किनारे “श्रीनगर” नामक नवीन नगर बसाने का उल्लेख मिलता है।
- इसमें कश्मीर का प्रथम मौर्य शासक 'जालौक' को बताया गया है।
अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ :-
- बौद्ध ग्रंथ - (i) दीपवंश
(ii) महावंश
(iii) महाबोधी वंश
(iv) दिव्यावदान
- जैन ग्रंथ - (i) कल्पसूत्र (लेखक - भद्रबाहु)
(ii) परिशिष्टपर्व (लेखक - हेमचन्द्र)
- ब्राह्मण ग्रंथ- (i) वृहत् कथामंजरी - क्षेमेन्द्र
(ii) कथा सरितसागर - सोमदेव
(iii) महाभाष्य - पतंजली
(iv) विष्णु पुराण
- इनसे मौर्यकाल के बारे में जानकारी मिलती है।
2. पुरातात्विक स्त्रोत:-
(i) अभिलेख -
- किसी भी कठोर सतह जैसे - पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन पर उत्कीर्ण लेख अभिलेख कहलाता है।
- अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियाँ, क्रियाकलाप या विचार लिखे जाते हैं, जो उन्हें बनवाते हैं।
- इनमें राजाओं के क्रियाकलाप तथा महिलाओं और पुरुषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का ब्यौरा होता है।
नोट: सम्पूर्ण मौर्य काल का सौहागोरा एकमात्र लेख है,जो ताम्र-पत्र पर अंकित है।
मौर्य साम्राज्य की स्थापना
चद्रगुप्त मौर्य : (322 ई.पू.-298 ई.पू.)
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने घनानंद को पराजित कर मगध पर मौर्य वंश की स्थापना की।
- चन्द्रगुप्त ने चाणक्य को अपना प्रधानमंत्री बनाया।
- चन्द्रगुप्त भारत का प्रथम ऐतिहासिक शासक माना जाता है।
- चन्द्रगुप्त भारत का प्रथम शासक जिसने भारत को विदेशी दासता से मुक्त कराया।
- इसने यूनानी क्षत्रपों को पराजित कर भारत से निकाल दिया।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रारम्भिक जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी का अभाव है।
- अनुश्रुतियाँ - (i) 'चन्द्रगुप्त' घनानंद के दरबार में मूर्रा नामक दासी से उत्पन्न माना जाता है।
- (ii) मौरेय जनपद का होने के कारण मौर्य कहलाते हैं।
- चन्द्रगुप्त मौर्य को यूनानी इतिहासकारों ने निम्न नाम दिए -
(i) सैड्रोकोटे्स नाम स्ट्रेबों, जस्टिन व एरियन ने दिया।
(ii) ऐड्रोकोट्स नाम ऐपियानसख् प्लूटार्क ने दिया।
नोट- 1793 ई. में विलियम जोन्स ने इन नामों की पहचान चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए की।
- बौद्ध ग्रंथ महावंश के अनुसार कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सकल जम्बुद्वीप (भारत) का स्वामी बना दिया।
- विंसेट स्मिथ ने कहा कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना साम्राज्य भारत के वैज्ञानिक सीमा हिन्दुकुश पर्वत तक विस्तार कर लिया।
- चन्द्रगुप्त की इस सीमा को 16 वीं शताब्दी तक मुगल व 18वीं- 19वीं सदी तक अंग्रेज भी प्राप्त नहीं कर सके।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने 305 ई. पू. में यूनानी शासक सेल्यूकस 'निकेटर' को पराजित किया।
- संधिस्वरूप सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से किया और चार प्रान्त दहेज में दिए-
(i) काबुल (पेरोपनिसडाई)
(ii) कंधार (अराकोसिया)
(iii) हेरात (एरिया)
(iv) बलूचिस्तान/मकरानतट (जेड्रोसिया)
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए।
- सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने सौराष्ट्र के गवर्नर पुष्यगुप्त वैश्य को आदेश देकर सुदर्शन झील का निर्माण करवाया।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के दौरान 300 ई. पू. में पाटलिपुत्र में प्रथम जैन संगीति का आयोजन किया गया।
- 298 ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन मुनि भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (मैसूर) चले गए वहाँ एक पहाड़ी पर सल्लेखण (उपवास) पद्धति के माध्यम से अपनी देह का त्याग किया।
- चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद बिन्दुसार (दुर्धरा का पुत्र) शासक बना।
- चन्द्रगुप्त व हेलेना का पुत्र 'जस्टिन' था।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन के अंतिम समय में मगध में 12 वर्षों तक भीषण अकाल पड़ा।
बिन्दुसार :(298 ई.पू.-273 ई.पू.)
- चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार उसका उत्तराधिकारी हुआ।
- भारत का प्रथम सिजेरियन शासक माना जाता है।
- यूनानी इतिहासकारों ने बिन्दुसार को - अमित्रोकेडस, अमित्रघात, अमित्रखाद (शत्रुओं को खा जाने वाला कहा है।)
- बिन्दुसार को वायु पुराण में मद्रसार तथा जैन ग्रंथों में सिंहसेन कहा गया है।
- बिन्दुसार की पत्नियाँ -
(i) सुभद्रांगी
(ii) चारूमित्रा
(iii) नूर
नोट- बौद्ध ग्रंथ महाबग्गा के अनुसार बिन्दुसार के कुल 101 पुत्र थे।
- बिन्दुसार ने सीरिया के शासक एंटीयोकस प्रथम को पत्र लिखकर निम्न तीन चीजें मांगी -
(i) विदेशी मीठी शराब
(ii) सूखी अंजीर
(iii) दार्शनिक
- एंटीयोकस ने दार्शनिक भेजने से इन्कार कर दिया।
- एंटीयोकस ने अपना एक राजदूत 'डायमेकस' बिन्दुसार के दरबार में भेजा।
- मिश्र के शासक टॉलमी द्वितीय 'फिलाडेल्फस' ने बिन्दुसार के दरबार में डायनोसिस (डायोननिसिस) नामक राजदूत भेजा।
- प्रारम्भिक समय में चाणक्य बिन्दुसार के प्रधानमंत्री थे परन्तु उनकी मृत्यु के बाद राधागुप्त नए प्रधानमंत्री बने।
- बिन्दुसार के दरबार में 500 सदस्यों की एक मंत्री परिषद् हुआ करती थी। जिसका प्रधान - खल्लाटक था।
- बिन्दुसार के शासनकाल के अन्तिम समय में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए, जिसे दबाने हेतु सर्वप्रथम अशोक को भेजा, बाद में अपने बड़े पुत्र सुसीम को भेजा।
- बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था।
नोट- आजीवक धर्म के संस्थापक 'मौगलिपुत गौशाल' थे।
अशोक (273 ई.पू.-232 ई.पू.):]
- पिता :- बिन्दुसार
- माता :- धम्मा/सुभद्रांगी/जनपदकल्याणी/वनदेवी
- सुभद्रांगी चम्पा के ब्राह्मण की पुत्री थी।
- अशोक राजा बनने से पूर्व उज्जैन का प्रांतपाल था।
- अशोक शासक बनने से पूर्व खस (नेपाल की तराई क्षेत्र में स्थित) व नेपाल की विजय कर चुका था।
- आजीवक मुनि "पिंगलवत्स जीव" ने अशोक के शासक बनने की भविष्यवाणी की।
- अशोक के सम्पूर्ण शासनकाल को तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं-
(i) राज्याभिषेक से लेकर 12 वर्ष तक -
- अशोक ने अपना प्रथम राज्याभिषेक 273 ई.पू. में करवाया।
- सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार अशोक ने 4 वर्ष तक चले उत्तराधिकार संघर्ष में अपने 99 भाईयों की हत्या कर 269 ई.पू. में विधिवत रूप से राज्याभिषेक करवाया।
- अशोक ने केवल अपने सगे भाई तिष्य/तिस्स को ही जीवित छोड़ा।
- प्रारंभिक समय में अशोक कुरूप था और कुरूपता का मजाक उड़ाए जाने के कारण उसने अपने रनिवास की 500 रानियों को मौत के घाट उतार दिया।
- चीनी यात्री फाह्यान व ह्वेनसांग के अनुसार अशोक ने पाटलिपुत्र में एक नरक की स्थापना की, जहाँ पर लोगों को अलग-अलग प्रकार से यातनाएँ दी जाती थी।
- अपने विधिवत राज्याभिषेक के 8 वें वर्ष - 261ई. पू. में कलिंग युद्ध लड़ा, जिसमें लाखों लोग मारे गए व इतने ही बेघर हो गए।
- इन समस्त कारणों से अशोक को प्रारंभ समय में 'चण्डाशोक' कहा गया।
- कलिंग युद्ध का उल्लेख अशोक ने स्वयं अपने -13 वें शिलालेख में किया।
- कलिंग का युद्ध अशोक के जीवन का अंतिम युद्ध था, इस युद्ध के बाद उसने 'रणघोष' के स्थान पर 'धम्मघोष' का अनुसरण किया।
कलिंग युद्ध के कारण:
(i) कलिंग की स्वतंत्रता
(ii) आर्थिक कारण :- कलिंग हाथी दाँत व्यापार व कपड़ा व्यापार में आत्मनिर्भर था, यह व्यापारिक दृष्टिकोण से विकसित अवस्था में था।
(iii) कलिंग पर अधिकार कर लेने से अशोक को दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सीधे व्यापार मार्ग पर अधिकार मिल रहा था।
(iv) खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख के अनुसार कलिंग के शासक 'नंदराज' ने अशोक के पिता 'बिन्दुसार' का अपमान किया था, अत: वह अपने पिता के अपमान का बदला लेना चाहता था।
- कलिंग के युद्ध के बाद अशोक ने दो प्रशासनिक केन्द्र स्थापित किए -
(i) उत्तरी केन्द्र (धौली) - तोसाली
(ii) दक्षिणी केन्द्र (जौगढ़) -समपा
- कलिंग की राजधानी 'तोसाली' को बनाया गया तथा प्रशासन वहाँ के राजकुमार को सौंप दिया गया।
(ii) 13 वें वर्ष से लेकर 27 वें वर्ष तक।
(iii) 28 वें वर्ष से लेकर 41 वें वर्ष तक ।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-
- कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार अशोक ने 'झेलम' नदी के किनारे श्रीनगर की स्थापना की।
- कल्हण के अनुसार 'अशोक शैव अनुयायी' था।
- सारनाथ लेख के अनुसार अशोक ने नेपाल में ललितपाटन (देवपाटन) नामक नगर की स्थापना की।
- अशोक के साम्राज्य में केवल असम (कामरूप) ही शामिल नहीं था।
अशोक के बौद्ध धर्म (धम्माशोक)
- महावंश व दीपवंश के अनुसार 'अशोक को उसके राज्याभिषेक के चौथे वर्ष में "निग्रोध" नामक बालक ने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
- निग्रोध को सुसीम का पुत्र माना जाता है।
- द्विव्यावदान के अनुसार "उपगुप्त" नामक बौद्ध भिक्षुक ने अशोक को बौद्ध धर्म से दीक्षित किया।
- मोग्गलीपुत तिस्स के प्रभाव में आकर वह पूर्णत: बौद्ध हो गया।
नोट- मोग्गलीपुत तिस्स की अध्यक्षता में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन पाटलिपुत्र में किया गया।
- अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 10वें वर्ष में बौद्ध गया की यात्रा की जबकि 20वें वर्ष में "लुम्बिनी ग्राम" की यात्रा की।
- लुम्बिनी ग्राम को धार्मिक कर से मुक्त घोषित किया।
- लुम्बिनी में भूमिकर को 1/4 से घटाकर 1/8 कर दिया।
- यह जानकारी "रुम्मिनदेई" अभिलेख में मिलती है।
- भाब्रू (बैराठ) लघु शिलालेख में अशोक बुद्ध, धम्म व संघ के प्रति आस्था व्यक्त करता है।
- यह अशोक के बौद्ध होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।
- भाब्रू लघु शिलालेख में अशोक ने बौद्ध ग्रंथों का अंकन करवाया।
- भाब्रू लघु शिलालेख की खोज 1840 ई. में केप्टन बर्ट के द्वारा की गई।
- वर्तमान में यह कलकत्ता संग्रहालय में रखा हुआ है।
- मास्की लघु शिलालेख में अशोक ने स्वयं को ‘बुद्ध शाक्य’ कहा है।
- अशोक ने पुत्र महेन्द्र व पुत्री संघमित्रा को बौद्धिवृक्ष की एक टहनी के साथ श्रीलंका के शासक ‘तिष्य’ के दरबार में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने हेतु भेजा।
नोट- अशोक इन दोनों को ताम्र लिप्ति बंदरगाह (पश्चिम बंगाल) तक छोड़ने गया।
- श्रीलंका के शासक ‘तिष्य’ ने अपने भतीजे ‘अरिट्ठा’ को अशोक के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा।
अशोक का धम्म:-
- अशोक ने अपनी जनता के नैतिक उत्थान हेतु जो संहिता (नियम) प्रस्तुत की, उसे अभिलेखों में धम्म कहा गया।
- अशोक ने अपने धम्म की परिभाषा ‘राहुलोवादसुत’ से ली है, जिसका उल्लेख वह अपने ‘दूसरे’ व ‘सातवें’ स्तंभ लेख में करता है।
- राहुलोवादसुत बौद्ध ग्रंथ दीर्घ निकाय का भाग है।
- अशोक का उपासक धर्म बौद्ध धर्म था।
- अशोक के धर्म का मूल – लोक कल्याण था।
- भारत का प्रथम ऐसा शासक जिसने लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना कर सम्पूर्ण भारत को राजनैतिक एकता के सूत्र में बाँध दिया।
- अशोक ने अपने शासन के 13वें वर्ष धम्म महामात्र की नियुक्ति की।
- अशोक ने युक्तों, राजुक व प्रादेशिक को आदेश दिया की प्रति 5वें वर्ष धम्म यात्रा की जाए, वहीं तक्षशिला व उज्जैन में प्रति तीसरे वर्ष धम्म यात्रा की बात कही।
अशोक का परिवार:-
- अशोक की रानियाँ-
1. असन्धिमित्रा- प्रथम पटरानी
2. तिक्ष्यरक्षिता- कुनाल को अंधा करवा दिया।
3. पद्मावती- पुत्र कुनाल था।
4. देवी- पुत्र महेन्द्र व पुत्री संघमित्रा
5. कारूवकी/चारूवाकी- पुत्र तीवर
नोट- अभिलेखों में एकमात्र पत्नी ‘कारूवकी’ का उल्लेख मिलता है।
- अन्य रानियों का उल्लेख बौद्ध ग्रंथ के महावंश व दिव्यावदान में मिलता है।
- वायुपुराण के अनुसार अशोक की मृत्यु के बाद कुनाल शासक बना।
- कल्हण की राजतरंगिणि के अनुसार ‘जालौक’ कश्मीर का शासक बना।
- डॉ. स्मिथ के अनुसार कुनाल की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
- पूर्वी भाग का शासक- दशरथ व पश्चिमी भाग का शासक सम्प्रति बना।
- मौर्यवंश का अंतिम शासक बृहद्रथ, जिसकी हत्या (185-184 ई. पू. में) पुष्यमित्र शुंग ने कर ‘मगध’ पर शुंग वंश की नींव डाली।
मौर्य प्रशासन
- मौर्य प्रशासन का उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है।
- प्रकृति- केन्द्रीय राजतंत्रात्मक शासक।
- अर्थशास्त्र में कहा गया है कि राजा समस्त शक्तियों को अपने हाथों में निहित रखे।
- प्राचीन भारत में सबसे विशाल नौकरशाही मौर्यकाल में थी।
- अर्थशास्त्र के अनुसार ‘राज्य एक पहिए पर नहीं चल सकता है’ मंत्री परिषद् को राज्य की वैधानिक आवश्यकता बताया गया है।
- अशोक के अभिलेखों में मंत्री परिषद् को ‘परीषा’ कहा गया है।
- मंत्री परिषद् के सदस्यों को वेतन- 12000 पण वार्षिक मिलते थे।
- राजा के 3 से 5 व प्रमुख विश्वास पात्र लोगों का समूह ‘मन्त्रिण’ कहलाता था। (इनका वेतन 48000 पण वार्षिक होता था।)
केन्द्रीय प्रशासन
- राजा को प्रशासन में सहायता देने हेतु 18 लोगों का एक समूह होता था, जिसे ‘तीर्थ’ कहा जाता था।
- इन्हें ‘महामात्य’ भी कहते थे।
- इनकी नियुक्ति से पूर्व इनके चरित्र को जाँचा -परखा जाता था जिसे ‘उपधा परीक्षण’ कहा जाता था।
- ‘तीर्थ’ प्रथम श्रेणी के अधिकारी होते थे।
- मंत्रिपरिषद् के नीचे द्वितीय श्रेणी के पदाधिकारी होते थे, जिन्हें अध्यक्ष कहा जाता था।
- अध्यक्ष को यूनानी श्रोतों में मजिस्ट्रेट कहा गया है।
- द्वितीय श्रेणी के अधिकारी राजा सहित 27 होते थे।
- अर्थशास्त्र में 26 अध्यक्ष का उल्लेख मिलता है।
अर्थशास्त्र में वर्णित प्रमुख अध्यक्ष
अध्यक्ष | कार्य |
लक्षणाध्यक्ष (कोषाध्यक्ष)- मुद्रा या टकसाल अधिकारी | सिक्के जारी करने का कार्य - सिक्के का निरीक्षण करने वाले अधिकारी को रूप दशक कहा जाता था। |
पण्याध्यक्ष | व्यापार/वाणिज्य का अध्यक्ष |
पौतवाध्यक्ष | माप एवं तौल का अध्यक्ष |
कुप्याध्यक्ष | जंगल की वस्तुओं का निरीक्षणकर्ता |
शुल्काध्यक्ष | चूंगी वसूलने वाला अधिकारी |
सूत्राध्यक्ष | वस्त्र उत्पादन अधिकारी |
आयुद्धागाराध्यक्ष | अस्त्र-शस्त्रों के रख-रखाव के लिए नियुक्त |
सीताध्यक्ष | राजकीय वन्यभूमि से प्राप्त आय-व्यय का लेखा जोखा रखने वाला अधिकारी |
सुराध्यक्ष | आबकारी विभाग का अध्यक्ष |
सुनाध्यक्ष | (i) बुचड़खाना अधिकारी (ii) अवध्य पशुओं की देखभाल करने वाला अधिकारी |
आकराध्यक्ष | खानों का अधिकारी |
विविधताध्यक्ष | चारागाहों का अध्यक्ष |
गणिकाध्यक्ष | वेश्याओं का निरीक्षक |
नवाध्यक्ष | नौ सेना का अध्यक्ष |
लवणाध्यक्ष | नमक अधिकारी |
संस्थाध्यक्ष | व्यापारिक मार्गों का अध्यक्ष |
कोष्ठागाराध्यक्ष | भण्डार-गृहों का अधिकारी |
मुद्राध्यक्ष | पास-पोर्ट अधिकारी |
स्वर्णाध्यक्ष | स्वर्ण उत्पादन एवं शुद्धता का अधिकारी |
बन्धनागाराध्यक्ष | कारागार/जेल का अध्यक्ष |
हस्तिध्यक्ष | हाथियों की देखभाल का अधिकारी |
देवताध्यक्ष | धार्मिक संस्थाओं का अध्यक्ष |
लोहाध्यक्ष | धातु विभाग का अध्यक्ष |
द्यूताध्यक्ष | जुआ अधिकारी |
मानाध्यक्ष | दूरी एवं समय संकेत से सम्बन्धित है। |
पत्तनाध्यक्ष | बन्दरगाहों का अध्यक्ष |
- महामात्यापसर्प- यह गुप्तचर विभाग का प्रमुख अधिकारी।
अर्थशास्त्र में वर्णित 18 तीर्थ
तीर्थ | कार्य |
मंत्री/पुरोहित | राजा को परामर्श/सलाह देना |
समाहर्ता | राजस्व संग्रहकर्ता |
सन्निधाता | कोषाध्यक्ष |
सेनापति | सेना का अधिकारी |
युवराज | राजा का उत्तराधिकारी |
प्रदेष्टा | फौजदारी मामलों का मुख्य न्यायाधीश |
व्यावहारिक | दीवानों मामलों का मुख्य न्यायाधीश |
नायक | सेना का संचालक |
कर्मान्तिक | उद्योग का सर्वोच्च अधिकारी |
दण्डपाल | सेना की सामग्री जुटाने वाला अधिकारी |
प्राशास्ता | राजकीय कागजों को सुरक्षित रखने वाला, राजकीय सूचनाओं को लिपिबद्ध करने वाला अधिकारी |
नागरक | नगर का प्रमुख अधिकारी |
आटविक | वन विभाग का प्रमुख अधिकारी |
दौवारिक | राजप्रसाद का प्रमुख अधिकारी |
दुर्गपाल | दुर्गों का रक्षक |
अन्तपाल | सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक |
अन्तर्वशिक | राजा की अंगरक्षक सेना का प्रधान |
मंत्रिपरिषदाध्यक्ष | मंत्रिपरिषद् का अध्यक्ष |
प्रान्तीय प्रशासन
- प्रान्तीय प्रशासन का उल्लेख ‘अर्थशास्त्र’ में मिलता है।
- मौर्यकालीन साम्राज्य प्रांतों में विभाजित जिन्हें चक्र कहा जाता था।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के समय चार प्रांत थे।
- अशोक के समय कलिंग विजय के बाद पाँच प्रान्त हो गए, जो निम्नलिखित हैं-
क्र. | प्रान्त | राजधानी |
1. | उत्तरापथ | तक्षशिला |
2. | दक्षिणापंथ | सुवर्णगिरी |
3. | अवन्ति | उज्जैन |
4. | मध्यदेश | पाटलिपुत्र |
5. | कलिंग | तोसाली |
- प्रान्तों का प्रशासन राजवंश के राजकुमार या निकट संबंधी के द्वारा चलाया जाता था।
- प्रान्तों का विभाजन मण्डल में होता था।
- मण्डल का प्रमुख प्रादेशिक था।
मौर्य प्रशासन का विभाजन
1. साम्राज्य (देश) -
2. प्रान्त (चक्र)-
3. मण्डल-
4. आहार/विषय- जिला
5. स्थानीय- 800 गाँवों का समूह
6. द्रोणमुख- 400 गाँवों का समूह
7. खार्वटिक- 200 गाँवों का समूह
8. संग्रहण- 100 गाँवों का समूह
9. ग्राम- प्रशासन की सबसे छोटी
इकाई
- केन्द्र तथा स्थानीय शासक के बीच की संपर्क कड़ी के रूप में अशोक ने युक्त नामक अधिकारी की नियुक्ति की।
- अपराधों के नियंत्रण हेतु पुलिस होती थी, जिसे ‘रक्षिण’ कहा जाता था।
- नगर का जनगणना अधिकारी नागरिक कहलाता था।
- प्राचीन भारत में सर्वप्रथम जनगणना मौर्यकाल में की गई।
नोट- आधुनिक भारत में सर्वप्रथम जनगणना ‘लॉर्ड मैयो’ के काल में 1872 ई. में की गई।
नगर प्रशासन
- नगर प्रशासन का उल्लेख मेगस्थनीज ने ‘इंडिका’ में किया जबकि कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में नगर प्रशासन का उल्लेख नहीं किया।
- मेगस्थनीज ने मगध का सबसे बड़ा नगर ‘पाटलिपुत्र’ को कहा, जिसे उसने ‘पोलिबोथ्रा’ कहा।
- मेगस्थनीज के अनुसार ‘पाटलिपुत्र नगर’ का नगर प्रशासन 6 समितियों द्वारा संचालित होता था, प्रत्येक समिति में सदस्यों की संख्या पाँच होती थी।
6 समितियाँ
- उद्योग समिति
- विदेशी देख रेख समिति
- जनगणना समिति
- व्यापार और वाणिज्य समिति
- विक्रय समिति
- विक्रय कर समिति
मौर्यकालीन न्याय व्यवस्था
- मौर्यकालीन न्याय व्यवस्था का उल्लेख अर्थशास्त्र में मिलता है।
- इसके अनुसार सर्वोच्च या अन्तिम न्यायाधीश राजा (सम्राट) होता था।
- अर्थशास्त्र में दो प्रकार के न्यायालयों का उल्लेख मिलता है-
1. धर्मस्थीय- इसमें दीवानी मामलों की सुनवाई होती थी, इसका प्रमुख न्यायाधीश व्यावहारिक होता था।
2. कण्टक शोधन- इसमें फौजदारी मामलों की सुनवाई होती थी तथा इसमें राज्य व नागरिकों के मध्य होने वाले विवादों का निपटारा किया जाता था।
- चोरी व लूट के मामलों को ‘साहस’ कहा जाता था।
गुप्तचर व्यवस्था
- मौर्यकालीन गुप्तचर व्यवस्था का उल्लेख ‘अर्थशास्त्र’ में मिलता है।
- अर्थशास्त्र में गुप्तचर को ‘गूढ़’ पुरुष कहा गया है।
- महिला गुप्तचर को परिव्राजिका, भिक्षुणी, वृषली कहा गया है।
- अर्थशास्त्र के अनुसार गुप्तचर दो प्रकार के होते थे-
1. संस्था- एक ही स्थान पर रहकर गुप्तचरी करने वाले लोग।
2. संचारा- भ्रमण शील गुप्तचर।
- सन्ती, तिष्णा तथा सरद पुरुष गुप्तचरों को कहा जाता था।
- उभयवेतन- विदेशों में नियुक्त होने वाले गुप्तचरों को कहते थे।
सैन्य प्रशासन
- सैन्य प्रशासन का उल्लेख अर्थशास्त्र व इंडिका दोनों में मिलता है।
- मेगस्थनीज की इंडिका के अनुसार सैन्य प्रशासन छ: समितियों द्वारा देखा जाता था।
छ: समितियाँ
(i) पैदल सेना समिति
(ii) अश्व सेना समिति
(iii) रथ सेना समिति
(iv) गज सेना समिति
(v) नौ सेना समिति
(vi) यातायात व रसद (भोजन+हथियार) आपूर्ति समिति
- ग्रुनवेडेल के अनुसार मौर्यों का राज चिह्न मयूर (मोर) था।
नोट- जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना को चोरों (डाकूओं) का समूह कहा है।
मौर्यकालीन समाज
- मौर्यकालीन समाज का उल्लेख अर्थशास्त्र व इंडिका दोनों में मिलता है।
- अर्थशास्त्र में समाज को चार वर्णों में विभाजित बताया है, वर्ण व्यवस्था सामाजिक संरचना का प्रमुख आधार था।
- चार वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
- शूद्रों को अर्थशास्त्र में पहली बार आर्य कहा गया।
- मेगस्थनीज ने अपनी इंडिका में भ्रामक विवरण देते हुए सम्पूर्ण भारतीय समाज को 7 जातियों में विभाजित किया है-
1. दार्शनिक
2. कृषक
3. पशु पालन/शिकारी
4. व्यापारी/शिल्पी
5. सैनिक (यौद्धा)
6. निरीक्षक
7. मंत्री
- अर्थशास्त्र के अनुसार मौर्यकालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी, उन्हें विवाह विच्छेद करने का अधिकार था।
- विवाह विच्छेद को ‘मोक्ष’ कहा गया है, उन्हें नियोग एवं पुनर्विवाह की अनुमति थी।
- मौर्यकाल में वैश्याओं को ‘रूपाजीवा’ कहा गया है व उनके अध्यक्ष को ‘गणिकाध्यक्ष’ कहा गया है।
बन्धिकपोषक– यह वैश्याओं के संगठन का अध्यक्ष कहलाता था।
- कौटिल्य नौ प्रकार के दासों का उल्लेख करता है, जबकि मेगस्थनीज के अनुसार भारत में दास प्रथा नहीं थी।
- मेगस्थनीज के अनुसार भारतीय लोग डायोनिसियस (शिव) व हेराक्लीज (कृष्ण) की पूजा करते थे।
- मूर्ति बनाने वाले कलाकार को ‘कारु’ कहा गया है।
मौर्य कालीन अर्थव्यवस्था-
- मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था का उल्लेख अर्थशास्त्र, इंडिका व रुम्मिनदेई अभिलेख से मिलती है।
- मौयकालीन राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि, व्यवसाय व पशुपालन था, इन तीनों को सम्मिलित रूप में वार्ता कहा जाता था।
- वार्ता को चाणक्य ने सर्वप्रथम शूद्रवर्ण की सामान्य वृत्ति माना।
- सम्पूर्ण भूमि का स्वामी राजा होता था।
- खेती करने वाले काश्तकार को ‘उपवास’ कहा जाता था।
- मौर्यकाल में दो प्रकार की फसलों का उल्लेख मिलता है।
1. शरद-गेहूँ
2. ग्रीष्म- ज्वार, तिल
- अन्य फसलों में- जौ, चना, चावल, कपास, गन्ना, इत्यादि।
- कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में कुल 10 प्रकार की भूमि बताई है, जिनमें निम्न पाँच को मुख्य बताया है-
1. अदेवमातृक- बिना वर्षा के कृषि की जाने वाली भूमि (कृत्रिम साधनों द्वारा सिंचित भूमि)
2. देवमातृक- वर्षा आधारित भूमि
3. कृष्ट- जुती हुई भूमि
4. अकृष्ट- बिना जुती भूमि
5. स्थल- ऊँचाई पर स्थित भूमि
नोट- मौर्यकाल में सिंचाई का प्रमुख साधन सुदर्शन झील थी।
- सिंचाई हेतु घेरेदार कुएँ (मण्डलकूप/रिंग वैल) का प्रयोग किया जाता था।
मौर्यकालीन कर:- अर्थशास्त्र के कुल 21 प्रकार के करों का उल्लेख मिलता है।
प्रमुख कर-
1. भाग- उत्पादित अनाज पर लिया जाने वला कर
2. सीता- सरकारी भूमि व वन्यभूमि से प्राप्त
3. प्रणयकर- आपातकालीन कर
4. बलि- एक प्रकार का भू:राजस्व/धार्मिक कर
5. सेतुबंद- सिंचाई कर
6. हिरण्य- नगद कर
7. विष्टि- बेगारी कर
- रज्जुकर- एक प्रकार का भू-राजस्व/धार्मिक कर
- परिहारिका- कर मुक्त गाँवों को कहा जाता था।
- आयुधिका- जो गाँव सैनिक आपूर्ति करते थे उन्हें कहा जाता था।
- कुप्य- जो गाँव कच्चे माल की पूर्ति करते थे उन्हें कहा जाता था।
मौर्यकालीन सिक्के
- सोने का सिक्का- सुवर्ण, निष्क कहलाता था।
- चाँदी का सिक्का- कार्षापण, पण या धरण, रूप्यरूप कहलाता था।
- ताँबें का बड़ा सिक्का- माषक कहलाता था।
- ताँबें का छोआ सिक्का- काकणी कहलाता था।
मौर्यकालीन कला व संस्कृति
- मौर्यकाल में पहली बार पाषाण का प्रयोग किया गया, जिसने भारतीय इतिहास को चिरकालिक बनाने में योगदान दिया।
- इससे पूर्व काष्ट (लकड़ी), टेराकोटा इत्यादि का प्रयोग किया जिससे मौर्यकाल से पूर्व के साक्ष्य-जीर्ण-अवस्था में मिलते हैं।
मौर्यकालीन कला :-
1. राजकीय कला – राजकीय लोगों द्वारा विकसित
A. अभिलेख
B. राजप्रसाद
C. स्तूप/चैत्य
2. लोक कला:- जन सामान्य/स्थानीय नागरिकों द्वारा विकसित।
A. मूर्ति कला निर्माण
मूर्ति कला:-
- अशोक स्तम्भों में उत्कीर्ण पशुओं की आकृतियाँ मौर्यकाल में मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
- धौली उड़ीसा की हाथी की मूर्ति
- दिगंबर प्रतिमा – लोहानीपुर (पटना, बिहार)
- दीदारगंज (पटना) से प्राप्त यक्षिणी मूर्ति
- पारखम (उत्तर प्रदेश) से प्राप्त 7 फीट ऊँची यक्ष की मूर्ति
- सारनाथ के स्तम्भ पर पशुओं की आकृति आदि मौर्यकाल के मूर्ति कला का विशिष्ट उदाहरण है।
गुहालेख –
- भारत में गुफा निर्माण पहली बार मौर्यकाल में किया गया।
- गुहालेख केवल प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में हैं।
- कुल 7 गुफाएँ प्राप्त हुई उनमें 3 का निर्माण अशोक ने करवाया और 4 का निर्माण अशोक के पौत्र दशरथ ने करवाया।
- गुफाओं का निर्माण आजीवक धर्म के अनुयायियों के निवास हेतु किया जाता था।
अशोक के अभिलेख:-
- अशोक ने भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वप्रथम शिलालेख का प्रचलन किया था।
- शिलालेखों के माध्यम से राज्यादेशों तथा उपलब्धियों को संकलित किया गया था, जिनमें वह जनता को संबोधित करता है।
- सर्वप्रथम 1750 ई. में टीफेन्थैलर महोदय ने दिल्ली में अशोक स्तम्भ का पता लगाया था।
- सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप को 1837 ई. में अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सफलता प्राप्त हुई।
- अशोक के अभिलेख ब्राह्मी (बाएँ से दाएँ), खरोष्ठी (दाएँ से बाएँ), ग्रीक, आरमाइक लिपियों में पाए गए हैं।
- अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत (अर्द्धमागधी) थी।
- अशोक के अभिलेख को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- शिलालेख, स्तम्भलेख एवं गुहालेख।
अशोक के शिलालेखों के दो प्रकार हैं-
(i) वृहद् शिलालेख - वृहद् शिलालेखों की संख्या 14 है तथा यह 8 स्थान से मिले हैं-
अशोक के वृहद शिलालेख :-
1. शाहबाजगढ़ी → इस शिलालेख को 1836 ई. में जनरल कोर्ट ने खोजा। यह पाकिस्तान के पेशावर में स्थित है। इसकी लिपि खरोष्ठी है। शिलालेख में मनुष्य व पशुओं के लिए अस्पताल खोलने का वर्णन है।
2. मानसेहरा → पाकिस्तान के हजारा जिले में स्थित है। खरोष्ठी लिपि में लेख लिखे गए हैं; जो ईरानी अरामेइक से उत्पन्न हुई है।
3. कालसी → उत्तर प्रदेश के देहरादून जिले में स्थित है। 1860 ई. में फोरेस्ट ने इसे खोजा। यह यमुना व टोंस नदियों के संगम पर स्थित है।
4. गिरनार → यहीं से रुद्रदामन तथा समुद्रगुप्त के लेख भी मिले हैं। 1822 ई. में कर्नल टॉड ने इन लेखों का पता लगाया। गिरनार शिलालेख गुजरात के काठियावाड़ में जूनागढ़ के समीप गिरनार की पहाड़ी पर है। यह शिलालेख संभवत: सबसे सुरक्षित अवस्था में है।
5. धौली → यह उड़ीसा के पुरी जिले में स्थित है। धौली की तीन छोटी पहाड़ियों की एक श्रृंखला पर लेख खुदे हैं। इनकी खोज 1837 ई. में किटो ने की थी। धौली का मुख्य शिलालेख राजादेश उड़ीसा के भुवनेश्वर में स्थित है।
6. जौगढ़ → यह उड़ीसा के गंजाम जिले में स्थित है। यह तीन शिलाखण्डों पर उत्कीर्ण है। इसको वाल्टर इलियट ने 1850 ई. में खोजा था।
7. एर्रगुड़ी → आन्ध्रप्रदेश के कर्नूल जिले में स्थित है। इसकी खोज भू-वैज्ञानिक अनुघोष ने वर्ष 1929 में की थी। येर्रागुडि लेख में लिपि दाएँ से बाएँ मिलती है, जबकि अन्य सभी में यह बाएँ से दाएँ है।
8. सोपारा → महाराष्ट्र के थाना जिले में स्थित है। खण्डित शिला पर आठवें शिलालेख के कुछ भाग उत्कीर्ण है।
अशोक के लघु शिलालेख:-
1. ब्रह्मगिरि → यह कर्नाटक के चित्तलदुर्ग जिले में स्थित है।
2. भाब्रु (बैराठ) → यह राजस्थान के जयपुर जिले में है। इसकी खोज कैप्टन बर्ट के द्वारा 1840 ई. में की गई। यह शिलालेख अशोक के बौद्ध होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।
3. सहसराम → यह बिहार में है, इसे वेगलर ने खोजा है।
4. गुजर्रा → मध्य प्रदेश के दतिया जिले में है, वर्ष 1954 में बहादुर चन्द्र दावड़ा ने खोजा।
5. रूपनाथ → मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में है, 1872 ई. कर्नल एलिस के भारतीय सेवक ने इसकी खोज की।
6. मास्की → कर्नाटक के रायचूर जिले में हैं। वर्ष 1915 में बीडन ने खोजा।
7. एर्रगुड़ी → आन्ध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में स्थित है।
8. राजुल मंडगिरि → आन्ध्रप्रदेश के कर्नूल जिले में स्थित है।
9. अहरौरा → उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में है। वर्ष 1961 में प्रो. शर्मा ने खोजा।
10. गोविमठ → मैसूर के कोपबल नामक स्थान के समीप स्थित है, वर्ष 1931 में बी.एन.शास्त्री ने खोजा।
11. जटिंगरामेश्वर → कर्नाटक के ब्रह्मगिरी के तीन मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
12. सिद्धपुर → ब्रह्मगिरी के एक मील पश्चिम में स्थित है।
13. पालकिगुण्डु → गोविमठ से चार मील की दूरी पर स्थित है, वर्ष 1931 में बी.एन.शास्त्री ने खोजा।
14. सारोमारो → शहडोल, मध्य प्रदेश में हैं।
15. उदेगोलम् → बेलारी कर्नाटक में हैं।
अशोक के शिलालेखों में वर्णित विषय:-
शिलालेख विषय
1. पहला शिलालेख → पशुबलि व सामाजिक उत्सवों-समारोहों पर प्रतिबंध, सभी मानव मेरी संतान की तरह है।
2. दूसरा शिलालेख → पशु चिकित्सा, मानव चिकित्सा एवं लोक कल्याणकारी कार्य, चोल पांड्य, सत्तियपुत एवं केरलपुत (चेर) की चर्चा।
3. तीसरा शिलालेख → माता-पिता का सम्मान करना, राजकीय अधिकारियों (युक्त, रज्जुक व प्रादेशिक) को प्रत्येक पाँचवें वर्ष दौरा करने का आदेश।
4. चौथा शिलालेख → धम्म की नीति के द्वारा अनैतिकता तथा ब्राह्मणों एवं श्रवणों के प्रति निरादर की प्रवृति, हिंसा आदि को रोका जा सके। धर्माचरण के भेरीनाद द्वारा धम्म का उद्घोष।
5. पाँचवाँ शिलालेख → इसमें प्रथम बार अशोक के शासन के 10वें वर्ष में धम्म महामात्रों की नियुक्ति की चर्चा। मौर्यकालीन समाज व वर्णव्यवस्था की जानकारी।
6. छठा शिलालेख → धम्म महामत्रों के लिए आदेश लिखे हैं। अशोक ने इसमें कहा है कि राज्य कर्मचारी-अधिकारी उससे किसी भी समय राज्य के कार्य के संबंध में मिल सकते हैं। आत्मनियंत्रण की शिक्षा दी गई है, आम जनता किसी भी समय राजा से मिल सकते हैं।
7. सातवाँ शिलालेख → सभी संप्रदायों के लिए सहिष्णुता की बात।
8. आठवाँ शिलालेख → अशोक की धर्मयात्राओं की जानकारी, सार्वजनिक निर्माण कार्यों का वर्णन है। बोधगया के भ्रमण का उल्लेख।
9. नवाँ शिलालेख → धम्म समारोह की जानकारी, नैतिकता पर बल दिया गया है।
10. दसवाँ शिलालेख → धम्म नीति की श्रेष्ठता पर बल दिया गया है, राजा और उच्च अधिकारियों को आदेश है कि हर क्षण प्रजा के हित में सोचें।
11. ग्यारहवाँ शिलालेख → धम्म नीति की व्याख्या की गई है।
12. बारहवाँ शिलालेख → सम्प्रदायों के मध्य सहिष्णुता रखने का निर्देश है। सभी सम्प्रदायों को सम्मान देने की बात है। स्त्री महामात्र की चर्चा।
13. तेरहवाँ शिलालेख → इसमें युद्ध के स्थान पर धम्म विजय का आह्वान है, कलिंग युद्ध की जानकारी, अपराध करने वाली आटविक जातियों का उल्लेख तथा पड़ोसी राज्यों का वर्णन।
14. चौदहवाँ शिलालेख → अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है।
अशोक के स्तम्भ लेख:-
(i) वृहद् स्तम्भ लेख
- वृहद् स्तम्भ लेखों की संख्या 7 है तथा यह 6 स्थान से प्राप्त हुए हैं।
1. लौरिया नन्दनगढ़ → यह बिहार के चम्पारन जिले में स्थित है इस स्तंभ पर मोर का चित्र बना हुआ है।
2. लौरिया अरराज → यह बिहार के चम्पारन जिले में स्थित है।
3. दिल्ली-टोपरा → यह सर्वाधिक प्रसिद्ध स्तम्भ लेख है। यह उत्तर प्रदेश सहारनपुर के खिज्राबाद जिले में टोपरा नामक जगह पर दबा हुआ था। फिरोजशाह तुगलक ने टोपरा से यह अशोक स्तंभ दिल्ली मंगवाए थे। ये स्तम्भ फिरोजशाह की लाट, भीमसेन की लाट, दिल्ली शिवालिक लाट, सुनहरी लाट आदि नामों से भी जाने जाते हैं। इस पर अशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण हैं, जबकि शेष स्तंभों पर केवल 6 लेख ही उत्कीर्ण मिलते हैं। इस स्तंभ लिपि को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने पढ़कर अंग्रेजी में अनुवाद किया।
4. दिल्ली-मेरठ → यह पहले मेरठ में स्थित था, बाद में फिरोजशाह तुगलक ने इस स्तंभ को दिल्ली लाया।
5. रामपुरवा → यह बिहार के चम्पारन में स्थित है।
6. प्रयाग → यह पहले कौशाम्बी में था, बाद में अकबर ने इलाहाबाद के किले में रखवाया।
(ii) लघु स्तम्भ लेख - लघु स्तम्भ लेख 5 स्थान से मिले हैं-
1. सांची → रायसेन (मध्य प्रदेश) में हैं।
2. सारनाथ → वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में हैं।
3. कौशम्बी → इलाहाबाद/प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) में है।
4. रुम्मिनदेई → नेपाल की तराई में है। इसमें अशोक की धर्मयात्रा का वर्णन है।
5. निग्लिवा → नेपाल की तराई में है। इसमें कनकमुनि के स्तूप संवर्द्धन की चर्चा है।
सारनाथ स्तम्भ लेख :-
- आधुनिक भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न है। यह अशोक के एकाश्मक स्तंभ लेखों का सर्वश्रेष्ठ नमूना माना जाता है। इसमें फलक पर चार (4) सिंह आक्रमक मुद्रा में पीठ सठाए बैठे हैं तथा एक चक्र धारण किए हैं। यह चक्र बुद्ध के ‘धर्मचक्र परवर्तन’ का सूचक है। चक्र में 32 तीलियाँ है, जो भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न में 24 तीलियाँ ली गई है जो 24 घन्टे लगातार चलते रहने का संदेश देता है। फलक के निचले भाग पर चार पशु क्रमश: - हाथी, घोड़ा, बैल, सिंह का अंकन मिलता है, प्रत्येक के मध्य एक चक्र है।
अशोक स्तंभ - पशुमूर्ति
1. सारनाथ (UP) → 4 सिंह
2. सांची (UP) → 4 सिंह
3. लौरिया-नंदनगढ़ → सिंह व मोती चुगते हुए हंस।
4. संकिशा (UP) → हाथी
5. रामपुरवा (बिहार) → सिंह व बैल/वृषभ
6. लौरिया अरराज (बिहार) → यह खण्डित प्राप्त हुआ है परन्तु इतिहासकार R.P. चढ्ढडा के अनुसार इस पर गरुड़ का अंकन है।
7. वैशाली (बिहार) → 1 सिंह
- कौशाम्बी व प्रयाग के स्तम्भों में अशोक की रानी करुवाकी द्वारा दान दिए जाने का उल्लेख है, इसे रानी का अभिलेख भी कहा गया है।
- लघु स्तंभ में राजकीय घोषणाएँ उत्कीर्ण होती है व गुहा लेख में धार्मिक सहिष्णुता का उत्कीर्णन होता है।
- कौशाम्बी स्तंभ लेख को अकबर के शासन काल में जहाँगीर द्वारा इलाहाबाद के किले में रखा गया।
- अशोक का ‘शर-ए-कुना’ (कंधार) अभिलेख ग्रीक व अरमाइक लिपि में प्राप्त हुआ है।
- अशोक के लघु शिलालेख, स्तंभलेख (दीर्घ व लघु) एवं गुहा लेखों की लिपि ब्राह्मी है।
- केवल शाहबाजगढ़ी व मानसेहरा की लिपि खरोष्ठी है।
- अशोक का सर्वाधिक छोटा अभिलेख रुम्मिनदेई है, विषय आर्थिक है।
स्तूप:-
- महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनकी अस्थियों को आठ भागों में बाँटा गया व उन पर समाधियाँ बनाई गई, इन्हीं समाधियों को स्तूप कहा जाता है।
- ‘स्तूप’ संस्कृत के ‘स्तुप्’ धातु से निर्मित शब्द है। शाब्दिक अर्थ ढेर/थूहा है।
- ऋग्वेद में यज्ञ की अग्नि ज्वालाओं से निर्मित आकृति को स्तूप कहा गया है।
- बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध व अनुयायियों के समाधि स्थल को स्तूप कहा गया है।
- अशोक ने अपने शासन काल में 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया।
- सांची का स्तूप → सबसे विशाल व सर्वश्रेष्ठ स्तूप हैं, इसको महास्तूप कहा जाता है। सांची की पहाड़ी मध्य प्रदेश के रायसेना जिले के विदिशा के समीप स्थित है। 1818 ई. में सर्वप्रथम जनरल रायलट ने यह खोजा। वर्ष 1989 में इसे विश्व धरोहर में शामिल किया गया। यहाँ ईंटों का बना हुआ तोरणद्वार व चारों ओर लकड़ी की बाड़ लगायी गई है।
- सारनाथ का स्तूप → इसमें तोरण द्वार सबसे अलंकृत है, ऊपर तीन छत्र है, इसमें हर्मिका जो सबसे पवित्र भाग है। इनकी छत अण्डाकार है। तोरण द्वार प्रवेश द्वार है। प्रदक्षिणापथ चारों ओर है।
- भरहुत स्तूप → मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित है। तक्षशिला स्तूप पाकिस्तान में है।
- पिप्रहवा स्तूप (उत्तर प्रदेश) → सबसे प्राचीनतम स्तूप माना जाता है।
पाटलिपुत्र:-
- पाटलिपुत्र (पोलिबोथ्रा) गंगा और सोन नदी के संगम पर स्थित था।
- पाटलिपुत्र की लम्बाई 80 स्टेडिया व चौड़ाई 18 स्टेडिया थी।
- 64 द्वार तथा 570 बुर्ज थे, चतुर्भुजाकार नगर था।
- सम्पूर्ण नगर चारों ओर से लकड़ी के परकोटे से घिरा हुआ था। बीच में 60 फीट गहरी व 600 फीट चौड़ी खाई की सुरक्षा थी।
- पाटलिपुत्र को वर्तमान में पटना कहते हैं।
राजप्रसाद:-
- पटना के समीप बुलन्दी बाग तथा कुम्रहार में की गई खुदाई में लकड़ी के विशाल भवनों के अवशेष मिले हैं।
- बुलन्दी बाग से नगर के परकोटे के अवशेष व कुम्रहार से राजप्रसाद के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण:
- दुर्बल व अयोग्य उत्तराधिकारी,
- साम्राज्य विभाजन,
- केन्द्रीकृत व्यवस्था,
- आर्थिक संकट व सांस्कृतिक समस्याएँ
- अशोक की धार्मिक नीति,
- अशोक की अतिशांतिवादिता नीति,
- नौकरशाही का अधिकाधिक अनुत्तरदायी होना,
- वित्तीय करों की अधिकता
- भौतिक संस्कृति पर प्रसार
- प्रांतीय शासकों की महत्वाकांक्षाएँ